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नारों से समझें कांशीराम का आंदोलन

यह कांशीराम के सतत आंदोलन का ही परिणाम था कि दलित, आदिवासी, पिछड़े और मुसलमान अपने हक-हुकूक के लिए जागरूक हुए। जब यह आंदोलन चल रहा था तब लोगों का नारा था - ‘कांशी तेरी नेक कमाई, तूने सोती कौम जगाई।’

कांशीराम (15 मार्च, 1934 – 9 अक्टूबर, 2006) पर विशेष

मान्यवर कांशीराम ने एक बार कहा था- “हमारी लड़ाई सबसे नहीं, बल्कि उनसे है जो जाति मानते हैं। हिन्दू समाज में जाति व्यवस्था भेदभाव पर आधारित है। उच्च जाति के पंद्रह प्रतिशत लोग 85 प्रतिशत बहुजनों पर न केवल राज करते हैं बल्कि उनका शोषण करते हैं। उन पर अत्याचार करते हैं।”

हाल ही में उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक दलित युवती के साथ गैंगरेप और उसकी निर्मम हत्या व सूबे की सरकार द्वारा आरोपियों को बचाने की तमाम कोशिशें इसका ज्वलंत उदाहरण हैं कि आज भी भारत में दलित किस हालत में जी रहे हैं।  इसलिए कांशीराम अपने भाषणों में कहा करते थे कि “मैं बहुजनों को इस देश का हुक्मरान देखना चाहता हूं। क्योंकि जब तक बहुजन हुक्मरान नहीं बनेगा तब तक उसका कल्याण नहीं होगा।”

कांशीराम ने सवर्णों द्वारा निचले तबके के लोगों पर अत्याचार के खिलाफ बहुजनवाद का सिद्धांत दिया। बहुजनवाद की परिधि में उन्होंने अनुसूचित जनजाति (एसटी), अनुसूचित जाति (एससी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को शामिल किया। वे मानते थे कि ये सभी मिलकर भारत में 85 फीसदी आबादी का निर्माण करते हैं।

नारों से समझें कांशीराम का आंदोलन

यह कांशीराम के सतत आंदोलन का ही परिणाम था कि दलित, आदिवासी, पिछड़े और मुसलमान अपने हक-हुकूक के लिए जागरूक हुए। जब यह आंदोलन चल रहा था तब लोगों का नारा था – “कांशी तेरी नेक कमाई, तूने सोती कौम जगाई।”

आज एक अनुसूचित जाति की बेटी के साथ हैवानियत के विरुद्ध दलित, आदिवासी, पिछड़े और मुसलमान  सब उठ खड़े हुए हैं और उन दरिंदों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाने के लिए धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, कैंडल मार्च निकालकर और जिला अधिकारी से लेकर राष्ट्रपति तक को ज्ञापन दे रहे हैं। सरकार पर दबाब बना रहे हैं। कहीं न कहीं इसके पीछे जो सोच है वह मान्यवर कांशीराम के मिशन और मुहिम का ही परिणाम है।

कहना गैरवाजिब नहीं कि डॉ. भीमराव आंबेडकर के मिशन और कारवां को उनके बाद किसी ने यदि आगे बढ़ाया तो वे कांशीराम ही थे। उनकी सभाओं में लोग नारे भी लगाते थे – “ बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा।”

कांशीराम ने पहली बार भारतीय आबादी का 85-15 का आंकड़ा दिया। उन्होंने कहा था – “अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और मुसलमानों को मिलाकर पचासी प्रतिशत आबादी होती है और ब्राह्मण, ठाकुर व बनिया मिलाकर पंद्रह प्रतिशत। लेकिन ये पंद्रह प्रतिशत लोग मिलकर हम पचासी प्रतिशत पर राज कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि 85 फीसदी बहुजन, ब्राह्मणों की जातिवादी व्यवस्था के कारण 6 हजार जातियों-उपजातियों में बंटे हुए हैं। उनको जोड़कर उन्होंने इन सभी को बहुजन नाम दिया था। उन्होंने नारा दिया– बहुजन हिताय बहुजन सुखाय।

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कांशीराम ने ऐसे सहज सरल नारे दिए थे, जिन्हें आमजन आसानी से समझ सकते थे। मसलन, उन्होंने एक नारा दिया था – “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।” आज भी दलित वर्ग विविधता के जिस सिद्धांत  की मांग करता है वह यही है कि देश  के संसाधनों का संख्यानुपात में बंटवारा हो।

उन्होंने बहुजनों को जाग्रत करने के लिए नारा दिया था – “वोट हमारा, राज तुम्हारा, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।” उन्होंने इन पंद्रह प्रतिशत को आगाह करते हुए कहा था – “जो बहुजन की बात करेगा। वह दिल्ली पर राज करेगा।” उन्होंने इन पर आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा था- “तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार।”

कांशीराम ने स्वयं को पूरी तरह बहुजन मिशन के लिए समर्पित कर दिया था। वे बहुजन को इस देश का हुक्मरान देखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने प्रण किया था कि वे विवाह नहीं करेंगे और संपत्ति संग्रह नहीं करेंगे। आजीवन अपने मिशन को पूरा करने में लगे रहेंगे। और उन्होंने वैसा ही किया।

कांशीराम यह समझ गए थे कि  बिना सत्ता के बहुजनों का कल्याण नहीं होगा। इसलिए उन्होंने 14 अप्रैल, 1984 को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) बनाई। वे राजनीति पर कब्ज़ा करना चाहते थे। इसलिए जब भाजपा के एक नेता ने उन्हें राष्ट्रपति बनाने की पेशकश की तो उन्होंने कहा था मुझे बनाना ही चाहते हैं तो प्रधानमंत्री  बनाइए। मैं राष्ट्रपति नहीं बनना चाहता।

बहुजन समाज पार्टी को शुरु में सफलता नहीं मिली लेकिन धीरे-धीरे पार्टी स्थापित हो गई। उत्तर प्रदेश में उसका जनाधार बढ़ता गया और एक समय ऐसा भी आया कि वर्ष 2007 में वह बहुमत से सत्ता में आई। शुरू में उन्होंने सत्ता हासिल करने के लिए समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस आदि से गठबंधन भी किए। इस पर लोगों ने उन पर अवसरवादी होने का आरोप लगाया। पर वे विचलित नहीं हुए। उन्होंने कहा हम लोगों को अवसर मिलते ही कहां हैं और इसलिए जब अवसर मिले तो उसका भरपूर लाभ उठाना चाहिए। इसमें गलत कुछ भी नहीं है। इसके पहले उन्होंने बहुजन और पिछड़ा वर्ग के लोगों को अपने हक के लिए लड़ने के लिए एकजुट किया। बाद के दिनों में डीएस-4 (दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) का गठन किया. कांशीराम ने 1971 में ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनोरिटी कम्युनिटी एम्पलॉयी फेडरेशन (बामसेफ) गठन किया था। उन्होंने “बहुजन संघटक” अख़बार भी निकाला और बहुजन समाज के लोगों को ‘पे बैक टू द सोसायटी’ का मंत्र भी दिया।

कांशीराम का जन्म 15 मार्च, 1934 को पंजाब के खवासपुर गांव में हुआ था। वे रामदसिया सिख परिवार में पैदा हुए थे, जिसे अछूत माना जाता था। कांशीराम की शुरूआती शिक्षा स्थानीय विद्यालय में हुई फिर उसके बाद 1956 में रोपड़ के सरकारी कॉलेज से उन्होंने बीएससी की डिग्री ली पढ़ाई के बाद कांशीराम ने पुणे में हाई एनर्जी मैटिरियल्स रिसर्च लैबोरेट्री में काम शुरू किया वहां पहली बार जातिगत भेदभाव से उनका वास्ता पड़ा वहां दलित कर्मचारियों को अंबेडकर जयंती पर छुट्टी नहीं मिलती थी यहीं से उनके मन में समाज के निचले तबके के उत्थान की प्रेरणा जागी उन्होंने अंबेडकर के साहित्य को पढ़ना शुरू किया और बाद में बहुजनों के महानायक बने। 

बहरहाल, जब तक समाज में असमानता और शोषण है, तब तक मान्यवर कांशीराम के विचार प्रासंगिक रहेंगे और बहुजन उनसे प्रेरणा लेकर निरंतर आगे बढ़ते रहेंगे।

(संपादन : नवल/अमरीश)


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लेखक के बारे में

राज वाल्मीकि

'सफाई कर्मचारी आंदोलन’ मे दस्तावेज समन्वयक राज वाल्मीकि की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने कविता, कहानी, व्यग्य, गज़़ल, लेख, पुस्तक समीक्षा, बाल कविताएं आदि विधाओं में लेखन किया है। इनकी अब तक दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं कलियों का चमन (कविता-गजल-कहनी संग्रह) और इस समय में (कहानी संग्रह)।

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