h n

‘गुलामगिरी’ : ब्राह्मणवाद विरोधी चेतना का बीज-ग्रंथ

जोतीराव फुले द्वारा लिखित ऐतिहासिक पुस्तिका ‘गुलामगिरी’ के प्रकाशन (1 जून, 1873) की वर्षगांठ के मौके पर उसका पुनर्पाठ कर रहे हैं ओमप्रकाश कश्यप

‘गुलामगिरी’ के प्रकाशन की वर्षगांठ (1 जून, 1873) पर विशेष

जहां न्याय की अवमानना होती है, जहां जहालत और गरीबी है, जहां कोई भी समुदाय यह महसूस करे कि समाज सिवाय उसके दमन, लूट तथा अवमानना के संगठित षड्यंत्र के कुछ नहीं है — वहां न तो मनुष्य सुरक्षित रह सकते हैं, न ही संपत्ति। – फ्रैड्रिक डगलस 

गुणीजन कहते आए हैं, जवाब से सवाल ज्यादा मुश्किल होता है। सवाल समझ में आ जाए तो जवाब खोजने में देर नहीं लगती। दो सौ साल पहले बहुजनों का सांस्कृतिक-सामाजिक शोषण आज के मुकाबले कहीं अधिक था। किंतु उसके विरोध में न कोई चेतना थी, न आवाज और ना ही उनके हालात को लेकर कोई सवाल उनके दिमाग में उठते थे। वे शोषण-उत्पीड़न के साथ जीना सीख चुके दीन, दलित, सर्वहारा थे। वे मानते थे कि वे वैसे ही हैं, जैसा उन्हें होना चाहिए था। उन्हें समाज से कोई शिकायत न थी। शिकायत थी तो ब्राह्मणों द्वारा थोपे गए ईश्वर से, जिसे वे भ्रमवश अपना मान बैठे थे। जीवन की तमाम हताशाओं के बीच ईश्वर नामक काल्पनिक सत्ता ही उनकी एकमात्र उम्मीद थी। वे इस बात से अनजान थे कि धर्म और ईश्वर उन्हें गुलाम बनाए रखने का षड्यंत्र हैं। 

पूरा आर्टिकल यहां पढें : ‘गुलामगिरी’ : ब्राह्मणवाद विरोधी चेतना का बीज-ग्रंथ

लेखक के बारे में

ओमप्रकाश कश्यप

साहित्यकार एवं विचारक ओमप्रकाश कश्यप की विविध विधाओं की तैतीस पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। बाल साहित्य के भी सशक्त रचनाकार ओमप्रकाश कश्यप को 2002 में हिन्दी अकादमी दिल्ली के द्वारा और 2015 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के द्वारा समानित किया जा चुका है। विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में नियमित लेखन

संबंधित आलेख

पढ़ें, शहादत के पहले जगदेव प्रसाद ने अपने पत्रों में जो लिखा
जगदेव प्रसाद की नजर में दलित पैंथर की वैचारिक समझ में आंबेडकर और मार्क्स दोनों थे। यह भी नया प्रयोग था। दलित पैंथर ने...
राष्ट्रीय स्तर पर शोषितों का संघ ऐसे बनाना चाहते थे जगदेव प्रसाद
‘ऊंची जाति के साम्राज्यवादियों से मुक्ति दिलाने के लिए मद्रास में डीएमके, बिहार में शोषित दल और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय शोषित संघ बना...
व्याख्यान  : समतावाद है दलित साहित्य का सामाजिक-सांस्कृतिक आधार 
जो भी दलित साहित्य का विद्यार्थी या अध्येता है, वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे बगैर नहीं रहेगा कि ये तीनों चीजें श्रम, स्वप्न और...
‘चपिया’ : मगही में स्त्री-विमर्श का बहुजन आख्यान (पहला भाग)
कवि गोपाल प्रसाद मतिया के हवाले से कहते हैं कि इंद्र और तमाम हिंदू देवी-देवता सामंतों के तलवार हैं, जिनसे ऊंची जातियों के लोग...
‘बाबा साहब की किताबों पर प्रतिबंध के खिलाफ लड़ने और जीतनेवाले महान योद्धा थे ललई सिंह यादव’
बाबा साहब की किताब ‘सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें’ और ‘जाति का विनाश’ को जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जब्त कर लिया तब...