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पहले ब्राह्मणवाद से खुद को आजाद करें ओबीसी, नहीं तो अधूरा ही रहेगा सत्ता संघर्ष

मूल बात यही है कि जनसंख्या में सबसे अधिक होने के कारण पिछड़ी जातियों के हाथों में देश की सत्ता होनी चाहिए थी, परंतु ब्राह्मणवादी नीतियों के कारण पिछड़ी जातियों के लोग ब्राह्मणवादी व्यवस्था में गुलाम बनकर रह गए हैं। बता रहे हैं आर. जी. कुरील

बहस-तलब

महामना जोतीराव फुले (माली), छत्रपति शाहूजी महाराज (कुर्मी), पेरियार ई.वी.आर नायकर (बलिजा नायडू), पेरियार ललई सिंह यादव (यादव),  रामस्वरूप वर्मा (कुर्मी), जगदेव प्रसाद (कुशवाहा) आदि अनेक पिछड़ी जाति के चिंतकों-विचारकों ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था के चंगुल में फंसी पिछड़ी जातियों को उनकी गुलामी से मुक्ति दिलाने  की पुरजोर कोशिश की। परंतु, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि पिछड़ी जातियों ने अपने इन सामाजिक पुरोधाओं का अनुसरण नहीं किया। मान्यवर कांशीराम ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन कर इन सामाजिक न्याय के पुरोधाओं को अपने आंदोलन के महानायक बनाकर पिछड़ी जातियों के सहारे देश की सत्ता की बागडोर ब्राह्मणवादी शक्तियों से छीन कर दलितों-बहुजनों के हाथ में सौंपने का पुरजोर प्रयास किया। परंतु, पिछड़ी जातियां कभी भी उनका नेतृत्व स्वीकार नहीं कर सकीं। उल्टे पिछड़ी जातियों के नेता ब्राह्मणवाद की पालकी ढोते हुए न तो खुद कभी सत्ता के शिखर तक पहुंच सके और ना ही अपने पिछड़े समाज को ब्राह्मणवाद की गुलामी से मुक्ति दिला सके।

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लेखक के बारे में

आर.जी .कुरील

भारत सरकार के डाक विभाग में पूर्व अधिकारी रहे आर.जी .कुरील सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों ‘भागीदारी : क्यों और कैसे’, ‘जिंदगी की सिलवटें’ (आत्मकथा), ‘बहुजन दोहावली’ (काव्य संग्रह) व ‘बहुजन हुंकार’ (काव्य संग्रह) शामिल है। संप्रति वे मासिक पत्रिका ‘बहुजन सवेरा’ के संपादक हैं।

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