h n

लक्ष्मणपुर-बाथे : ऊंची जाति वाले कसते हैं तंज, 58 को मारा तो कुछ नहीं हुआ, एक-दो मर्डर से क्या होगा

बिहार में विधानसभा चुनाव शुरू हो चुके हैं। सियासी दांव खेले जा रहे हैं। दावों और घोषणाओं के बीच सीटू तिवारी ने 1 दिसंबर, 1997 को रणवीर सेना द्वारा अंजाम दिए गए लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार के पीड़ितों से बातचीत की। इस बातचीत में उनकी भयावह यादें हैं और इंसाफ के लिए तरसती आंखें भी

करीब 37 साल की दलित पुनिया देवी, अपने पति का मुंह देखे बिना ही बाल विधवा हो गई। साल 1997 में ही तो औरंगाबाद जिले के केरा गांव की इस बच्ची को ब्याहने लक्ष्मणपुर बाथे का एक लड़का शिवकैलाश चौधरी आया था। शादी के रस्म रिवाज हुए, लेकिन दुल्हा-दुल्हन ने एक दूसरे का चेहरा नहीं देख पाए। पुनिया ने अपने पति का चेहरा उसकी मौत के बाद भी नहीं देखा।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : लक्ष्मणपुर-बाथे : ऊंची जाति वाले कसते हैं तंज, 58 को मारा तो कुछ नहीं हुआ, एक-दो मर्डर से क्या होगा

लेखक के बारे में

सीटू तिवारी

लेखिका पटना में वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं तथा विभिन्न न्यूज चैनलों, रेडियो व पत्र-पत्रिकाओं के लिए नियमित लेखन में सक्रिय हैं।

संबंधित आलेख

फुले, पेरियार और आंबेडकर की राह पर सहजीवन का प्रारंभोत्सव
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के सुदूर सिडियास गांव में हुए इस आयोजन में न तो धन का प्रदर्शन किया गया और न ही धन...
भारतीय ‘राष्ट्रवाद’ की गत
आज हिंदुत्व के अर्थ हैं– शुद्ध नस्ल का एक ऐसा दंगाई-हिंदू, जो सावरकर और गोडसे के पदचिह्नों को और भी गहराई दे सके और...
जेएनयू और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के बीच का फर्क
जेएनयू की आबोहवा अलग थी। फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में मेरा चयन असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर हो गया। यहां अलग तरह की मिट्टी है...
बीते वर्ष 2023 की फिल्मों में धार्मिकता, देशभक्ति के अतिरेक के बीच सामाजिक यथार्थ पर एक नज़र
जाति-विरोधी फिल्में समाज के लिए अहितकर रूढ़िबद्ध धारणाओं को तोड़ने और दलित-बहुजन अस्मिताओं को पुनर्निर्मित करने में सक्षम नज़र आती हैं। वे दर्शकों को...
‘मैंने बचपन में ही जान लिया था कि चमार होने का मतलब क्या है’
जिस जाति और जिस परंपरा के साये में मेरा जन्म हुआ, उसमें मैं इंसान नहीं, एक जानवर के रूप में जन्मा था। इंसानों के...