h n

बिहार चुनाव : दूसरे चरण के मतदान के बाद दलित-बहुजनों ने कर दिया इशारा

बिहार में दो चरण के मतदान हो चुके हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के अपने दावे हैं। लेकिन बिहार के दलित-बहुजनों ने किस आधार पर वोट किया है, जायजा ले रहे हैं हुसैन ताबिश

बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान 3 नवंबर को संपन्न हो गया। 17 जिलों की 94 सीटों पर हुए इस चुनाव में कुल 54.44 प्रतिशत मतदान हुआ। सामान्य दिनों की लिहाज से यह आंकड़ा काफी निराशाजनक है, लेकिन बकौल चुनाव आयोग- इस कोरोना संक्रमण के दौरान मतदान का यह प्रतिशत संतोषजनक ही नहीं बल्कि काफी उत्साहजनक भी है। इससे पहले 28 अक्टूबर को 16 जिलों के 71 सीटों पर पहले चरण के मतदान में 53.54 फीसदी मत पड़े थे। इस तरह पहले और दूसरे चरण को मिलकार कुल 165 सीटों पर प्रदेश के मतदाताओं ने उम्मीदवारों के भविष्य का फैसला इवीएम में बंद कर दिया है।

पहले चरण की वोटिंग के बाद महागठबंधन ने दावा किया था कि 71 सीटों में से 55 या उससे भी अधिक सीटें उसके खाते में आ रही है जबकि सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन की तरफ से कहा गया था कि एनडीए सत्ता में पुनः वापसी कर रही है। दूसरे चरण के मतदान के बाद भी महागठबंधन खेमे से राजद के मनोज झा ने दावा किया है कि 94 सीटों में से 65 सीटें महागठबंधन जीत रही है। वहीं एनडीए के पथ निर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव ने एक बार फिर दोहराया है कि प्रदेश में एनडीए की सरकार बनने जा रही है। उन्होंने कहा है कि स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पानी और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं पाकर जनता सरकार से खुश है और उसने एनडीए को फिर से सरकार बनाने का आशीर्वाद दे दिया है। सभी राजनीतिक दलों और उनके समर्थकों के अपने-अपने दावे और अनुमान हैं, लेकिन बिहार के दलित-बहुजनों ने कुछ और ही संकेत दिए हैं।

बिहार में इसबार शहरी क्षेत्रों के मुकाबले गांवों में देखा जा रहा है अधिक उत्साह

समस्तीपुर के उजियारपुर विधानसभा क्षेत्र के एक बहुसंख्यक मुस्लिम और पिछड़ी जाति वाले मतदान केंद्र से मतदान कर लौट रहे रविदास टोले के लोगों ने बताया, “जिसको सब वोट दे रहा है, उसी को हम लोग भी देकर आए हैं। जो जीतेगा ही नहीं, उसे वोट देकर अपना वोट खराब क्या करना।” यहां यह गौर करने वाली बात है कि गांवों और कस्बों में अक्सर इस आधार पर एकतरफा वोटिंग का चलन देखा गया है। ऐसी हवा भी उसी दल के समर्थन में बनाई जाती है जो चुनाव में विरोधी दलों के मुकाबले ज्यादा प्रभावशाली रहता है। इसी टोले में तीन चार घर कोईरी जाति के हैं। इनमें से एक मोती सिंह कहते हैं, “पिछले साल रविदास लोग भाजपा में भाग गया था लेकिन इस बार सब ठीक है। कोईरी, कुशवाहा और पटेल का वोट भी एनडीए को इस बार बहुत कम जाएगा।” इस पूरे विधानसभा क्षेत्र में कोईरी और कुशवाहा का अधिकांश वोट महागठबंधन के कोईरी उम्मीदवार को गया है जबकि यहां से उपेन्द्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहा है। पासवान अधिकांशतः लोजपा और फिर महागठबंधन में बंटा है। इलाके के धोबी, कुम्हार, सुनार, राम, महतो, ततमा और चैरसिया का अधिकांश वोट महागठबंधन के खाते में जाता दिखा है। पास के मिश्रा टोला से मतदान केंद्र पर जाती संभ्रांत महिलाओं के एक समूह ने कहा, इस बार वह परिवर्तन चाहती हैं। नीतीश कुमार तो 15 साल से मुख्यमंत्री हैं, उन्हें जितना करना था उन्होंने किया है। वह बहुत काम किए हैं, लेकिन अब नए लोगों को भी अवसर मिलना चाहिए।” 

यह भी पढ़ें – बिहार चुनाव : क्या ‘आरक्षण’ से पूरी होंगी नीतीश कुमार को सत्ता वापसी की उम्मीद?

पहली बार वोट करने जा रही इसी समूह की एक युवती ने कहा, “जो शिक्षा और रोजगार देगा हमारा वोट उसी को जाएगा।” हालांकि इन्हीं महिलाओं की टोली से थोड़ा पीछे चल रहे कमलू पासवान कहते हैं, “हम मोदी को वोट देंगे। लाॅकडाउन में जो अनाज और 500 रुपया दिया है, उसे कैसे भूल जाएगा आदमी। आंख का पानी भी कोई चीज है कि नही।” कुछ महिलाएं भी उज्जवला योजना की बात कर एनडीए पर भरोसा जताती हुई मिलीं। इलाके के सहनी और मांझी के वोटों में महागठबंधन सेंध लगाने में लगभग विफल रहा है। इलाके के अधिकांश सहनी वोटर वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) के कारण एनडीए के पाले में गए हैं। जातियों के समीकरण को साधने में महागठबंधन ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा है। कई सीटिंग उम्मीदवारों के भी टिकट काट कर नए चेहरे उतारे गए हैं, जिसका फायदा उसे दिखता नजर आ रहा है। 

राजद ने इस बार मुसलमानों में अति पिछड़े को भी साधने की कोशिश की है। मुजफ्फरपुर के कांटी विधानसभा क्षेत्र से पहली बार राजद ने किसी अति पिछड़े मुसलमान के रूप में इस्राइल मंसूरी को टिकट दिया है।  

अबतक दो चरणों के मतदान में मुस्लिम मतदाताओं ने भी बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा लिया है। मुस्लिम महिलाओं द्वारा भी पूरी मुस्तैदी के साथ अपना वोट डालने की खबर है। पूर्वी चंपारण के चकिया विधानसभा क्षेत्र में जदयू के पोलिंग एजेंट फिरदौस आलम कहते हैं, इस बार मुस्लिम मतों का पूरी तरह महागठबंधन की तरफ धुव्रीकरण हो गया है। मुस्लिम बहुल मतदान केंद्रो पर एकतरफा महागठबंधन के समर्थन में मतदान हुआ है। फिरदौस कहते हैं कि नीतीश सरकार ने ईबीसी कोटे में जिन पिछड़े मुसलमानों को लाभ पहुंचाया था, वह भी इस बार नीतीश के पाले में दिखते नजर नहीं आ रहे हैं। इस श्रेणी का मुस्लिम मत बहुत कम संख्या में नीतीश कुमार को मिलने की संभावना है।

यह भी पढ़ें –बिहार चुनाव : संविधान के पक्ष में मुसलमान, सत्ता में नुमाइंदगी और सुरक्षा का सवाल भी अहम

इस पूरे चुनाव प्रचार और मतदान के दौरान महागठबंधन और उसके घटक दलों में काफी उत्साह और अव्वल दर्जे का आत्मविश्वास देखा जा रहा है। नेता पूरी तरह अपनी जीत को लेकर आश्वस्त दिख रहे हैं। यहां तक कि समर्थकों में भी असीम उर्जा का अनुभव आसानी से किया जा सकता है। यहां समर्थक काफी मुखर भी दिख रहे हैं। वह अपनी बात या अपना समर्थन और विरोध प्रकट करने में असहज बिल्कुल नहीं दिख रहे हैं। महागठबंधन खेमे में वैसा ही उत्साह और आत्मविश्वास नजर आ रहा है, जो 2014 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और भाजपा के पक्ष में उनके समर्थकों के बीच दिख रहा था। बिहार का पूरा माहौल इस समय महागठबंधन के पक्ष में साफ नजर आ रहा है। तेजस्वी यादव एक कद्दावर और लोकप्रिय चेहरे के तौर पर सामने आ रहे हैं।

हालांकि सिर्फ इन आधारों पर यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि महागठबंधन को अधिक सीटें मिल रही है और एनडीए गठबंधन को नुकसान उठाना पड़ सकता है। लेकिन दूसरे खेमे में जो खामोशी और सन्नाटा साफ तौर पर पसरा हुआ है उसके आधार पर भविष्यवाणी की जा रही है कि एनडीए के पक्ष में नतीजे नहीं आ रहे हैं और उसे नुकसान उठाना पडेगा। दूसरे चरण के मतदान के दौरान भी भाजपा के कोर वोटरों को अगर छोड़ दिया जाए तो आम मतदाताओं में पहले जैसे उत्साह और आत्मविश्वास का स्पष्ट रूप से अभाव देखा गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस बार मोदी और भाजपा की लोकप्रियता बिल्कुल नहीं दिख रही है। यहां तक कि वह सार्वजनिक विमर्श से भी बाहर है। हालांकि भाजपा को शहरी क्षेत्रों की सीटों से काफी उम्मीदें हैं और यहां उसे निश्चित तौर पर फायदा भी होगा। शहरी सीटों पर महागठबंधन को एनडीए के उम्मीदवार कड़ी टक्कर देने की हालत में है।

समस्तीपुर में निजी स्कूल संचालक और भाजपा के समर्थक अजीत गोस्वामी कहते हैं, “यह सही है कि जिन सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवारों के जीतने की प्रबल संभावना ज्यादा है वहां भाजपा के वोटर अपने उम्मीदवारों को वोट देने ही नहीं गए। उनके मन में पहले से ही बैठ चुका था कि उनके वोट देने और न देने से कुछ नहीं होने वाला है।” हालांकि जिन सीटों पर बराबरी का टक्कर है, वहां लोगों ने पूरी मुस्तैदी के साथ मतदान किया है। बहुत सी सीटों पर एनडीए के समर्थकों में इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि उम्मीदवार का चयन ठीक नहीं किया गया। कहीं राजद के पुराने उम्मीदवार तो कहीं बाहरी उम्मीदवार उनपर जबरन थोप दिए गए हैं।

एनडीए गठबंधन में भीतरघात भी काफी खतरनाक स्तर पर है। भाजपा के समर्थक और वोटर इस चुनाव में जदयू और नीतीश कुमार को बिल्कुल नजरअंदाज कर चल रहे हैं। जिन सीटों पर जदयू के उम्मीदवार खड़े हैं वहां भाजपा के वोटरों का रवैया काफी उदासीन देखा जा रहा है। यहां तक कि भाजपा के कार्यकर्ता और नेता भी सरकार की प्रत्येक कमियों का खामियाजा नीतीश कुमार के सर मढ़ते रहे हैं जबकि सरकार में दोनों की बराबर की हिस्सेदारी रही है। भाजपा के वोटर राजेश चौधरी कहते हैं, “उनका वोट बदलाव के लिए पड़ा है। इस सरकार से हमें भ्रष्टाचार को निकालना है।” राजेश चौधरी के संकेतों को बखूबी समझा जा सकता है।  

बहरहाल, बिहार के दलित-बहुजन मतदाताओं की मानें तो बिहार की राजनीति की नयी तस्वीर अब साफ होने लगी है। हालांकि अभी भी 78 सीटों पर मतदान होना शेष है। इनमें सीमांचल तथा कोसी के इलाके हैं । ये वे इलाके हैं जहां मुस्लिम आबादी अपेक्षाकृत अधिक है। अब परिणाम क्या होगा, यह तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा।

(संपादन : नवल)

लेखक के बारे में

हुसैन ताबिश

हुसैन ताबिश बिहार के वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं

संबंधित आलेख

नई भूमिका में बिहार तैयार
ढाई हजार वर्ष पहले जब उत्तर भारत का बड़ा हिस्सा यज्ञ आधारित संस्कृति की गिरफ्त में आ चुका था, यज्ञ के नाम पर निरीह...
अखबारों में ‘सवर्ण आरक्षण’ : रिपोर्टिंग नहीं, सपोर्टिंग
गत 13 सितंबर, 2022 से सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ईडब्ल्यूएस आरक्षण की वैधता को लेकर सुनवाई कर रही है। लेकिन अखबारों...
यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...