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राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति आयोग मे कामकाज ठप्प, मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ने उठाया सवाल

देश में दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं। उनके लिए आरक्षण को लेकर भी अनेक सवाल हैं। ऐसे में राष्ट्रीय एससी व एसटी आयोगों का पुनर्गठन नहीं किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस. के. कृष्णन ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस मामले में पहल करने की मांग की है

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति व राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोगों में अध्यक्ष व अन्य सदस्यों के पद पिछले पांच महीने से रिक्त पड़े हैं। इस कारण दोनों आयोगों में कामकाज ठप्प है। मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस. के. कृष्णन ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर यह सवाल उठाया है कि इन आयोगों में अध्यक्ष व अन्य सदस्यों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही है।

बताते चलें कि देश के अनुसूचित जाति व जनजाति के हक-हुकूक की रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आयोगों का गठन किया गया है। इसके लिए संविधान में क्रमश: अनुच्छेद 338 व 337ए में प्रावधान हैं। इन आयोगों को संवैधानिक शक्तियां हासिल हैं। इनकी अहम जिम्मेदारियों में इन वर्गों के उत्पीड़न, इनके लिए आरक्षण व अन्य योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर सरकार को सलाह शामिल है। साथ ही क्रियान्वयन में किसी तरह की शिकायत पाए जाने पर ये आयोग दंड के निर्धारण भी करते हैं।

परंतु बीते पांच महीने से ये दोनों आयोग सक्रिय नहीं हैं। वजह यह कि मई, 2020 में ही दोनों आयोगों के अध्यक्ष व अन्य सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और तब से केंद्र सरकार ने नयी नियुक्तियां नहीं की हैं। अनुसूचित जनजाति आयोग में अंतिम बार सदस्यों की नियुक्ति जनवरी-फरवरी, 2017 में की गयी थी। तब नंदकुमार साय को आयोग का अध्यक्ष व अनुसईया उइके को उपाध्यक्ष बनाया गया था। इनके अलावा हरिकृष्ण दामोर और माया चिंतामन इवनाते आयोग के सदस्य थे। वहीं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में डॉ. रामशंकर कथेरिया को अध्यक्ष व एल मुरूगन को उपाध्यक्ष तथा सदस्य के रूप में योगेंद्र पासवान को नियुक्त किया गया था। इनके अलावा महिला सदस्यों के रूप में केशपागुला रामूलू और स्वराज विद्वान को जगह दी गई थी।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस. के. कृष्णन की तस्वीर

अपने पत्र में जस्टिस एस. के. कृष्णन ने लिखा है कि पिछली बार 2017 में भी सरकार ने इन दोनों आयोगों के सदस्यों की नियुक्ति तब की थी जब सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान ऐसा करने का आदेश दिया था। इस बार फिर एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। उन्होंने सवाल उठाया है कि क्या सरकार इस बार भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही है।

जस्टिस एस. के. कृष्णन ने अपने पत्र में लिखा है कि केंद्र सरकार की नीतियां दलित व आदिवासी विरोधी हैं। होना तो यह चाहिए कि आयोग के सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होने के पहले ही नये सदस्यों की नियुक्ति स्वत: कर दी जाय। लेकिन अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति आयोग के मामले में ऐसा नहीं होता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा है कि देश में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोग उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। उनके अधिकारों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से दोनों आयोगों को शीघ्र नियुक्त किये जाने की मांग की है।

(संपादन : अमरीश)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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