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धर्म, समाज और जाति व्यवस्था को लेकर पेरियार-गांधी के बीच ऐतिहासिक बहस

पेरियार ने गांधी से कहा, “हिंदू धर्म की मदद से स्थायी और बड़ा कर पाना आपके लिए संभव नहीं है। ब्राह्मण आपको ऐसा करने की अनुमति नहीं देंगे। यदि आपने उनके हितों के विरुद्ध कुछ भी किया तो वे आपके खिलाफ युद्ध छेड़ देंगे।” ओमप्रकाश कश्यप की प्रस्तुति

ई. वी. रामासामी पेरियार (17 सितंबर 1879 – 24 दिसंबर 1975) पर विशेष

[वर्ष 1927 में पेरियार और गांधी के बीच यह बातचीत बंगलौर में हुई जो उन दिनों मैसूर का हिस्सा था। यह ऐतिहासिक बातचीत डॉ. बी. एस. चंद्रबाबू की पुस्तक ‘सोशल प्रोटेस्ट इन तमिलनाडु’, इमरेल्ड प्रकाशन, चेन्नई में परिशिष्ट के रूप में शामिल है, जिसे उन्होंने इंदु मदान की तमिल पुस्तक, गांधियारम-परियारम (‘द हिंदू रिलीजन : गांधी एंड पेरियार’), वेल्लुवर पथिअप्पगम, इरोड, 1948, पेज 10-17, से अँग्रेजी में अनूदित कर ऊपर्युक्त पुस्तक में संग्रहित किया है। इस ऐतिहासिक बातचीत को हिन्दी में अनुवाद ओमप्रकाश कश्यप ने किया है। इस बहस में गांधी महज एक प्रतीक हैं। उनकी जगह कोई धर्म-धुरंधर आचार्य भी होता तो लगभग उन्हीं तर्कों को देता। कारण है कि धर्म के पक्ष में कहने के लिए उसके समर्थकों के पास ‘आस्था’ और ‘विश्वास’ के अलावा और कोई तर्क होता ही नहीं है। इसलिए छोटे-से-छोटा तथा बड़े-से-बड़ा धर्माचार्य भी धर्म को अनुकरण का मामला बताकर, विमर्श की सभी संभावनाओं से बच निकलता है। उसकी बातों पर विश्वास कर आस्था की डगर चलते हुए, भोले-भाले लोग कब अज्ञान की राह पर निकल पड़ते हैं— यह उन्हें पता ही नहीं चलता]

पेरियार : हिंदू धर्म को मिट जाना चाहिए।

गांधी : क्यों?

पेरियार : हिंदू धर्म नाम का कोई धर्म ही नहीं है।

गांधी : वह है।

पेरियार : यह ब्राह्मणों द्वारा फैलाई गई भ्रांति है।

गांधी : सभी धर्म ऐसे ही हैं।

पेरियार : नहीं! दूसरे धर्मों का इतिहास है, आदर्श हैं और कुछ सिद्धांत हैं, जिन्हें लोग स्वीकार करते हैं।

गांधी : क्या हिंदू धर्म में ऐसा कुछ नहीं है?

पेरियार : वहां कहने लायक क्या है? सिवाय जातीय भेदभाव और ऊंच-नीच जैसे ब्राह्मण, शूद्र और पंचम (अछूत) के उसकी कोई आचार संहिता नहीं है। न ही उसका कोई साक्ष्य है। इस जन्माधारित विभाजन में भी ब्राह्मणों को ऊंचा माना जाता है। जबकि शूद्र और पंचम को नीची जाति का कहा जाता है।

गांधी : कम से कम इसमें ये सिद्धांत तो हैं।

पेरियार : बिलकुल हैं। मगर क्या उपयोग है इनका? इनके अनुसार ब्राह्मण ऊंची जाति में जन्मे हैं; यथा मेरा और आपका संबंध निचली जाति से है।

गांधी : आप गलत कहते हैं। वर्णाश्रम धर्म में ऊंची जाति और नीची जाति जैसा कोई विभाजन नहीं है।

पेरियार : आप ऐसा कह तो सकते हैं। मगर रोजमर्रा के जीवन में ऐसा कहीं देखने में नहीं आता। [भेदभाव हर स्तर पर है]

गांधी : नहीं। समानता है और उसे व्यावहारिक रूप से देखा जा सकता है।

पेरियार : जब तक हिंदू धर्म है, तब तक कोई इसे [समानता] हासिल नहीं कर सकता।

गांधी : हिंदू धर्म का पालन करते हुए व्यक्ति इसे हासिल कर सकता है।

पेरियार : यदि ऐसा है तो ब्राह्मण-शूद्र के बीच अंतर दर्शाने वाले धार्मिक साक्ष्यों के बारे में क्या कहेंगे?

गांधी : आप केवल इस बारे में तर्क दें कि हिंदू धर्म के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है।

पेरियार : मैं कह चुका हूं कि ऐसा कोई धर्म है ही नहीं। इसलिए उसको सिद्ध करने के लिए कोई प्रमाण भी नहीं है। यदि धर्म के अस्तित्व को स्वीकार लिया जाए, तो प्रकारांतर में उसका अस्तित्व भी स्वत: प्रमाणित हो जाता है।

गांधी : हम धर्म को स्वीकार कर, उसके समर्थन में साक्ष्य जुटा सकते हैं।

पेरियार : यह असंभव है। यदि धर्म की उपस्थिति को स्वीकार लिया गया तो उससे जुड़ी चीजों में कुछ भी बदलना या सुधार करना असंभव होगा।

गांधी : जहां तक दूसरे धर्मों का संबंध है, आप जो कह रहे हैं, वह सही है। किंतु हिंदू धर्म के बारे में यह सच नहीं है। इसे स्वीकारने के बाद आप कुछ भी कर सकते हैं; और इसके नाम पर कर सकते हैं। उस पर कोई भी आपत्ति नहीं करेगा।

पेरियार : आप यह कैसे कह सकते हैं? कौन इससे सहमत होगा? क्या आप इस काम में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं?

गांधी : आपने जो भी कहा वह सच है। मैं मानता हूं कि इस तरह से हिंदू धर्म नामक कोई धर्म नहीं है। मैं इससे भी सहमत हूं कि इसकी कोई निश्चित आचार-संहिता नहीं है। इसीलिए मैं कहता हूं कि अपने ऊपर हिंदू का ठप्पा लगाकर हम, जो भी आदर्श हमें पसंद हैं, वही आदर्श हम इसके लिए निर्धारित कर सकते हैं। मैं तो कहूंगा कि केवल हिंदू धर्म ही लोगों को सही दिशा में ले जा सकता है। चूंकि दूसरे धर्मों का इतिहास, सिद्धांत और साक्ष्य मौजूद हैं, इसलिए यदि कोई उनमें बदलाव करता है तो वे समाप्त हो जाएंगे। ईसाइयों को वही करना चाहिए जो जीसस और बाइबिल ने कहा है। इसी तरह मुस्लिम वैसा ही जीवन जीते हैं, जैसा पैगंबर मोहम्मद साहब और कुरान ने उन्हें जीने को कहा है। उनमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन करना, इन धर्म ग्रंथों में दिए गए धर्मादेशों के विरुद्ध है। जो इनके धर्मादेशों को मानने से इन्कार करते हैं, वे इनसे बाहर आ सकते हैं। मगर भीतर रहकर सवाल उठाने की अनुमति उन्हें नहीं होती। दूसरे धर्मों का यही असली चरित्र है। उनसे अलग, हिंदू धर्म में कोई भी आगे आकर, बिना किसी बाधा-आक्षेप के कुछ भी उपदेश दे सकता है। इस धर्म ने कई महान व्यक्तित्व हमें दिए हैं, उन्होंने बहुत-सी अच्छी बातें कही हैं। इसलिए हिंदू धर्म में रहते हुए हम इसे सुधार सकते हैं तथा मनुष्यता के हित में अनेक अच्छे कार्य कर सकते हैं।

पेरियार : माफ करना, यह संभव नहीं है।

गांधी : क्यों?

पेरियार और गांधी

पेरियार : हिंदू धर्म का आत्मकेंद्रित समूह आपको ऐसा करने की अनुमति नहीं देगा।

गांधी : आप ऐसा क्यों कहते हैं? क्या हिंदू इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि इस धर्म में अस्पृष्यता जैसी कोई चीज नहीं है?

पेरियार : नीति व वचनों को स्वीकार करने तथा उनपर अमल करने में बड़ा अंतर होता है। इसलिए इसे व्यवहार में उतारना बड़ा ही कठिन है।

गांधी : मैंने यह किया है। क्या आप नहीं मानते कि पिछले चार-पांच वर्षों में सुस्पष्ट बदलाव देखने में आए हैं?

पेरियार : मैं समझता हूं, लेकिन वास्तव में कोई बदलाव नहीं हुआ है। यह केवल आपकी लोकप्रियता के कारण है। इस कारण भी है कि उन्हें आपकी जरूरत है। इसलिए स्वहित से परे जाकर वे आपकी आज्ञाओं का पालन करने का दिखावा करते हैं। बदले में आप उनपर विश्वास करते हैं।

गांधी : (हंसकर) वे कौन हैं?

पेरियार : सभी ब्राह्मण।

गांधी : क्या ऐसा है?

पेरियार : बिलकुल! उसी मंतव्य के साथ, सभी ब्राह्मण जो आपके साथ हैं।

गांधी : क्या आप किसी भी ब्राह्मण पर भरोसा नहीं करते?

पेरियार : वे मुझे लुभाने में नाकाम रहे हैं।

गांधी : क्या आप राजगोपालाचारी पर भी विश्वास नहीं करते?

पेरियार : वे भले हैं, ईमानदार हैं; और उन्होंने बलिदान भी दिए हैं। किंतु ये नेक काम उन्हें अपने समुदाय की भलीभांति सेवा करने में मदद करते हैं। इसमें वे नि:स्वार्थ भी हैं। लेकिन उनके हितों के लिए मैं अपने समुदाय के हितों को गिरवी नहीं रख सकता।

गांधी : मैं यह सुनकर हैरान हूं। यदि कसौटी है, तो आपकी राय में दुनिया-भर में ईमानदार ब्राह्मण को खोज पाना बड़ा मुश्किल है।

पेरियार : हो सकता है या नहीं भी हो सकता। मैंने ऐसा कोई ब्राह्मण नहीं देखा।

गांधी : ऐसा मत कहिए … मैं ऐसे ब्राह्मण से मिल चुका हैं। आज भी मैं उन्हें श्रेष्ठ ब्राह्मण मानता हूं, वे हैं—गोपाल कृष्ण गोखले।

पेरियार : आप जैसा महात्मा भी पूरी दुनिया में केवल एक नेक ब्राह्मण को खोज पाया है। फिर मेरे जैसे साधारण पापी के लिए, किसी अच्छे ब्राह्मण की खोज करना भला कैसे संभव है?

गांधी : (हंसते हुए) संसार हमेशा ही बुद्धि के नियंत्रण में रहा है। ब्राह्मण पढ़े-लिखे हैं। वे हमेशा ही दूसरों पर शासन करते रहेंगे। इसलिए उनकी आलोचना करने से किसी का किसी लाभकारी उद्देश्य की सिद्धि असंभव है। दूसरे लोगों को भी उनके स्तर तक पहुंचना पड़ेगा।

पेरियार : दूसरे धर्मों में हमें ऐसे लोग दिखाई नहीं पड़ते। केवल यहीं पर, हिंदू धर्म में ही, ब्राह्मण बुद्धिजीवी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। बाकी 90 प्रतिशत लोग या जो अशिक्षित रह जाते हैं अथवा अज्ञानी। इसलिए, यदि किसी समाज में उसका केवल एक समूह बुद्धिमान, पढ़े-लिखे और साहित्यकार वर्ग में गिना जाता है, तो क्या यह उस समाज के बाकी वर्गों के लिए हानिकारक नहीं है! इसी कारण है मैं हमेशा जोर देता आया हूं कि धर्म जो इस विसंगति का मुख्य कारण है— को समाप्त हो जाना चाहिए।

गांधी : आप किस ओर हैं? क्या मैं मान सकता हूं कि आप हिंदू धर्म के उच्छेद के साथ-साथ समाज से ब्राह्मणों को खत्म करने के भी पक्ष में है?

पेरियार : यदि यह बनावटी हिंदू धर्म समाप्त हो जाता है, तो कोई भी ब्राह्मण नहीं रहेगा। हम मेहनतकश (शूद्र) वर्ण से हैं। सब कुछ ब्राह्मणों के हाथों में है।

गांधी : यह सही नहीं है। क्या अब वे मेरी नहीं सुनेंगे? हिंदू धर्म के झंडे तले एकजुट होकर हम अब भी इसके नकारात्मक पक्षों को दूर करना चाहेंगे।

पेरियार : मेरी विनम्र राय है कि आप इस लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर सकते। यदि आप ऐसा कर पाए तो भविष्य में आप जैसा ही कोई महान व्यक्तित्व सामने आकर आपकी सारी मेहनत पर पानी फेर देगा।

गांधी : यह कैसे संभव होगा?

पेरियार : आपने पहले कहा है कि हिंदू धर्म के नाम पर कोई भी व्यक्ति जनता की विचारधारा को व्यक्ति-विशेष की विचारधारा का अनुगामी बना सकता है। इसी का अनुसरण करते हुए भविष्य में कोई भी बड़ा व्यक्तित्व हिंदू धर्म के नाम पर कुछ भी कर सकता है।

गांधी : भविष्य में किसी भी व्यक्ति द्वारा परिवर्तन की कोशिश करना व्यावहारिक नहीं है।

पेरियार : यह कहने के लिए मुझे क्षमा करें। हिंदू धर्म की मदद से स्थायी और बड़ा कर पाना आपके लिए संभव नहीं है। ब्राह्मण आपको ऐसा करने की अनुमति नहीं देंगे। यदि आपने उनके हितों के विरुद्ध कुछ भी किया तो वे आपके खिलाफ युद्ध छेड़ देंगे। आज तक किसी भी महापुरुष ने बदलाव की कोशिश नहीं की है। यदि किसी ने ऐसा करने की कोशिश की तो ब्राह्मण कभी उसे वैसा करने का अवसर नहीं देंगे।

गांधी : आपके भीतर ब्राह्मणों के प्रति नफरत भरी हुई है। वही आपकी चिंतनधारा को सर्वाधिक प्रभावित करती है। मैं सोचता हूं कि अपनी बातचीत के दौरान अभी तक हम किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं। यद्यपि हम भविष्य में दूसरी या तीसरी बार मिलेंगे और अपने पक्ष के बारे में फैसला करेंगे।

(संपादन : नवल)


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ओमप्रकाश कश्यप

साहित्यकार एवं विचारक ओमप्रकाश कश्यप की विविध विधाओं की तैतीस पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। बाल साहित्य के भी सशक्त रचनाकार ओमप्रकाश कश्यप को 2002 में हिन्दी अकादमी दिल्ली के द्वारा और 2015 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के द्वारा समानित किया जा चुका है। विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में नियमित लेखन

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