h n

आपबीती : दलित-बहुजनों के लिए मानसिक वेदनालय बन रहे ‘अभिजात’ विश्वविद्यालय

हाल ही में जब बॉलीवुड कलाकार सुशांत सिंह राजपूत ने खुदकुशी की तो सोशल मीडिया से लेकर बौद्धिक गलियारों तक लोग मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बहस करते दिखे। लेकिन उनकी यह संवेदना उस वक्त कहां गायब हो जाती है जब विश्वविद्यालयों में मानसिक प्रताड़ना के शिकार दलित-बहुजन होते हैं? आपबीती बता रही हैं रितु

हाल ही में बॉलीवुड कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी के बाद से सोशल मीडिया पर मानसिक स्वास्थ्य चर्चा का विषय बन गया है। मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित कविताएं, कहानियां और संदेश सोशल मीडिया पर छाए हुए हैं। परन्तु मैं अपने देशवासियों से पूछना चाहतीं हूं कि क्या मानसिक स्वास्थ्य पर हमारा ध्यान तभी जाएगा जब कोई जानी-मानी हस्ती आत्महत्या कर लेगी? क्या हम वैसे ही मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा नहीं कर सकते? क्या हम विश्वविद्यालयों के बहुजन विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य पर बात नहीं कर सकते?

पूरा आर्टिकल यहां पढें : आपबीती : दलित-बहुजनों के लिए मानसिक वेदनालय बन रहे ‘अभिजात’ विश्वविद्यालय

लेखक के बारे में

रितु

संबंधित आलेख

‘आत्मपॅम्फ्लेट’ : दलित-बहुजन विमर्श की एक अलहदा फिल्म
मराठी फिल्म ‘आत्मपॅम्फलेट’ उन चुनिंदा फिल्मों में से एक है, जो बच्चों के नजरिए से भारतीय समाज पर एक दिलचस्प टिप्पणी करती है। यह...
‘मैं धंधेवाली की बेटी हूं, धंधेवाली नहीं’
‘कोई महिला नहीं चाहती कि उसकी आने वाली पीढ़ी इस पेशे में रहे। सेक्स वर्कर्स भी नहीं चाहतीं। लेकिन जो समाज में बैठे ट्रैफिकर...
रेडलाइट एरिया के हम वाशिंदों की पहली जीत
‘बिहार में ज़्यादातर रेडलाइट ब्रोथल एरिया है। इसका मतलब लोग वहीं रहते हैं, वहीं खाते-पीते हैं, वहीं पर उनका पूरा जीवन चलता है और...
फुले, पेरियार और आंबेडकर की राह पर सहजीवन का प्रारंभोत्सव
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के सुदूर सिडियास गांव में हुए इस आयोजन में न तो धन का प्रदर्शन किया गया और न ही धन...
भारतीय ‘राष्ट्रवाद’ की गत
आज हिंदुत्व के अर्थ हैं– शुद्ध नस्ल का एक ऐसा दंगाई-हिंदू, जो सावरकर और गोडसे के पदचिह्नों को और भी गहराई दे सके और...