h n

मीडिया कंपनियों की पत्रकारिता बनाम सच की पत्रकारिता

सत्ता स्वतंत्र तरीके से पत्रकारिता करने वाले समाज के जागरुक नागरिकों में कुछेक को तरह-तरह से प्रताड़ित कर बाकी की जागरूकता को डराना चाहती है। किसी एक की गिरफ्तारी वास्तव में एक संदेश के लिए की जाती है जैसे हमने मिथकों में एकलव्य के रुप में देखा है। अनिल चमड़िया का विश्लेषण

मीडिया विमर्श 

अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल सभी लोग कर रहे हैं। लेकिन उन सभी पर हमले नहीं हो रहे हैं। हमले उन पर हो रहे हैं जो इस संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल कर संविधान के हिसाब से समाज को बनते देखना चाहते हैं। यानी संविधान को दो तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। एक तो संविधान के अनुरूप समाज को बनाने के लिए संविधान की धाराओं का इस्तेमाल किया जा सकता है तो दूसरे उन व्यवस्थाओं को बनाए रखने के लिए संविधान का इस्तेमाल कर सकते हैं जैसे कि संविधान से पूर्व गुलामी और गैरबराबरी की स्थिति थी। अगर मौजूदा संदर्भों की भाषा में इसे समझने की कोशिश की जाय तो एक किसानी के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल करना चाहता है तो दूसरा कंपनियों के हितों में अभिव्यक्ति की आजादी को बेच रहा है।

पूरा आर्टिकल यहां पढें : मीडिया कंपनियों की पत्रकारिता बनाम सच की पत्रकारिता

लेखक के बारे में

अनिल चमड़िया

वरिष्‍ठ हिंदी पत्रकार अनिल चमडिया मीडिया के क्षेत्र में शोधरत हैं। संप्रति वे 'मास मीडिया' और 'जन मीडिया' नामक अंग्रेजी और हिंदी पत्रिकाओं के संपादक हैं

संबंधित आलेख

नई भूमिका में बिहार तैयार
ढाई हजार वर्ष पहले जब उत्तर भारत का बड़ा हिस्सा यज्ञ आधारित संस्कृति की गिरफ्त में आ चुका था, यज्ञ के नाम पर निरीह...
अखबारों में ‘सवर्ण आरक्षण’ : रिपोर्टिंग नहीं, सपोर्टिंग
गत 13 सितंबर, 2022 से सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ईडब्ल्यूएस आरक्षण की वैधता को लेकर सुनवाई कर रही है। लेकिन अखबारों...
यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
विज्ञान की किताब बांचने और वैज्ञानिक चेतना में फर्क
समाज का बड़ा हिस्सा विज्ञान का इस्तेमाल कर सुविधाएं महसूस करता है, लेकिन वह वैज्ञानिक चेतना से मुक्त रहना चाहता है। वैज्ञानिक चेतना का...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...