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जब चंदापुरी के निमंत्रण पर पटना पहुंचे डॉ. आंबेडकर ने ओबीसी से किया ऐतिहासिक आह्वान

अनुसूचित जातियों और सामाजिक अन्याय के शिकार अन्य वर्गों को अपनी ताकत का अहसास होना चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि वे कुल मिलाकर देश की आबादी का 90 प्रतिशत हैं और इतनी बड़ी जनसंख्या वाले लोग भला क्यों किसी की गुलामी सहेंगे। पटना में डॉ. आंबेडकर का ऐतिहासिक संबोधन

बिहार की राजधानी पटना के अंजुमन इस्लामिया हॉल में 5 नवम्बर, 1951 को शोषित जन संघ व पिछड़ा वर्ग संघ के कार्यकर्ताओं की एक संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने अनुसचित जातियों और समाज के अन्य पिछड़े वर्गों का आह्वान किया कि वे संगठित होकर उस सामाजिक व्यवस्था का समूल नाश कर दें जो सदियों ने उन पर अत्याचार करती आई है। डॉ. आंबेडकर बिहार के युवा सामाजिक नेता रामलखन चंदापुरी के निमंत्रण पर पटना पहुंचे थे। 

पटना से प्रकाशित ‘द इंडियन नेशन’ नामक अंग्रेजी दैनिक’ ने 6 नवम्बर, 1951 के अपने अंक में आंबेडकर के संबोधन पर तीन कॉलम की रपट छापी। डॉ आंबेडकर के चित्र सहित प्रकाशित इस रपट के अनुसार आंबेडकर ने सवर्णों को चेतावनी देते हुए कहा कि उन्हें यह जान लेना चाहिए कि समय बदल रहा है और उन्हें भी बदलना होगा।

रपट में आंबेडकर को ‘देश का पूर्व विधि मंत्री’ और ‘अनुसूचित जातियों का नेता’ बताया गया है। रपट के अनुसार, आंबेडकर ने कहा कि देश की सरकार मनु के नियमों के अनुरूप अनुसूचित जातियों के सदस्यों को उच्च पदों पर नहीं पहुंचने दे रही है। उन्होंने कहा, “देश के ग्यारह प्रान्तों में से एक का भी मुख्यमंत्री डिप्रेस्ड क्लास्सेस से नहीं है। नौकरशाही में उच्च स्तर के पद सवर्णों के लिए आरक्षित हैं जबकि चपरासियों और अन्य निम्न पदों पर अनुसूचित जातियों के सदस्यों की बहुतायत है।”

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उन्होंने कहा कि अनुसूचित जातियां अब अधीनता और अपमान सहने को तैयार नहीं है। राजनैतिक स्वतंत्रता से उनकी स्थिति में कोई फर्क नहीं आया है। “अनुसूचित जातियों और सामाजिक अन्याय के शिकार अन्य वर्गों को अपनी ताकत का अहसास होना चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि वे कुल मिलाकर देश की आबादी का 90 प्रतिशत हैं और इतनी बड़ी जनसंख्या वाले लोग भला क्यों किसी की गुलामी सहेंगे,” आंबेडकर ने कहा। 

7 नवंबर, 1951 को दैनिक अंग्रेजी समाचार पत्र “द इंडियन नेशन” में प्रकाशित खबर की छायाप्रति (साभार : इन्द्र कुमार सिंह चंदापुरी)

आंबेडकर ने कहा कि मत देने का अधिकार बहुत कीमती है और अनुसूचित जातियों को इसका बड़ी सावधानी से प्रयोग करना चाहिए। उन्हें यह तय करना होगा कि वे किसे मत दें – उनके साथ अन्याय करने वालों को, उन्हें जीवन की मूलभूत ज़रूरतों से वंचित करने वालों को या फिर उन्हें जो उनके हालात बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हैं। 

रपट आंबेडकर को यह कहते हुए उद्दृत करती है कि उनकी पार्टी को मारवाड़ी सेठों से पैसा नहीं मिलता। “मैं खुश हूं कि किसी मारवाड़ी ने कभी मेरी मदद नहीं की क्योंकि कोई मारवाड़ी बिना मतलब के किसी की मदद नहीं करता और मैं उनका मतलब पूरा करने की स्थति में नहीं हूं।”

रपट के अनुसार डॉ. आंबेडकर ने कहा कि उनका हमेशा से यह मानना रहा है कि अगर अछूत कभी अपनी सरकार बना पाए तो फिर वहां से उन्हें कोई हिला नहीं सकेगा। अगर आज तक वे अपनी सरकार नहीं बना पाए हैं तो इसका कारण यह है कि उनमें से कुछ ने ब्राह्मणों से हाथ मिला लिया और वे अपने ही अछूत साथियों को नीची निगाहों से देखने लगे। परन्तु अब उनके बीच के विभेद समाप्त हो रहे हैं और वे एक मंच पर आ रहे हैं। यह बहुत अच्छा है। इसे देखकर ऐसा लगता है कि अनुसूचित जातियों के दुःख भरे दिनों का अंत होने वाला है और एक सुनहरा भविष्य उनका इंतज़ार कर रहा है।

रपट के अनुसार आंबेडकर के भाषण के दौरान उपस्थित लोगों ने बीच-बीच में ज़ोरदार तालियां बजायीं।  

(आलेख में उद्धृत रपट ‘पिछड़ा वर्ग संदेश’ के अगस्त, 2016 अंक में संकलित)

(संपादन : नवल)


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अमरीश हरदेनिया

अमरीश हरदेनिया फारवर्ड प्रेस के संपादक (ट्रांसलेशन) हैं। वे 'डेक्कन हेराल्ड', 'डेली ट्रिब्यून', 'डेली न्यूजटाइम' और वीकली 'संडे मेल' के मध्यप्रदेश ब्यूरो चीफ रहे हैं। उन्होंने कई किताबों का अनुवाद किया है जिनमें गुजरात के पूर्व डीजीपी आर बी श्रीकुमार की पुस्तक 'गुजरात बिहाइंड द कर्टेन' भी शामिल है

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