h n

इस किताब में पढ़ें, जाति को लेकर क्या थी कबीर की राय?

फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित ‘जाति के प्रश्न पर कबीर’ पुस्तक लिखने की जरूरत कमलेश वर्मा को क्यों पड़ी। इस संबंध में वे बताते हैं कि कबीर केवल वर्णाश्रम के विरोधी कवि नहीं हैं, वे जातिवाद के केवल भावुक विरोधी नहीं हैं; बल्कि समाज की निर्मिति में जातियों की भूमिका पर विचार करनेवाले कवि हैं

कबीर की कविताएँ जातियों के विवरण और विन्यास के माध्यम से अनेक बातें कहती हैं. वे अपने परिवेश में जातियों की सामाजिक स्थिति को बखूबी समझते हुए भक्तिपरक बातें करते हैं. उन्हें जरा भी भ्रम नहीं है कि जातियों की असलियत क्या है? ‘जाति के प्रश्न पर कबीर’ पुस्तक में कबीर से सम्बन्धित उन प्रश्नों पर विचार किया गया है जिनका जुड़ाव ‘जाति’ से है.

पूरा आर्टिकल यहां पढें : इस किताब में पढ़ें, जाति को लेकर क्या थी कबीर की राय?

लेखक के बारे में

कमलेश वर्मा

राजकीय महिला महाविद्यालय, सेवापुरी, वाराणसी में हिंदी विभाग के अध्यक्ष कमलेश वर्मा अपनी प्रखर आलोचना पद्धति के कारण हाल के वर्षों में चर्चित रहे हैं। 'काव्य भाषा और नागार्जुन की कविता' तथा 'जाति के प्रश्न पर कबीर' उनकी चर्चित पुस्तकें हैं

संबंधित आलेख

पुनर्पाठ : सिंधु घाटी बोल उठी
डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर का यह काव्य संकलन 1990 में प्रकाशित हुआ। इसकी विचारोत्तेजक भूमिका डॉ. धर्मवीर ने लिखी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि...
कबीर पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक 
कबीर पूर्वी उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर के जनजीवन में रच-बस गए हैं। अकसर सुबह-सुबह गांव कहीं दूर से आती हुई कबीरा की आवाज़...
पुस्तक समीक्षा : स्त्री के मुक्त होने की तहरीरें (अंतिम कड़ी)
आधुनिक हिंदी कविता के पहले चरण के सभी कवि ऐसे ही स्वतंत्र-संपन्न समाज के लोग थे, जिन्हें दलितों, औरतों और शोषितों के दुख-दर्द से...
पुस्तक समीक्षा : स्त्री के मुक्त होने की तहरीरें (पहली कड़ी)
नूपुर चरण ने औरत की ज़ात से औरत की ज़ात तक वही छिपी-दबी वर्जित बात ‘मासिक और धर्म’, ‘कम्फर्ट वुमन’, ‘आबरू-बाखता औरतें’, ‘हाँ’, ‘जरूरत’,...
‘गबन’ में प्रेमचंद का आदर्शवाद
प्रेमचंद ने ‘गबन’ में जिस वर्गीय-जातीय चरित्र को लेकर कथा बुना है उससे प्रतीत होता है कि कहानी वास्तविक है। उपन्यास के नायक-नायिका भी...