h n

अब ओबीसी वर्ग के मेडिकल छात्र भागवत देवांगन की सांस्थानिक हत्या

मध्यप्रदेश के जबलपुर में मेडिकल साइंस में पीजी कर रहे छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले के भागवत देवांगन ने खुदकुशी कर ली। उनके भाई प्रह्लाद देवांगन ने फारवर्ड प्रेस से बातचीत में कहा है कि उनके भाई को जातिगत दुर्भावना के तहत प्रताड़ित किया गया। तामेश्वर सिन्हा की खबर

मध्यप्रदेश के नेताजी सुभाषचन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे भागवत देवांगन की खुदकुशी चर्चा में है। ओबीसी वर्ग के देवांगन छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले के एक गांव रहौद के निवासी थे। उनके परिजनों का आरोप है कि ऊंची जातियों के सहपाठियों द्वारा जातिगत उत्पीड़न से तंग आकर देवांगन ने खुदकुशी की। वे जबलपुर मेडिकल कॉलेज प्रबंधन व जबलपुर पुलिस पर आरोपियों को बचाने का आरोप भी लगा रहे हैं। वहीं छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में देवांगन के लिए न्याय के समर्थन में आंदोलन तेज हुए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता व बुद्धिजीवी इस घटना को दलित समुदाय के रोहित बेमूला और डॉ पायल तड़वी के बाद एक और सांस्थानिक हत्या करार दे रहे हैं।

क्या हुआ देवांगन के साथ?

करीब 28 वर्षीया भागवत देवांगन ने इसी वर्ष जबलपुर स्थित मेडिकल कॉलेज के आर्थोपेडिक विभाग के प्रथम वर्ष में दाखिला लिया था। बीते 1 अक्टूबर को उनकी लाश उनके हॉस्टल के कमरे से स्थानीय पुलिस ने बरामद किया। आत्महत्या का कारण सीनियर छात्रों  द्वारा रैगिंग के दौरान शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना देना  बताया जा रहा है। स्थानीय पुलिस, कॉलेज प्रबंधन के साथ मिलकर इस मामले की तहकीकात कर रही है। वहीं मृतक के परिजनों ने विकास द्विवेदी, अमन गौतम, सलमान खान, शुभम शिंदे और अभिषेक गेमे आदि के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराया है।

आरक्षित कोटे से नहीं लिया था भागवत देवांगन ने दाखिला

भागवत देवांगन के भाई प्रह्लाद देवांगन ने फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर कहा कि उनका भाई पढ़ने में बहुत अच्छा था। उसने मेरिट के आधार पर मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास की और इसके लिए उसने आरक्षण का लाभ नहीं लिया था। उसका दाखिला सामान्य कोटे के तहत हुआ था। देश में उसका रैंक 5,500 था और इसी के आधार पर जबलपुर के मेडिकल कॉलेज़ में ऑर्थोपेडिक विभाग में उन्हें दाखिला मिला था। प्रह्लाद ने बताया कि इसके बावजूद भागवत के सहपाठी उसे आरक्षित वर्ग का कहकर प्रताड़ित करते थे। वे उसे मानसिक और शारीरिक यातनाएं देते थे, जिसे कॉलेज प्रबंधन व जबलपुर की पुलिस महज रैगिंग का मामला बताकर रफा-दफा कर देना चाहती है।

परिजनों के मुताबिक, जातिगत प्रताड़ना का शिकार हुआ भागवत देवांगन

प्रह्लाद बताते हैं कि “मेरे पिता की रहौद में ही बर्तन बेचने की एक छोटी-सी दुकान है। उसी से जीवन चलता है। कॉलेज में दूसरे छात्रों की तुलना में हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। बड़ी मुश्किल से हम पैसों का प्रबंध कर अपने भाई को पढ़ा रहे थे। मेडिकल कॉलेज के सीनियर बार-बार मेरे भाई को कहते थे कि वह ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाता क्योंकि आरक्षण की बदौलत उसे यहां दाखिला मिला है। वे उसकी आर्थिक स्थिति का भी मजाक उड़ाते थे।”

दाखिले के साथ शुरू हो गया था भागवत का मानसिक उत्पीड़न

प्रहलाद देवांगन ने बताया कि भागवत देवांगन अपनी प्रारंभिक शिक्षा नवोदय विद्यालय से पूर्ण की। फिर पुणे मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूर्ण करने के पश्चात एमडी ऑर्थोपेडिक की पढ़ाई के लिए जुलाई 2020 में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर में प्रवेश लेकर पढ़ाई प्रारंभ की। 15 जुलाई, 2020 तक सब ठीक था।  21 जुलाई को भागवत ने बताया कि जाति को लेकर उसे प्रताड़ित किया जा रहा है। फिर 24 जुलाई को कॉलेज से फोन आया कि भागवत की तबीयत खराब है और अविलंब आने के लिए कहा गया। हमारे यहां से जबलपुर 8 घंटे का रास्ता है। वहां पहुंचने के बाद हमें बताया गया कि भागवत ने काफी सारी नींद की गोलियां खा ली है।

एचओडी से शिकायत, नहीं हुई कोई कार्रवाई

बुझ गया घर का चिराग। एमबीबीएस की डिग्री और मेडल के साथ भागवत देवांगन

प्रह्लाद के मुताबिक उनके भाई ने उन्हें बताया कि उसे यहां उसके सीनियर बहुत परेशान करते हैं.  जब सहन नहीं कर पाया तो नींद की गोली खा ली। विभागाध्यक्ष से शिकायत करने के संबंध में भागवत ने कहा कि शिकायत से कुछ होगा नहीं। वे हमें ही गलत ठहराएंगे। इसके बावजूद प्रह्लाद ने विभागाध्यक्ष से बात की तब वही हुआ जिसका अंदेशा भागवत ने जताया था। विभागाध्यक्ष ने भागवत को आराम करने को कहा तथा इस बात से इनकार किया कि उनके कॉलेज में भागवत को किसी तरह की प्रताड़ना का सामना करना पड़ा है। फिर हम लोग भागवत को जांजगीर अपने घर ले आए। इसके बाद वह 8 अगस्त को कॉलेज वापस चला गया। उसे गए 2- 3 ही बीते होंगे कि उसने फिर से प्रताड़ित किए जाने की बात कही। वह मायूस हो चुका था। हम लोगों ने फिर उसे वापस बुला लिया। इस बार वह करीब एक महीने तक रहा। इस दौरान वह पिकनिक मनाने भी गया। घूमने भी गया। इस दौरान मैंने उससे पूछा तो भागवत ने बताया था कि पांच सीनियर उसे बहुत परेशान करते हैं। उसने विकास द्विवेदी, अमन गौतम, सलमान खान, शुभम शिंदे और अभिषेक गेमे के बारे में बताया था। भागवत ने बताया था कि कैसे जातिसूचक गालियां दी जाती थीं। वे उसे वार्ड ब्वॉय कहकर मजाक उड़ाते थे और विरोध करने पर फाइल फाड़ देते थे। इतना ही नहीं, उन लोगों ने 16 दिनों तक उसे लगातार जगाकर रखा। 

सुबह में हुई बात, रात को बीमार होने की सूचना मिली, पहुंचे तो मरा पड़ा था भागवत

प्रह्लाद ने बताया कि बीते 1 अक्टूबर, 2020 को 9 बजे उसके एक सीनियर का फोन आया कि भागवत कॉलेज नहीं आ रहा है। तो मैंने कहा कि भागवत की तबीयत खराब है, वह मेरे संपर्क में है। उसने एक-दो दिनों के बाद ज्वॉयन करने को कहा है। उसने विभागाध्यक्ष से आज मिलने की बात कही है। लेकिन दो बजे के बाद भागवत से बात न हो सकी। प्रह्लाद के मुताबिक, जब भागवत से उसकी बात नहीं हो पाई तब उसने उसके एक सहपाठी सुमित को फोन कर पता करने काे कहा। लेकिन शाम को करीब साढ़े छह बजे ‘शर्मा सर’ का फोन आया कि भागवत की हालत अस्थिर है। क्या हुआ है, पूछने पर उन्होंने कुछ खास नहीं बताया। उन्होंने इतना ही कहा कि उसकी हालत बिगड़ रही है। हम लोग बिना देर किये जबलपुर चल दिए। रात करीब 2 बजे पहुंचने पर हमें बताया गया कि भागवत ने सुसाइड कर लिया है। लेकिन जब हमने विस्तार से जानना चाहा तो हमें कोई जानकारी नहीं दी गई। यहां तक कि आरोपियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज नहीं दी गयी है। प्रह्लाद का कहना है कि कॉलेज प्रशासन के उपेक्षापूर्ण रवैये व सीनियर छात्रों के जातिगत उत्पीड़न ने मेरे भाई की जान ले ली। 

(संपादन : नवल/अमरीश)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

तामेश्वर सिन्हा

तामेश्वर सिन्हा छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार हैं। इन्होंने आदिवासियों के संघर्ष को अपनी पत्रकारिता का केंद्र बनाया है और वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रिपोर्टिंग करते हैं

संबंधित आलेख

‘आत्मपॅम्फ्लेट’ : दलित-बहुजन विमर्श की एक अलहदा फिल्म
मराठी फिल्म ‘आत्मपॅम्फलेट’ उन चुनिंदा फिल्मों में से एक है, जो बच्चों के नजरिए से भारतीय समाज पर एक दिलचस्प टिप्पणी करती है। यह...
‘मैं धंधेवाली की बेटी हूं, धंधेवाली नहीं’
‘कोई महिला नहीं चाहती कि उसकी आने वाली पीढ़ी इस पेशे में रहे। सेक्स वर्कर्स भी नहीं चाहतीं। लेकिन जो समाज में बैठे ट्रैफिकर...
रेडलाइट एरिया के हम वाशिंदों की पहली जीत
‘बिहार में ज़्यादातर रेडलाइट ब्रोथल एरिया है। इसका मतलब लोग वहीं रहते हैं, वहीं खाते-पीते हैं, वहीं पर उनका पूरा जीवन चलता है और...
फुले, पेरियार और आंबेडकर की राह पर सहजीवन का प्रारंभोत्सव
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के सुदूर सिडियास गांव में हुए इस आयोजन में न तो धन का प्रदर्शन किया गया और न ही धन...
भारतीय ‘राष्ट्रवाद’ की गत
आज हिंदुत्व के अर्थ हैं– शुद्ध नस्ल का एक ऐसा दंगाई-हिंदू, जो सावरकर और गोडसे के पदचिह्नों को और भी गहराई दे सके और...