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कौन समझेगा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष का यह “दर्द”?

ओबीसी आरक्षण पर आए इस संकट को वे भी समझ रहे हैं जो मौजूदा दौर में सरकार का हिस्सा हैं, लेकिन वे चाहकर भी मुंह नहीं खोल पा रहे हैं। इनमें से एक राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के अध्यक्ष भगवानलाल साहनी हैं जो स्वयं बिहार में अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं और निषाद समुदाय के हैं। नवल किशोर कुमार की खबर

देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण पर तलवार लटकता दिख रहा है। इसकी वजह यह है कि केंद्र सरकार ने बी.पी. शर्मा कमेटी की अनुशंसा को लागू करने का मन लगभग बना लिया है, जिसके लागू होने से बड़ी संख्या में योग्य ओबीसी अभ्यर्थी क्रीमीलेयर में शामिल हो जाएंगे। खास बात यह कि ओबीसी आरक्षण पर आए इस संकट को वे भी समझ रहे हैं जो मौजूदा दौर में सरकार का हिस्सा हैं, लेकिन वे चाहकर भी मुंह नहीं खोल पा रहे हैं। इनमें से एक राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) के अध्यक्ष भगवानलाल साहनी हैं जो स्वयं बिहार में अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं और निषाद समुदाय के हैं।

फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर संक्षिप्त बातचीत में भगवानलाल साहनी ने अपनी लाचारी व्यक्त की। यह पूछे जाने पर कि वार्षिक आय में वेतन से प्राप्त आय को शामिल करने संबंधी बी.पी. शर्मा कमेटी की अनुशंसा के संबंध में ऐसी खबरें आ रही हैं कि एनसीबीसी ने हरी झंडी दिखा दी है तो क्या वे इस अनुशंसा को ओबीसी के हित में मानते हैं, साहनी ने कहा कि “यह सवाल उनसे ही क्यों पूछा जा रहा है? इस संबंध में सवाल यदि किसी को पूछना ही है तो वह सरकार से पूछे। गृह मंत्री [अमित शाह] से पूछे।”

फिर जब फारवर्ड प्रेस ने उनसे पूछा कि यदि वे बी.पी. शर्मा कमेटी की उपरोक्त अनुशंसा को गलत मानते हैं तो इस संबंध में कोई पहल क्यों नहीं करते? जवाब में साहनी ने कहा कि “ सरकार की नीतियों को क्रियान्वित करना उनका काम है।”

भगवानलाल साहनी, अध्यक्ष, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने पहल की है। उन्होंने कहा कि “यदि मैंने पहल नहीं किया होता तो आयोग ने बहुत पहले ही मंत्रिपरिषद द्वारा भेजे गए नोट को मंजूरी दे दी होती। जैसाकि सामान्य तौर पर होता है कि यदि कैबिनेट से कोई प्रस्ताव आता है तो उसे दो मिनट के अंदर फाइनल कर दिया जाता है। लेकिन यह मेरी ओर से [ओबीसी का आरक्षण बचाने के लिए] पहल ही है कि छह महीने से कैबिनेट द्वारा भेजा गया प्रस्ताव आयोग में लंबित है।”

साहनी ने बातचीत में मायूसी व्यक्त की तथा लोगों से अपील करते हुए कहा कि “मुझे कटघरे में खड़ा करने के बजाय लोग सरकार पर दबाव बनाएं। पीएम और होम मिनिस्टर से कहें। जबतक जनता का दबाव नहीं होगा तबतक कोई समाधान नहीं निकलेगा।”

बी.पी. शर्मा कमेटी की वह अनुशंसा जिसके कारण खत्म हो सकता है ओबीसी का आरक्षण?

गौरतलब है कि पिछले वर्ष केंद्रीय कार्मिक व प्रशिक्षण मंत्रालय (डीओपीटी) ने मंत्रालय के पूर्व सचिव बी.पी. शर्मा के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था जिसकी जिम्मेदारी सार्वजनिक लोक उपक्रमों (पीएसयू) में कार्यरत आरक्षित वर्गों के ग्रुप सी व ग्रुप डी स्तर के कर्मियों के लिए पदों की समतुल्यता का निर्धारण करना था ताकि उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ मिल सके। 

इस कमेटी के गठन के पहले ओबीसी से जुड़े गणेश सिंह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने अपनी अनुशंसा में कहा था कि पीसयू के ओबीसी कर्मियों की पदसमतुल्यता का निर्धारण हो तथा उनकी आय में वेतन से प्राप्त आय को शामिल न किया जाय। इसके पहले 1993 में इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद गठित विशेषज्ञ कमेटी की अनुशंसा पर डीओपीटी ने एक ऑफिस मेमोरेंडम (ऑफिस मेमोरेंडम 36012/12/93 इस्टैब्लिशमेंट (एससीटी) दिनांक 08/09/1993) जारी कर कहा था कि ओबीसी वर्ग के ग्रुप सी और गुप डी स्तर के कर्मियों की आय में वेतन और कृषि से प्राप्त आय शामिल नहीं की जाएगी तथा इसके अनुरूप ही यह तय हो सकेगा कि कौन क्रीमीलेयर में शामिल है और कौन नहीं। परंतु, डीओपीटी का उक्त ऑफिस मेमोरेंडम केवल केंद्र और राज्य सरकार के अधीन काम करने वाले ओबीसी कर्मियों के लिए ही था। पीएसयू के कर्मियों के लिए कोई नीति बनी ही नहीं। इस कारण पीएसयू में काम करने वाले ओबीसी कर्मियों के बच्चों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा था। 

गणेश सिंह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति की अनुशंसा पर कार्रवाई करते हुए डीओपीटी ने एक और विशेषज्ञ समिति का गठन किया जिसके अध्यक्ष बी.पी. शर्मा बनाए गए। उन्होंने अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी। मीडिया में प्रकाशित समाचारों के मुताबिक, इस समिति ने डीओपीटी द्वारा 1993 में जारी ऑफिस मेमाेरेंडम को ही बदल देने की बात कही और कहा कि आय में वेतन से प्राप्त आय शामिल किया जाय।

गणेश सिंह भी जता चुके हैं अपना विरोध

सनद रहे कि संसदीय समिति के अध्यक्ष गणेश सिंह भी अपना विरोध फारवर्ड प्रेस के माध्यम से पहले ही जता चुके हैं। फारवर्ड प्रेस से बातचीत में उन्होंने साफ कहा कि बी. पी. शर्मा कमेटी की अनुशंसा को मानकर केंद्र सरकार गलत कर रही है। इससे ओबीसी के हितों को नुकसान होगा। बड़ी संख्या में ओबीसी आरक्षण से बाहर कर दिए जाएंगे। वहीं इस संबंध में केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत का बयान भी काबिल-ए-गौर है जो उन्होंने बीते दिनों फारवर्ड प्रेस के साथ बातचीत में दी। उनके मुताबिक वार्षिक आय में वेतन पहले से शामिल रहा है। 

बहरहाल, यह तो साफ है कि बी.पी. शर्मा कमेटी की अनुशंसा को लेकर भाजपा के ओबीसी नेताओं में असंतोष है और वे भी नहीं चाहते हैं कि इसे लागू किया जाय। इस संबंध में गणेश सिंह ने अपने दल के ओबीसी सांसदों से प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को ट्वीट कर अपना विरोध जताने का आह्वान भी फारवर्ड प्रेस से बातचीत में किया है। ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि क्या भाजपा के द्विज भाजपा के गैर द्विजों पर इस कदर हावी हैं या फिर सरकार उनके दबाव में मजबूर है कि यह जानते हुए भी कि यदि बी.पी. शर्मा कमेटी की अनुशंसा लागू हुई तो ओबीसी का आरक्षण खतरे में पड़ जाएगा, लागू करने को बाध्य है? यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी हैं जो स्वयं ओबीसी वर्ग से आते हैं।

(संपादन : अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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