h n

आदिवासियों की संस्कृति को खारिज करने वाला केआईएसएस करेगा डब्ल्यूसीए-2023 की मेजबानी, आदिवासी बुद्धिजीवी खफ़ा

आदिवासी नेताओं और भारतीय मानवशास्त्रियों ने वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ़ एंथ्रोपोलॉजी (विश्व मानवशास्त्र कांग्रेस), 2023 की मेजबानी कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज (केआईएसएस) को सौंपने के निर्णय को वापस लेने की मांग की है। इन लोगों के अनुसार, केआईएसएस एक संदिग्ध संस्थान है। इसके संस्थापक ओडिशा के सत्ताधारी दल के एक सांसद हैं और इसमें खनन कंपनियों का धन निवेशित है

आदिवासियों के अधिकारों से सरोकार रखने वाले दो सौ से अधिक नेताओं, शिक्षाशास्त्रियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, जनांदोलनों के प्रतिनिधियों और विद्यार्थी संगठनों आदि ने भुवनेश्वर, ओडिशा स्थित कलिंग इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज (केआईएसएस) को वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ़ एंथ्रोपोलॉजी (डब्ल्यूसीए) 2023 की मेजबानी सौंपे जाने का विरोध करते हुए एक याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं। इस याचिका को इंटरनेशनल यूनियन ऑफ़ एंथ्रोपोलॉजिकल एंड एथनोलॉजिकल साइंसेज (आईयूएईएस) के अध्यक्ष जुंजी कोइज़ुमी और उत्कल व संबलपुर विश्वविद्यालयों के कुलपतियों क्रमशः सौमेंद्र मोहन पटनायक और दीपक कुमार बेहरा को भेजा गया है। हस्ताक्षरकर्ताओं ने केआईएसएस पर गंभीर आरोप लगते हुए इन तीनों संस्था प्रमुखों से अपील की है कि वे इस संस्थान से कोई लेना-देना न रखें।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : आदिवासियों की संस्कृति को खारिज करने वाला केआईएसएस करेगा डब्ल्यूसीए-2023 की मेजबानी, आदिवासी बुद्धिजीवी खफ़ा

लेखक के बारे में

गोल्डी एम जार्ज

गोल्डी एम. जॉर्ज फॉरवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक रहे है. वे टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज से पीएचडी हैं और लम्बे समय से अंग्रेजी और हिंदी में समाचारपत्रों और वेबसाइटों में लेखन करते रहे हैं. लगभग तीन दशकों से वे ज़मीनी दलित और आदिवासी आंदोलनों से जुड़े रहे हैं

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
विज्ञान की किताब बांचने और वैज्ञानिक चेतना में फर्क
समाज का बड़ा हिस्सा विज्ञान का इस्तेमाल कर सुविधाएं महसूस करता है, लेकिन वह वैज्ञानिक चेतना से मुक्त रहना चाहता है। वैज्ञानिक चेतना का...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...