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जोगेंद्रनाथ मंडल : बंगाल में दलित राजनीति के प्रणेता

जोगेंद्रनाथ मंडल के समग्र जीवन का विश्लेषण करने पर हम पाएंगे कि यह भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य ही है कि वह उनका समर्थन न कर उन्हें पाकिस्तान जाने पर बाध्य किया। लेकिन उनकी लड़ाई दलित समाज की हुंकार की लड़ाई थी, दलित समाज के आत्मसम्मान की लड़ाई थी। बता रहे हैं कार्तिक चौधरी

महाप्राण जोगेंद्रनाथ मंडल (29 जनवरी, 1904 – 5 अक्टूबर, 1968) पर विशेष

बंगाल के चर्चित दलित साहित्यकार कपिल कृष्ण ठाकुर ने अपने लेख में जोगेंद्रनाथ मंडल को भारतीय राजनीति की त्रासदी का नायक माना है। जोगेंद्रनाथ मंडल ने अपना पूरा जीवन समाज को समर्पित किया था। सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए वे प्रतिबद्ध थे। इसी प्रतिबद्धता के कारण उन्होंने अनेक फैसले समय के अनुसार लिए जिनका वर्तमान समय से विश्लेषण न कर, तत्कालीन समय के संदर्भ में देखना आवश्यक है। तभी हम महाप्राण जोगेंद्रनाथ मंडल के जीवन और नीति को सही मायने में समझ पाएंगे।

जोगेंद्रनाथ मंडल के समग्र जीवन का विश्लेषण करने पर हम पाएंगे कि यह भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य ही है कि वह उनका समर्थन न कर उन्हें पाकिस्तान जाने पर बाध्य किया। लेकिन उनकी लड़ाई दलित समाज की हुंकार की लड़ाई थी, दलित समाज के आत्मसम्मान की लड़ाई थी।

जोगेंद्र नाथ मंडल का जन्म 29 जनवरी, 1904 को अविभाजित बंगाल के बोरिसाल जिले के गौर नदी थाना के अंतर्गत मौस्तारकांदी गांव में एक कृषिजीवी नमोशुद्र परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम रामदयाल मंडल और माता का नाम संध्यारानी मंडल था। अपने माता-पिता के सबसे छोटे संतान जोगेंद्रनाथ मंडल के मन में बचपन से ही पढ़ाई के प्रति ललक थी। वे हर हाल में पढ़ना चाहते थे। वर्ष 1924 में उन्होंने आरम्भिक परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त किया। फिर वर्ष 1929 में स्नातक की परीक्षा पास कर लॉ में दाखिला लिया ।उन्होंने 1934 में अपनी लॉ की डिग्री पूरी कर ली। परंतु न तो कोई नौकरी की और ना ही वकालत को पेशा बनाया। अपने समाज की सामाजिक और आर्थिक बदहाली को देखते हुए उन्होंने समाज को प्राथमिकता दी और आंदोलन के रास्ते को चुना। 

जोगेंद्रनाथ मंडल (29 जनवरी, 1904 – 5 अक्टूबर, 1968)

वे अपने समय के सामाजिक हालातों को जानते थे कि किस तरह वर्ण व्यवस्था ने समाज में खाई पैदा कर दी है। यह खाई सामाजिक तो थी ही, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक भी थी। उस समय दलित समाज के लोग एक तरफ अस्पृश्यता, गैरबराबरी, असमानता के दंश को झेल रहा था तो दूसरी ओर आर्थिक तंगी से उत्पन्न लाचारी को। उन्होंने नमोशुद्र जाति के साथ बंगाल के केवर्त, मोची, पौंड्र, राजबंशी, मेहतर और साहा जाति को भी अपने आंदोलन से जोड़ा, क्योंकि नमोशुद्र के अलावा यह जातियां भी अस्पृश्यता और आर्थिक स्थिति से पूरी तरह पिछड़ी हुई थीं। इसके साथ उन्होंने मुस्लिम संप्रदाय के भी धर्मांतरित समाज को भी अपने आंदोलन के लिए संगठित किया। वजह यह रही कि मुस्लिम समाज की धर्मान्तरित जातियों को भी अपने समाज में वह मान मर्यादा हासिल नहीं था, जो उन्हें मिलनी चाहिए थी। साथ ही, यह जातियां भी आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी थीं। 

दिलीप गायेन ने भी अपने लेख में लिखा भी है कि “जोगेंद्रनाथ मंडल ने अस्पृश्य और आर्थिक रूप से बदहाल दलित और मुसलमानों को आगे लाने के लिए अपने जीवन को बिना किसी स्वार्थ के लगा दिया। उनके समतावादी दृष्टि में दलित और मुस्लिम दोनों समान थे। अतः बंगाली दलित समाज में योगेंद्र नाथ की तरह अभी तक कोई अन्य नहीं हुआ है।” 

राजनीतिक जीवन

ब्रिटिश भारत में 14 अगस्त, 1932 को सरकार ने चुनाव का प्रस्ताव पारित किया। इसके अनुसार बंगाल में 250 सीटों पर चुनाव होना तय हुआ। लेकिन इस चुनाव में जोगेंद्रनाथ नहीं लड़ सके। जोगेंद्रनाथ मंडल का राजनीतिक जीवन का आरंभ 1937 में हुआ जब उन्होंने निर्दलीय वाखरगंज उत्तर पूरब से सामान्य सीट से बतौर निर्दलीय लड़े। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के जिला समिति के अध्यक्ष सरकल कुमार दत्त को हराकर विजय प्राप्त किया। 

इसी चुनाव में फजीलूल हक की कृषक प्रजा पार्टी 40 सीटें जीती। मुस्लिम लीग ने 39 सीटों और स्वतंत्र मुस्लिम पार्टी ने 42 सीटों पर जीत प्राप्त किया। अंत मे फजीलूल हक के नेतृत्व में बंगाल में पहली बार 1 अप्रैल, 1937 को मिलीजुली सरकार का गठन हुआ। वर्ष 1938 के आरंभ में जोगेंद्रनाथ मंडल ने 20 दलित विधायकों को लेकर इंडीपेंडेंट शेड्यूल कास्ट पार्टी का गठन किया। हेमचन्द्र नस्कर को महासचिव बनाया गया। 

दलितों के हित के लिए रखी शर्तें

इस पार्टी ने अपने समाज के हित के लिए कुछ शर्तें रखी थीं, जिनकी अवमानना करने पर वह फजीजुल हक के पार्टी से 29 जुलाई, 1938 को अलग होकर विधानसभा में विपक्ष में चले गए। लेकिन फजीजुल हक सरकार में बने रहे। जोगेंद्रनाथ मंडल ने अपनी पार्टी के तहत जो शर्तें रखी थीं, उनमें शामिल थे– 

  1. कृषकों के कर्ज को सरकार खत्म करे
  2. शराब पर पूरी तरह पाबंदी लगे
  3. सरकारी नौकरियों में दलितों के लिए आरक्षण

समय बीतने के साथ जोगेंद्रनाथ मंडल सूबाई सियासत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे थे। 28 मार्च, 1943 श्यामा प्रसाद मुखर्जी और फजीजुल हक ने अपनी सरकार बचाने के लिए जोगेंद्रनाथ मंडल से सहयोग मांगा। उस समय जोगेंद्रनाथ मंडल ने तीन प्रस्ताव दिया और कहा कि अगर इसको लागू किया जाता है तो वह समर्थन करेंगे। इन तीन प्रस्तावों में शामिल हैं– 

  1. मंत्रिपरिषद में तीन अनुसूचित जाति के लोगों को कैबिनेट मंत्री और तीन को सचिव का पद देना होगा।
  2. अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के लिए छात्रावास का निर्माण और प्रोत्साहन राशि के रूप में प्रत्येक वर्ष 5 लाख रुपए खर्च करने होंगे।
  3. सरकारी नौकरियों में आबादी के अनुसार अनुसूचित जाति को आरक्षण दिया जाय।

लेकिन उनके इन प्रस्तावों को श्यामा प्रसाद मुखर्जी और फजीजुल हक की पार्टी ने नहीं माना। यही कारण रहा कि उन्होंने मुस्लिम लीग को अपना समर्थन दिया। मुस्लिम लीग के निजामुदिन की सरकार 24 अप्रैल, 1943 को बनी, जिसमें जोगेंद्रनाथ मंडल के प्रस्ताव को मान लिया गया। उनके प्रस्ताव के अनुसार अनुसूचित जाति के तीन कैविनेट मंत्री जोगेंद्रनाथ मंडल, प्रेम हरि बर्मन, पुलिन बिहारी मल्लिक हुए और 3 सचिव के पद पर अनुकूलचंद्र नस्कर, बनकुबिहारी मंडल और रशिकलाल बिस्वास हुए।

यह भी पढ़ें : बांग्ला दलित साहित्य में हम किसी को देवता नहीं बनाएंगे : मनोरंजन ब्यापारी

प्रस्ताव के मुताबिक अनुसूचित जाति के लोगों को नौकरी में आरक्षण देने के लिए पहल की गई। साथ ही छात्रावास के निर्माण और छात्रवृति को भी लागू किया। कलकत्ता के बहु बाजार के करीब निर्मल चंद्र स्ट्रीट के समीप उदार छात्रावास का निर्माण जोगेंद्रनाथ मंडल के माध्यम से ही उस समय हुआ था।

वर्ष 1946 के मार्च में विधानसभा का फिर चुनाव हुआ जिसमें मुस्लिम लीग ने 115 सीटें जीतीं। कांग्रेस के टिकट पर अनुसूचित जाति के 26 उम्मीदवार, 3 निर्दलीय और आंबेडकर जोगेंद्र अनुसूचित फेडरेशन से जिसमें जोगेंद्रनाथ मंडल विजयी हुए। वर्ष 24 अप्रैल, 1946 को ब्रिटिश काल में अंतिम बंगाल सरकार का गठन हुआ, जिसमें जोगेंद्रनाथ मंडल विधि और गृह निर्माण विभाग मिला। लेकिन ठीक छह माह बाद 1 नवम्बर, 1946 को जोगेंद्रनाथ मंडल ने भारत सरकार के कानून मंत्री के रूप में अपना योगदान दिया।

डॉ. आंबेडकर को संविधान सभा का सदस्य बनाने को लगा दिया एड़ी-चोटी का जोर

डॉ. आंबेडकर को संविधान सभा में पहुंचाने का श्रेय जोगेंद्रनाथ मंडल को ही जाता है। उनका मानना था कि अगर डॉ. आंबेडकर संविधान सभा में नहीं गए तो दलित समाज को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। दरअसल, उस समय अनेक लोग चाहते थे कि डॉ. आंबेडकर को संविधान सभा में जगह नहीं मिले। इसके लिए तमाम प्रपंच किए जा रहेथे। इस संदर्भ में दिलीप गायेन ने जोगेंद्रनाथ मंडल के प्रयासों के बारे में लिखा है कि उस समय के बंगाल में सुहरावर्दी सरकार सत्ता में थी। उनके अनुसूचित जाति के विधायकों को लेकर साहस के साथ जोगेंद्रनाथ मंडल आगे बढ़े थे। बंगाल से डॉ. आंबेडकर को खड़ा कर उन्हें संविधान सभा का सदस्य बनाया गया था। उन्हें कांग्रेस के दो एमएलए गयानाथ बिस्वास और द्वारिकानाथ राय, निर्दलीय मुकुंद बिहारी मल्लिक, रंगपुर के क्षत्रिय समिति के नागेंद्रनारायण राय और अनुसूचित जाति फेडरेशन के एकमात्र एमएलए जोगेंद्रनाथ मंडल ने वोट दिया। 

पाकिस्तान से वापस लौटे

देश के विभाजन के समय हिन्दू नेताओं का समर्थन नहीं मिलने पर जोगेंद्रनाथ मंडल पाकिस्तान का रुख किया। उनके पाकिस्तान जाने के फैसले को लेकर अनेक भ्रांतियां भी फैलाई गईं। अनेक दलित साहित्यकारों और इतिहासकारों ने अपना जबाब जोगेंद्रनाथ मंडल के पक्ष में रखा है। लेकिन 11 अक्टूबर, 1948 को मोहम्मद अली जिन्ना के निधन के बाद वहां की मौजूदा सरकार का रुख पाकिस्तान में बसे गैर मुस्लिमों के लिए अच्छा नहीं था। वहां जो सांप्रदायिक दंगे हुए, उसमें सबसे ज्यादा नुकसान दलितों को हुआ। दंगे की इस विभीषिका को जोगेंद्रनाथ मंडल सहन नहीं कर पाए और वह 1950 में मंत्री पद से त्यागपत्र देकर भारत के पश्चिम बंगाल में आ गए। यहां वह बंगाल आकर डॉ. आंबेडकर की रिपब्लिकन पार्टी के लिए काम करते रहे। अक्टूबर 1968 में पार्टी के प्रचार करते हुए उनका आकस्मिक देहांत हो गया।

बांग्ला दलित साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष मनोरंजन व्यपारी का मानना है कि “जोगेंद्रनाथ मंडल के जैसा बंगाल में बहुजन समाज का कोई भी अभी तक बड़ा नेता नहीं हुआ। उन्होंने जो अपने समय सिद्धान्त तय किया था, वह महत्वपूर्ण था। उस समय की परिस्थितियों को बिना जाने, बिना समझे वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसका विश्लेषण करना तर्कसंगत नहीं है । जोगेंद्रनाथ मंडल को डॉ. आंबेडकर का साथ मिला था। अगर जोगेंद्रनाथ मंडल को डॉ. आंबेडकर का और अधिक साथ मिला होता तो बंगाल के दलित आंदोलन को व्यापक फलक मिला होता।” 

संदर्भ :

  1. पत्रिका सोजा कोथा, संपादक हर्षित सरकार ,”1947 साले बँग्लाभागेर परे योगेंद्रनाथ केन पुरबबंगाल थेके गिएछीलेंन” लेखक दिलीप गायेन
  2. पत्रिका सोजा कोथा, संपादक हर्षित सरकार,”बंगलाभागेर मूल उद्देश्यों की बहुजन आंदोलन समाप्ति”, लेखक जगदीश चंद्र राय
  3. पुस्तक ‘महाप्राण जोगेंद्रनाथ मंडल’, लेखक जगदीश चंद्र मंडल

(संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

कार्तिक चौधरी

लेखक डॉ. कार्तिक चौधरी, महाराजा श्रीशचंद्र कॉलेज (कलकत्ता विश्वविद्यालय) के हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। इनकी प्रकाशित पुस्तकों में “दलित चेतना के संदर्भ में ओमप्रकाश वाल्मीकि की कहानियां” (समालोचना), “दलित साहित्य की दशा-दिशा समकालीन परिप्रेक्ष्य में” (संपादन), “अस्मितामूलक विमर्श, दलित और आदिवासी साहित्य के संदर्भ में” (समालोचना), “बंगाल में दलित और आदिवासी कविताएं” (संपादित काव्य संग्रह) शामिल हैं। इन्हें डॉ. आंबेडकर सृजन सम्मान (2021) से सम्मानित किया गया है

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