उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में केरल में पुनर्जागरण आन्दोलन प्रारंभ हो चुका था और आधुनिक केरल का निर्माण भी। (सुगाथन 2016:7) इस आंदोलन की जडें पश्चिमी औपनिवेशिक आधुनिकता, मिशनरियों के प्रचार और आत्मसम्मान हासिल करने के लिए नाडरों के विद्रोह में थीं। इनके अतिरिक्त, इस आन्दोलन पर अय्या वैक्दुन्धर की ब्रिटिश राज और वर्णाश्रम पर आधारित त्रावणकोर राज्य की समालोचना और त्य्कड़ अय्या व चत्ताम्बी स्वामिकल की सामाजिक-सांस्कृतिक पहलों का प्रभाव भी था।(शेखर 2017: 8-27) परन्तु वह नारायण गुरु ही थे, जिन्होंने अपने बहुवादी लेखन और अन्य माध्यमों से अपने विचारों की अभिव्यक्ति के ज़रिए स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आधुनिक मूल्यों को शामिल करते हुए नैतिकता और करुणा पर आधारित एक ऐसे सामाजिक दर्शन को जन्म दिया, जो धर्मनिरपेक्ष और मानवीय था। (गुरु 2006; वेलायुधन 2015)
लेखक के बारे में
डॉ. अजय एस. शेखर
डॉ. अजय एस. शेखर कलाडी, केरल में स्थित एसएस यूनिवर्सिटी ऑफ संस्कृत में अंग्रेजी के सहायक प्राध्यापक और ''सहोदरन अय्यप्पन: टूवर्डस ए डेमोक्रेटिक फ्यूचर" के लेखक हैं। हाल में केरल की संस्कृति और सभ्यता के बौद्ध आधार पर पुत्तन केरलम शीर्षक से मलयालम में उनकी पुस्तक प्रकाशित हुई है