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कृतज्ञापूर्वक याद किए गए लोकेश सोरी, लोगों ने कहा- बंद हो बहुजनों का सामाजिक, सांस्कृतिक उतपीड़न

28 सितंबर, 2017 को लोकेश सोरी ने छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे भारत में इतिहास रचा था। वे मानते थे कि बहुजनों के अपने सांस्कृतिक अधिकार हैं। उन्होंने महिषासुर और रावण वध करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। उनकी पहली पुण्यतिथि पर लोगों ने उनके आंदोलन को जारी रखने का संकल्प लिया

बीते 11 जुलाई, 2020 को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में सांस्कृतिक व सामाजिक कार्यकर्ता लोकेश सोरी को याद किया गया। इस मौके पर एक परिचर्चा का आयोजन भी हुआ जिसमें वक्ताओं ने एक स्वर में बहुजनों के सामाजिक और संस्कृति उत्पीड़न बंद करने की मांग की। कार्यक्रम का आयोजन बहुजन साहित्य संस्थान द्वारा की गयी।

कार्यक्रम की शुरूआत लोकेश सोरी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर की गई। इस मौके पर सबने बहुजनों के सांस्कृतिक अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले लोकेश सोरी को कृतज्ञतापूर्वक याद किया। प्रारंभ मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी रहे प्रभाकर ग्वाल (दंतेवाड़ा में 1 अप्रैल 2016 से पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाने के कारण निलंबित) ने की। उन्होंने कहा कि कानूनी रूप से यह बात समझने की आवश्यकता है कि भारतीय संविधान में सभी को अपना धर्म और अपनी संस्कृति मानने व उसके संरक्षण का अधिकार है। लेकिन यदि कोई भी व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह दूसरे व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह के इन अधिकारों का हनन करता है तो उसे दंडित करने के लिए कानूनी प्रावधान हैं। इस संबंध में उपलब्ध कानूनों को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यदि हमारे लोग अपने पुरखों को याद करते हैं, उनका सम्मान करते हैं तो यह कहीं से गलत नहीं है। 

लोकेश सोरी की पहली पुण्यतिथि पर बिलासपुर में जुटे सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यकर्तागण

वहीं पीयूसीएल, छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान ने परिचर्चा को आगे बढाते हुए कहा कि पूरे प्रदेश में मनुवादी हथकंडों के चलते बहुजनों पर फर्जी मुकदमे किए जा रहे है। छत्तीसगढ़ कांकेर के पखांजुर क्षेत्र के रहने वाले लोकेश सोरी इन्हीं द्विज संस्कृति को चुनौती देते हुए महिषासुर और रावण को दहन पर मामला दर्ज करवाया था। उन्होंने कहा कि हमें अपने पूर्वजों को समझना चाहिए, जिसे मनुवादी असुर बताते है। 

जितेंद्र पाटले ने युवाओं को महिषासुर के इतिहास के बारे में जनचेतना जगाने की बात कही। उन्होंने कहा कि इस वर्ष बिलासपुर में भी महिषासुर प्रतिमा के साथ खिलवाड़ एवं रावण दहन के खिलाफ प्रशासन को आवेदन दिया जाएगा। एल. सी. कोशले और अधिवक्ता आशीष बेग जी ने कर्मकांड को लेकर अपनी बात रखी कि अभी समाज के कुछ लोग ही जाग पाए हैं। वे ही जान सके हैं कि उनके सांस्कृतिक अधिकार क्या हैं। इनकी संख्या बहुत सीमित है। दूसरी ओर द्विज मानसिकता वाले लोग छत्तीसगढ़ के बहुजनों दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों पर अपनी परंपराएं थोप रहे हैं। 

लोकेश सोरी (22 जुलाई, 1973 – 11 जुलाई, 2019)

परिचर्चा में रजनी सोरेन, किशोर नारायण जी ने वर्तमान में मनुवादी व्यवस्था के चलते उपद्रवियों के बढ़ते हौसले पर चिंता जाहिर की। मोहन शेंडे, अजीत लहरे, डिकेश डहरिया, विनाश कोशले ,प्रमोद नवरत्न, संजीत बर्मन ने जन जागृति जत्था के माध्यम से गांव-गांव में जाकर लोगों के बीच चेतना जगाने के कार्य को धरातल पर उतरने की बात पर जोर दिया।

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कौन थे लोकेश सोरी?

बता दे कि लोकेश सोरी का जन्म 22 जुलाई 1973 को छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के केरकट्टा नामक गांव में हुआ। उनकी मां का नाम रमशीला सोरी और पिता का नाम अमरू सोरी था। लोकेश ने इंटर तक की पढ़ाई की। फिर वे सामाजिक कार्यों में लग गए। स्थानीय पार्षद भी चुने गए। दलीय राजनीति से भी उनका जुड़ाव रहा। वे  कांकेर जिला भाजपा के अनुसूचित जाति/जनजाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष रहे। बाद में उनका मोहभंग हुआ और रावण और महिषासुर वध का विरोध किया। उन्होंने इसे लेकर 28 सितंबर 2017 को एक मुकदमा भी कांकेर के पखांजूर थाने में दर्ज कराया। उनके मुकदमे पर कार्रवाई करने की बजाय शिकायत दर्ज करवाने के तीन दिनों बाद ही पुलिस ने उन्हें व्हाट्अप पर उन्माद फैलाने वाला संदेश भेजने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। करीब पंद्रह दिनों बाद उन्हें जमानत मिली। जेल की प्रताडना से उनका सामान्य सायनस मैक्सिलरी कैंसर में बदल गया। 11 जुलाई 2019 को उनका निधन हो गया।

(संपादन : नवल)

लेखक के बारे में

तामेश्वर सिन्हा

तामेश्वर सिन्हा छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार हैं। इन्होंने आदिवासियों के संघर्ष को अपनी पत्रकारिता का केंद्र बनाया है और वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रिपोर्टिंग करते हैं

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