h n

आखिर उच्च विज्ञान संस्थानों में दलित-बहुजन की भागीदारी क्यों नहीं है?

आईआईएसईआर जैसे उच्च विज्ञान शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को महत्व नहीं दिया जा रहा है। यही वजह है कि इन संस्थानों में दलित-बहुजनों की संख्या काफी कम है। इस संबंध में आरटीआई के ज़रिये मिली जानकारियां बानगी ही सही, परंतु महत्वपूर्ण हैं। नवल किशोर कुमार की खबर

कहना गैर वाजिब नहीं कि आज भी उच्च शिक्षण संस्थानों में दलित-बहुजनों की भागीदारी न्यून है। सबसे अधिक खराब स्थिति उच्च विज्ञान शिक्षण संस्थानों की है जहां दलित-बहुजनों की भागीदारी इतनी कम है कि यह सवाल स्वाभाविक तौर पर सामने आता है कि क्या इन संस्थाओं पर केवल द्विज वर्गों का अधिकार है?

पूरा आर्टिकल यहां पढें : आखिर उच्च विज्ञान संस्थानों में दलित-बहुजन की भागीदारी क्यों नहीं है?

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

संबंधित आलेख

उत्तर भारत की महिलाओं के नजरिए से पेरियार का महत्व
ई.वी. रामासामी के विचारों ने जिस गतिशील आंदोलन को जन्म दिया उसके उद्देश्य के मूल मे था – हिंदू सामाजिक व्यवस्था को जाति, धर्म...
यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
विज्ञान की किताब बांचने और वैज्ञानिक चेतना में फर्क
समाज का बड़ा हिस्सा विज्ञान का इस्तेमाल कर सुविधाएं महसूस करता है, लेकिन वह वैज्ञानिक चेतना से मुक्त रहना चाहता है। वैज्ञानिक चेतना का...
पुस्तक समीक्षा : स्त्री के मुक्त होने की तहरीरें (अंतिम कड़ी)
आधुनिक हिंदी कविता के पहले चरण के सभी कवि ऐसे ही स्वतंत्र-संपन्न समाज के लोग थे, जिन्हें दलितों, औरतों और शोषितों के दुख-दर्द से...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...