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दलितों में भी दलित हैं महादलित, रामविलास सहित सभी मजबूत दलित नेता छोड़ें आरक्षण : बबन रावत

इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में दलितों के सवाल क्या हैं, उनके मुद्दे क्या हैं? इस संबंध में महादलित आयोग, बिहार के पूर्व सदस्य बबन रावत से विशेष बातचीत

बिहार में नीतीश कुमार सरकार द्वारा गठित महादलित आयोग के पूर्व सदस्य बबन रावत वर्तमान में महादलित परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। बिहार में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दलितों के सवाल और उनके मुद्दों को लेकर फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार ने उनसे विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है इस बातचीत के संपादित अंश

बिहार में नीतीश कुमार ने पहले महादलित आयोग बनाया फिर सभी दलित जातियों को महादलित में शामिल कर लिया। एक तरह से उन्होंने दलित और महादलित के बीच भेद मिटा दिया है। आप क्या कहेंगे?

देखिए, सबसे पहले मैं आपको यह बताता हूं कि दलित और महादलित कौन हैं। मैं 1995 से महादलितों के लिए आंदोलन कर रहा हूं। अब तो इसका विस्तार राष्ट्रीय स्तर पर हो गया है। नवंबर, 2015 में लखनऊ में करीब 15 राज्यों के महादलित प्रतिनिधि जुटे। हम सबने मिलकर महादलितों के लिए राष्ट्रीय परिसंघ का गठन किया। फिर सबने सर्वसम्मति से मुझे इस परिसंघ का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनाेनीत किया है। आज देश में कुल 1,206 जातियां हैं जिन्हें अनुसूचित जातियों की श्रेणी में रखा गया है।

दलित और महादलित में अब भेद कहां रहा?

मैं वही आपको बता रहा हूं। देखिए हर परिवार में दो तरह के लोग होते हैं। जैसे कभी कोई घर का एक सदस्य बीमार पड़ जाता है तो उसका अतिरिक्त ध्यान रखा जाता है। मसलन उसे अच्छा खाना मिले, दवा मिले व पौष्टिक खाद्य पदार्थ मिले। ऐसा तब तक किया जाता है जब तक कि वह सामान्य नहीं हो जाता। मैं यह मानता हूं कि  पहली बार बिहार की जिन 22 दलित जातियों को महादलित घोषित किया गया था, वे आज भी महादलित ही हैं। यह सही है कि महादलित जातियों के विकास के लिए माननीय नीतीश कुमार जी ने जो पहल कीं, वे अब सभी दलित जातियों के लिए लागू किए जा रहे हैं। सभी को इसका लाभ मिल रहा है। दस हजार से ज्यादा महादलित विकास मित्रों की बहाली हुई है। ये विकास मित्र महादलित जातियों के लोगों व सरकार के बीच सेतु का काम कर रहे हैं। वहीं करीब बीस हजार टोला सेवक बहाल किए गए हैं। हालांकि इनकी नियुक्ति 60 वर्ष की आयु तक के लिए मानदेय के आधार पर ही हुई है। इन्हें शिक्षा सेवक कहा जाता है। इनका काम महादलित टोलों में बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना व मार्गदर्शन देना है।

आपके हिसाब से वे कौन सी जातियां हैं जिन्हें आप महादलित नहीं मानते?

मैंने पहले ही आपको बताया कि दलितों में भी जो दलित हैं, वे महादलित हैं। इनमें मेहतर, भुइंया, डोम आदि शामिल हैं। मैं यह भी मानता हूं कि दलितों में उपवर्गीकरण की आवश्यकता है। आप इसको ऐसे देखिए कि जब बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर जीवित थे तब संपूर्ण दलित समाज उनके साथ था। वह सभी दलित जातियों का नेतृत्व कर रहे थे। लेकिन उनके निधन के उपरांत यह बदल गया। 50 साल से अधिक समय तक इस देश में राज करने वाली पार्टी ने एक खास दलित जाति को आगे बढ़ाया। फिर एक तरह का भेदभाव शुरू हुआ। खास दलित जाति के लोगों को तरजीह दी गयी। अन्य दलित जातियों के लोगों की उपेक्षा की गई।

बबन रावत, पूर्व सदस्य, महादलित आयोग, बिहार

आप किनकी बात कर रहे हैं? कृपया विस्तार से बताएं।

आप यह देखिए कि बाबासाहेब के बाद लंबे समय तक बाबू जगजीवन राम दलितों के नेता रहे। लेकिन उन्होंने क्या किया। एक खास दलित जाति के लोगों को आगे बढ़ाया। फिर बिहार में एक और दलित नेता रामविलास पासवान हुए। इन्होंने भी अपने राजनीतिक जीवन के पांच दशक पूरे कर लिए हैं। इन्होंने भी क्या किया है। अपनी ही जाति के लोगों को बढ़ावा दिया। आप उत्तरप्रदेश के मान्यवर कांशीराम जी के आंदोलन को देखें। उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत मायावती जी को सौंप दी। अब देखिए कि बहुजन समाज पार्टी में भी खास जाति के लोगों का बोलबाला है। 

तो क्या आप मानते हैं कि जिस तरीके से केंद्र सरकार ओबीसी जातियों के उपवर्गीकरण कर रही है, वैसे ही दलित जातियों में भी हो?

हां, बिल्कुल। अभी तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। पहले पांच सदस्यीय खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। अब सात माननीय न्यायाधीशों की खंडपीठ इस मामले पर विचार कर ही है। मैं तो यह मानता हूं कि दलितों को मिलने वाले आरक्षण का लाभ उन्हीं दलितों को मिलना चाहिए जो कमजोर हैं। उन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए। राजनीतिक स्तर पर भी बदलाव होना चाहिए।

इसका मतलब यह कि आप नीतीश कुमार से मांग करेंगे कि वे बिहार में दलितों के उपवर्गीकरण के लिए पहल करें?

मैंने पहले ही कहा कि यह मामला राष्ट्रीय स्तरीय है। माननीय नीतीश कुमार जी ने आरक्षण को छोड़कर तमाम फैसले लिए हैं जिनसे दलित-महादलित लाभान्वित हुए। आप देखिए कि आज महादलितों का किस तरह का विकास हो रहा है। 

प्रश्न तो यही है कि क्या महादलित महज चुनावी जुमला बनकर रह गया?

जब माननीय नीतीश कुमार के नेतृत्व में महादलित आयोग का गठन हुआ तब कई योजनाएं संचालित की गयीं। इनमें महादलित विकास मिशन भी शामिल है। पहले इसका बजट 400 करोड़ रुपए था, जिसे बढ़ाकर 4,000 करोड़ रुपए कर दिया गया। आप देखिए कि इस राशि का उपयोग महादलितों के विकास के लिए किया गया। तो यह तो नहीं कहा जा सकता कि जो वायदे माननीय नीतीश कुमार जी ने महादलितों से किए वे पूरे नहीं किए गए। हजारों की संख्या में भूमिहीन महादलितों को तीन-तीन डिसमिल जमीन देकर इंदिरा आवास बनवाए गए। 

भूमिहीनों को जमीन देने की योजना को लेकर बात तो बहुत लंबे समय से चल रही है। लेकिन क्या आपके पास कोई ऐसा आंकड़ा है कि कितने दलित भूमिहीनों को जमीन दी गयी? 

मेरे पास ऐसा तो कोई आंकड़ा नहीं है। लेकिन मेरे पास यह जानकारी है कि बिहार में करीब दो लाख दलितों-महादलितों को तीन-तीन डिसमिल जमीन देकर घर बनवाया गया है। और आपने सही कहा कि यह योजना लंबे समय से प्रस्तावित थी, जिसे पूरा करने का काम माननीय नीतीश कुमार जी ने किया है। आप यह भी देखिए कि किस तरह माननीय नीतीश कुमार जी ने विधानसभा में दलितों-महादलितों की भागीदारी को बढ़ाया है।

यह भी पढ़ें : वही पार्टी राज करेगी जो सामाजिक न्याय को मानेगी : संजय कुमार

लेकिन विधानसभा में दलित तो आरक्षित सीटों से ही जीतकर आते हैं। इसमें नीतीश कुमार जी ने अतिरिक्त क्या किया है? क्या उन्होंने गैर आरक्षित सीटों से दलितों को उम्मीदवार बनाया है?

नहीं। मैं दूसरी बात कह रहा हूं। आप यह समझिए कि महात्मा गांधी ने पूना पैक्ट के समय आरक्षित सीटों का प्रावधान क्यों रखा। इसका मतलब यही था कि आरक्षित सीटों पर वही चुनावी लड़ें जो कमजोर जातियों के लोग हैं। लेकिन हमारे यहां तो यह एक मजाक बनकर रह गया है। आप देखिए कि कैसे माननीय रामविलास पासवान जी, उनके पुत्र चिराग जी, मीरा कुमार जी आदि आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते मैं तो यह कहता हूं कि इन सभी को आगे बढ़कर घोषणा कर देनी चाहिए कि वे आरक्षित सीटों से नहीं बल्कि सामान्य सीटों से चुनाव लड़ेंगे। उन्हें स्वयं इसकी पहल करनी चाहिए जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गैस सब्सिडी छोड़ने का आह्वान किया था। उन्होंने कहा था कि जो सक्षम हैं, वे गैस सब्सिडी छोड़ दें। लाखों की संख्या में लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी।

तो क्या आप नीतीश कुमार से मांग करेंगे कि इस बार वे सामान्य सीटों से सक्षम दलितों को उम्मीदवार बनाएं?

मैं तो राष्ट्रीय स्तर पर बात कर रहा हूं। रामविलास जी, चिराग जी, मीरा कुमार जी, रामदास अठावले जी कहां से अब दलित रह गए हैं। इन्हें दलितों के लिए आरक्षित सीटों से चुनाव नहीं लड़ना चाहिए।

बबन जी, अंतिम सवाल यह कि इस बार दलितों के लिए क्या एजेंडा है बिहार विधानसभा चुनाव में?

मैं तो यह चाहता हूं कि दलित समाज के लोग यह देखें कि किसने उन्हेंं भयमुक्त माहौल दिया है। आप याद करिए कि कैसे एक समय नरसंहार हुए। लोग बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों में पलायन को मजबूर हुए। मैं यह मानता हूं कि लोग रोजी-रोटी के लिए भी पलायन करते हैं। लेकिन बिहार में बड़ी संख्या उनकी भी है जो आतंक के भय के कारण दूसरे राज्यों में गए। आज बिहार में भय व आतंक का माहौल नहीं है। दूसरा एजेंडा विकास का है जो कि माननीय नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में साकार किया जा रहा है।

(संपादन : अमरीश)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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