h n

रोहिणी कमीशन की अनुशंसा पर उठे रहे सवाल

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस वी. ईश्वरैय्या के मुताबिक, देश में जब तक वैज्ञानिक तरीके से सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण नहीं हो जाता तब तक ओबीसी का उपवर्गीकरण अवैज्ञानिक और आधारहीन है। दीपक के. मंडल की खबर

पश्चिम बंगाल और असम सहित देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में भी चुनाव होने हैं। लिहाजा ओबीसी मतदाताओं को अलग-अलग खेमों में बांटने की राजनीति तेज हो गई है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अति पिछड़ा समाज के पुरखा राजा सुहेलदेव की स्मृति आयोजित एक कार्यक्रम में इसके संकेत दिए। वहीं जस्टिस रोहिणी आयोग ने पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण को बांटने का फॉर्मूला तय कर दिया है। उसके मुताबिक केंद्रीय सूची में शामिल ओबीसी की 2633 जातियों को 4 कैटेगरी में बांटा जाय और इन्हें क्रमश: 2,6,9 और दस फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की गई है। हालांकि यह आखिरी सिफारिश नहीं है। आयोग को अभी राज्य सरकारों के साथ बात करनी है और एक विस्तृत सूची और व्यापक समाधान पर सहमति कायम करनी है। इसके लिए जस्टिस रोहिणी आयोग का कार्यकाल 31 जुलाई तक बढ़ा दिया गया है। 

वहीं केंद्र सरकार के हाव-भाव ऐसे हैं, मानों उसने अपने नीर-क्षीर विवेक के साथ 27 फीसदी आरक्षण का न्यायपूर्ण बंटवारा कर दिया है और जिन जातियों को ओबीसी आरक्षण में कम हिस्सा मिल रहा है, उन्हें बस उनका ‘वाजिब’ हक मिलने ही वाला है।

(बाएं से) राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस वी. ईश्वरैय्या, पूर्व राज्यसभा सांसद हरिभाऊ राठौर, राष्ट्रीय ओबीसी महासभा के सचिव सचिन राजुरकर व जनहित अभियान के संयोजक राजनारायण

दरअसल, ओबीसी आरक्षण में वर्गीकरण के लिए जस्टिस रोहिणी कमीशन की कामचलाऊ ‘सिफारिशें’ ऐसे वक्त में सामने आई हैं, जब पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल में विधानसभा के चुनाव होने हैं। अगले साल उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भी चुनाव होने हैं, जहां भाजपा पिछड़ा और अति पिछड़ा ध्रुवीकरण का खेल पहले भी खेल चुकी है। इसलिए यह समझना मुश्किल नहीं है कि ओबीसी उपवर्गीकरण का मुद्दा इस वक्त क्यों उछाला जा रहा है। 

सरकार की नीयत पर सवाल : जस्टिस वी. ईश्वरैय्या 

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब सरकार के पास पिछड़ी जातियों से जुड़ी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है तो फिर वह ओबीसी आरक्षण का ‘न्यायपूर्ण’ बंटवारा कैसे तय करेगी? यही वजह है कि विशेषज्ञ सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं। 

आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश व राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष वी. ईश्वरैया का कहना है कि देश में जब तक वैज्ञानिक तरीके से सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण नहीं हो जाता तब तक ओबीसी का उपवर्गीकरण अवैज्ञानिक और आधारहीन है। उनका कहना है सरकार जिस तरह से जस्टिस रोहिणी की अगुआई में इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में लगी है, वह तरीका सही नहीं है क्योंकि जाति जनगणना के बगैर यह काम नहीं हो सकता है। दरअसल यह लोगों का ध्यान भटकाने का तरीका है। केंद्र सरकार केवल चुनावी लाभ के लिए ऐसा कर रही है। 

सरकार जातिगत जनगणना के लिए तैयार नहीं : हरिभाऊ राठौर

वहीं महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य व पूर्व राज्यसभा सांसद हरिभाऊ राठौर का कहना है कि उन्होंने अति पिछड़ों को ओबीसी आरक्षण दिलाने के लिए लंबा अभियान चलाया है। ओबीसी उपवर्गीकरण से अति पिछड़ी जातियों को जरूर फायदा होगा। लेकिन यह इतना आसान नहीं है। इसके लिए तार्किक ढंग से कदम उठाना होगा। अभी सरकार के पास इसकी तैयारी नहीं है और वह जाति जनगणना के लिए भी मानसिक रूप से तैयार भी नहीं है। 

बीजेपी का चुनावी स्टंट : सचिन राजुरकर

अखिल भारतीय ओबीसी महासंघ के सचिव सचिन राजुरकर भी जस्टिस ईश्वरैया से इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं कि यह भाजपा की ‘बांटो और राज करो’ की नीति है। भाजपा लगातार किसी न किसी तरह से आरक्षण को कमजोर करने के फैसले ले रही है। आखिर किस आधार पर वह ओबीसी आरक्षण के वर्गीकरण की बात कर रही है। पहले सरकार जाति जनगणना तो करा ले फिर आरक्षित जातियों के वर्गीकरण की बात करे। दरअसल यह भाजपा सरकार का राजनीतिक बयान है। वह किसी भी तरह ओबीसी जातियों में बंटवारा कर चुनावी फायदा उठाना चाहती है।

उपवर्गीकरण से पहले जाति जनगणना जरूरी : राजनारायण

27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के प्रावधान के बावजूद जस्टिस रोहिणी आयोग की ओर से ओबीसी आरक्षण के मानक तय करने की कोशिश को जनहित अभियान के संयोजक राजनारायण भी भाजपा का राजनीतिक स्टंट मानते हैं। उनका कहना है कि पहले तो सरकार नौकरियों और शिक्षा में ओबीसी का 27 फीसदी आरक्षण को लागू करवा ले, इसके बाद इसके तहत दूसरी पिछड़ी जातियों को हिस्सेदारी देने की बात करे। अभी तो हाल यह है कि सरकार 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को ही लागू नहीं करवा पा रही है। संविधान में प्रावधान के बावजूद विश्वविद्यालयों में नियुक्ति, दाखिला और सरकारी नौकरियों में किसी न किसी तरह ओबीसी आरक्षण को लटकाया जा रहा है।अब सरकार ने जस्टिस रोहिणी आयोग के जरिए नया शिगूफा छोड़ा है। आखिर सरकार के पास ओबीसी आरक्षण बंटवारा का आधार क्या है। वर्ष 2011 में जाति जनगणना हुई थी और उसके बाद इसके नतीजे सार्वजनिक नहीं किए गए। अगस्त 2018 में राजनाथ सिंह ने कहा था कि 2021 की जनगणना में जाति आधारित गणना  भी की जाएगी, लेकिन इसके बाद सरकार चुप है। इसके बाद से ओबीसी समुदाय से जुड़े लोग जाति जनगणना की लगातार मांग कर रहे हैं। सवाल यह है कि बगैर जाति की गणना किए सरकार यह कैसे तय करेगी किसे कितने आरक्षण की जरूरत होगी।

सरकारी नौकरियों और यूनिवर्सिटी में मुट्ठी भर ओबीसी भी नहीं 

सरकारी नौकरियों व शिक्षण संस्थानों में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के प्रावधान के बावजूद केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग की ओर से राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को सरकारी नौकरियों में ओबीसी प्रतिनिधित्व पर जो रिपोर्ट सौंपी गई है उसके मुताबिक केंद्र सरकार की ग्रुप ‘ए’ की नौकरियों में ओबीसी प्रतिनिधित्व 16.51 फीसदी है। ग्रुप ‘बी’ की नौकरियों में सिर्फ 13.38 फीसदी ओबीसी प्रतिनिधित्व है। ग्रुप सी की नौकरियों में यह प्रतिनिधित्व 21.25 फीसदी (सफाई कर्मचारियों को छोड़ कर) है। यह सिर्फ केंद्र सरकार के 42 मंत्रालयों और विभागों का आंकड़ा है। शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी प्रतिनिधित्व का आंकड़ा तो और भी खराब है। देश के करीब 30 राज्यों के 54 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सिर्फ नौ ओबीसी प्रोफेसर हैं। 

साफ है कि सरकार 27 फीसदी ओबीसी का कोटा लागू नहीं करवा पा रही है लेकिन उसने इसके ‘न्यायपूर्ण बंटवारे’ का मुद्दा उछाल कर ओबीसी में विभाजन का अपना कार्ड खेल दिया है। 

(संपादन : नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

दीपक के. मंडल

दीपक के. मंडल वरिष्ठ पत्रकार हैं और आर्थिक-सामाजिक विषयों पर सतत लेखन करते रहे हैं।

संबंधित आलेख

पुष्यमित्र शुंग की राह पर मोदी, लेकिन उन्हें रोकेगा कौन?
सच यह है कि दक्षिणपंथी राजनीति में विचारधारा केवल आरएसएस और भाजपा के पास ही है, और उसे कोई चुनौती विचारहीनता से ग्रस्त बहुजन...
महाराष्ट्र : वंचित बहुजन आघाड़ी ने खोल दिया तीसरा मोर्चा
आघाड़ी के नेता प्रकाश आंबेडकर ने अपनी ओर से सात उम्मीदवारों की सूची 27 मार्च को जारी कर दी। यह पूछने पर कि वंचित...
‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा में मेरी भागीदारी की वजह’
यद्यपि कांग्रेस और आंबेडकर के बीच कई मुद्दों पर असहमतियां थीं, मगर इसके बावजूद कांग्रेस ने आंबेडकर को यह मौका दिया कि देश के...
इलेक्टोरल बॉन्ड : मनुवाद के पोषक पूंजीवाद का घृणित चेहरा 
पिछले नौ सालों में जो महंगाई बढ़ी है, वह आकस्मिक नहीं है, बल्कि यह चंदे के कारण की गई लूट का ही दुष्परिणाम है।...
कौन हैं 60 लाख से अधिक वे बच्चे, जिन्हें शून्य खाद्य श्रेणी में रखा गया है? 
प्रयागराज के पाली ग्रामसभा में लोनिया समुदाय की एक स्त्री तपती दोपहरी में भैंसा से माटी ढो रही है। उसका सात-आठ माह का भूखा...