‘इकोनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली’ के अक्टूबर 2007 के अंक में प्रकाशित अपने शोधप्रबंध “सोशल एक्सक्लूजन, रेजिस्टेंस एंड डेरास: एक्सप्लोरिंग द मिथ ऑफ़ कास्टलेस सिक्ख सोसाइटी इन पंजाब” में पंजाब विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक रोनकी राम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि पंजाब में जिस तरह का सामाजिक भेदभाव है वह भारत के अन्य हिस्सों में व्याप्त ब्राह्मणवादी जातिगत पदक्रम से बहुत भिन्न है। वे लिखते हैं, “दलित सिक्खों को आज भी ‘अलग’ माना जाता है परन्तु जाट सिक्खों के सामाजिक वर्चस्व की तुलना ब्राह्मणवादी जातिगत पदक्रम से नहीं की जा सकती। अगर जाट सिक्खों का समाज में बोलबाला है तो उसका कारण है उनका ‘सतत और कठिन श्रम’, उनका बहुत अच्छा किसान होना, उनका जातिगत रूप से एकसार होना, योद्धा के रूप में उनकी प्रतिष्ठा, सिक्ख समुदाय में उनकी बड़ी आबादी और राज्य के सत्ता केन्द्रों पर उनकी पकड़। दलित भी उतने ही मज़बूत और मेहनती हैं और राज्य में उनकी आबादी जाट सिक्खों के लगभग बराबर है। परन्तु सिक्ख धर्म को अपनाने और आर्थिक स्थिति में सुधार के बावजूद उन्हें समाज में निचला दर्जा प्राप्त है।”