h n

बुद्ध से लेकर रैदास तक बहुजन नायकों के ब्राह्मणीकरण का प्रपंच

द्विज वर्ग की हमेशा कोशिश रही है कि वह बहुजनों को अपना दास बनाए रखे। इसके लिए उसने बहुजन महानायकों को ब्राह्मण साबित करने की नाकाम कोशिशें की है। संत रैदास की जयंती के मौके पर बता रहे हैं ओमप्रकाश कश्यप

जाति जहां एक ओर बहुजनों के गले की फांस है, तो दूसरी ओर मुट्ठी-भर लोगों के लिए उनके विशेषाधिकारों का सुरक्षा-कवच है। ब्राह्मण व दूसरे सवर्ण नहीं चाहते कि जातिप्रथा समाप्त हो। वे तो चाहते हैं कि शूद्र सदैव शूद्र, दलित हमेशा दलित बना रहे। इसके लिए कदम-कदम पर साजिशें रची जाती हैं। यह षड्यंत्र जितना सामाजिक दिखता है, उससे कहीं ज्यादा मनोवैज्ञानिक है। ब्राह्मणों की सदैव कोशिश होती है कि दलित और शूद्र दोनों दिलो-दिमाग से उनके अधीन बने रहें। वे जहां भी, जिस हालत में भी हैं, उसी को अपनी नियति मान लें। इसके लिए वे न केवल गैर-ब्राह्मणों की संस्कृति में जबरन दखलंदाजी करते हैं, बल्कि उनसे उनका इतिहास, उनके महापुरुष तक छीन लेते हैं। एक उदाहरण संत रैदास का है। मसलन ‘भक्तमाल’ में एक जगह कहा गया है—

पूरा आर्टिकल यहां पढें : बुद्ध से लेकर रैदास तक बहुजन नायकों के ब्राह्मणीकरण का प्रपंच

लेखक के बारे में

ओमप्रकाश कश्यप

साहित्यकार एवं विचारक ओमप्रकाश कश्यप की विविध विधाओं की तैतीस पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। बाल साहित्य के भी सशक्त रचनाकार ओमप्रकाश कश्यप को 2002 में हिन्दी अकादमी दिल्ली के द्वारा और 2015 में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के द्वारा समानित किया जा चुका है। विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में नियमित लेखन

संबंधित आलेख

पढ़ें, शहादत के पहले जगदेव प्रसाद ने अपने पत्रों में जो लिखा
जगदेव प्रसाद की नजर में दलित पैंथर की वैचारिक समझ में आंबेडकर और मार्क्स दोनों थे। यह भी नया प्रयोग था। दलित पैंथर ने...
राष्ट्रीय स्तर पर शोषितों का संघ ऐसे बनाना चाहते थे जगदेव प्रसाद
‘ऊंची जाति के साम्राज्यवादियों से मुक्ति दिलाने के लिए मद्रास में डीएमके, बिहार में शोषित दल और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय शोषित संघ बना...
‘बाबा साहब की किताबों पर प्रतिबंध के खिलाफ लड़ने और जीतनेवाले महान योद्धा थे ललई सिंह यादव’
बाबा साहब की किताब ‘सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें’ और ‘जाति का विनाश’ को जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जब्त कर लिया तब...
जननायक को भारत रत्न का सम्मान देकर स्वयं सम्मानित हुई भारत सरकार
17 फरवरी, 1988 को ठाकुर जी का जब निधन हुआ तब उनके समान प्रतिष्ठा और समाज पर पकड़ रखनेवाला तथा सामाजिक न्याय की राजनीति...
जगदेव प्रसाद की नजर में केवल सांप्रदायिक हिंसा-घृणा तक सीमित नहीं रहा जनसंघ और आरएसएस
जगदेव प्रसाद हिंदू-मुसलमान के बायनरी में नहीं फंसते हैं। वह ऊंची जात बनाम शोषित वर्ग के बायनरी में एक वर्गीय राजनीति गढ़ने की पहल...