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विश्व सूचकांक बताते हैं भारत व इसके बहुजनों की बदहाली

आज विश्व स्तर पर कई तरह के सूचकांक जारी किए जाते हैं जिनसे किसी भी राष्ट्र की दशा और दिशा का पता चलता है। यदि हम भारत को केंद्र में रखकर देखें तो हम पाते हैं कि अनेक सूचकांकों के मामले में भारत लगातार पिछड़ता जा रहा है। बता रहे हैं अभिनव कटारिया

केंद्र की एनडीए सरकार भारत को विश्व गुरु बनाने की बात बार-बार कह रही है। इसके लिए तमाम आंकड़े सरकार द्वारा जारी किए जा रहे हैं। लेकिन सवाल यही है कि क्या वाकई सरकार भारत को विश्व के अग्रणी देशों में लाने की दिशा में कार्य कर रही है? यह सवाल इस वजह से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अनेक सूचकांकों के अनुसार भारत की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। 

निश्चित तौर पर जब भारत की स्थिति विभिन्न सूचकांकों में बेहतर होगी, तभी कहा जा सकता है कि भारत विश्व गुरु बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। यह तभी संभव है जब बहुसंख्यक बहुजनों को विकास की प्रक्रिया में साझेदार बनाया जाय व उन्हें समुचित भागीदारी मिले। अगर आंकड़े इसके विपरीत हैं तो हमें निश्चय ही बिना किसी दबाव के सहमत होना होगा कि हम केवल मीडिया माध्यमों में सरकारी नीतियों के अथाह विज्ञापनों के माध्यम से ऐसा कहने का एकमात्र झूठा व भ्रामक प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। भारतीय जनमानस को यह समझ लेना चाहिए कि वास्तविक सूचनाओं का अभाव और गलत सूचनाएं हमेशा हमें मानसिक गुलामी के अलावा कुछ नहीं दे सकती हैं। इसलिए मानसिक गुलामी से निकलने के लिए तथ्यपरक सूचनाओं का आदान-प्रदान अति आवश्यक है। 

अनेक विश्व स्तरीय सूचकांकों के मामले में भारत पड़ोसी देशों से भी पीछे

आज विश्व स्तर पर कई तरह के सूचकांक जारी किए जाते हैं, जिनसे किसी भी राष्ट्र की दशा और दिशा का पता चलता है। यदि हम भारत को केंद्र में रखकर देखें तो हम पाते हैं कि अनेक सूचकांकों के मामले में भारत लगातार पिछड़ता जा रहा है। मसलन, प्रेस की स्वतंत्रता संबंधी रैंकिंग में भारत 180 देशों की सूची में 142वें पायदान पर है। 

प्रेस की स्वतंत्रता संबंधी रैंकिंग

देशरैंकिंग
भारत142
पाकिस्तान145
श्रीलंका127
बांग्लादेश112
नार्वे1
फिनलैंड2
अमेरिका45

इन आंकड़ों के आधार पर हम कह सकते है कि भारतीय मीडिया को जनमानस के प्रति वफादारी निभानी चाहिए थी, उस पर यह खरा नहीं उतर रही है। इसकी एक वजह यह भी कि मीडिया स्वतंत्र नहीं है, जबकि भारतीय संविधान के अंतर्गत पूर्ण आजादी दी गई है।

भारत की बदहाली का दूसरा प्रमाण विश्व खुशहाली रैंकिंग-2021 में भारत का स्थान है। कुल 180 देशों की सारणी में भारत 144वें स्थान पर है, जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान 66वें , अफगानिस्तान 153वें, चीन 94वें, श्रीलंका 130वें, बांग्लादेश 107वें, कनाडा 11वें और अमेरिका 18वें स्थान पर है।

सर्वविदित है कि किसी भी राष्ट्र की आय उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के माध्यम से नापी जाती है। इस मामले में भी भारत पिछड़ा हुआ है। विश्व जीडीपी रैंकिग-नवंबर, 2020 के अनुसार भारत की जीडीपी दर -10.289 प्रतिशत है। जबकि 2020 में 26.21 प्रतिशत की अनुमानित जीडीपी विकास दर के साथ, गुयाना दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश है। गुयाना के बाद दक्षिण सूडान (4.11 प्रतिशत), बांग्लादेश (3.80 प्रतिशत) और मिस्र (3.55 प्रतिशत) का स्थान है। केवल इन चार देशों में 3 प्रतिशत से अधिक की जीडीपी वृद्धि दर है। 

दूसरी ओर भारत का जीडीपी दर ऋणात्मक है। ऐसे में यह तो स्पष्ट है कि जिन आर्थिक नीतियों को लेकर वर्तमान सरकार काम कर रही है, उसके जरिए भारत की आर्थिक महाशक्ति बनने की विपरीत दिशा में गतिमान है। 

खुशहाली सूचकांक के जैसे ही किसी भी राष्ट्र की संपन्नता को आंकने का महत्वपूर्ण सूचकांक है ग्लोबल हंगर इंडेक्स। पिछले साल जारी रिपोर्ट रिपोर्ट के अनुसार भारत ‘गंभीर’ श्रेणी के तहत 107 देशों में से 94 रैंक पर है। कुल 107 देशों में से केवल 13 देश भारत से बदतर हैं।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2020 में भारत की स्थिति

देशस्थान
भारत94
रवांडा97
अफगानिस्तान99
लाइबेरिया102
मोजाम्बिक103
चाड107

भारत की यह बदहाली तब है जब खाद्यान्न उत्पादन मामले में भारत बहुत पीछे नहीं है। साथ ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली भी उल्लेखनीय है जिसके जरिए गरीबों को रियायती दर पर खाद्यान्न प्रति माह मुहैया करवाया जाता है। इसके बावजूद भारत के संदर्भ में माना जाता है कि यहां लगभग 20 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास रात का भोजन नहीं होता है और उन्हें भूखे सोना पड़ता है। क्या इस स्थिति का अवलोकन करने के बाद कोई भी शिक्षित भारतीय कह सकता है कि सरकार वाकई विश्व गुरु बनने के लायक कोई कार्य कर रही है?

उपरोक्त सूचकांकों के अलावा भारत के लिए विषम स्थिति यह भी है कि भारत जेंडर गैप इंडेक्स-2020, मामले में 28 स्थान फिसलकर 140 पर पहुंच गया है। ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स-2019 में यह 153 देशों में से 112 वें स्थान पर था। 

वहीं भारत पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक, 2020 की रिपोर्ट में भरत 180 देशों में से 168 वें स्थान पर है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई आदि शहरों को अगर हम छोड़ भी दें तो जो छोटे शहर हैं, जिनमें गुरुग्राम, नोएडा, कुरुक्षेत्र, हिसार आदि में भी हवा दूषित हो चुकी है। अब तो हालात यह गया है कि अनेक इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां एयर प्यूरिफायर भी बना चुकी हैं और बाजार में बडी संख्या मे इनकी उपलब्धता हो चली है।

बहरहाल, भारत के मामले में एक सकारात्मक आंकड़ा यह है कि मानव विकास सूचकांक में 189 देशों में से 129वें स्थान देशों में शुमार है। इसके पहले वर्ष 2019 में भारत का स्थान 130वां था। कहना गैर वाजिब नहीं कि एक स्थान का यह सुधार लगभग तीन दशकों के तीव्र विकास की सीमा है। भारत में समावेशी विचारधारा पर कार्य करने की भी जरूरत है, जैसा कि भारत सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ नीति पर चलने का नाम तो ले रही है, लेकिन उस पर अमल कितना करती आ रही है, यह सबसे बड़ा सवाल है। लिहाजा कहा जा सकता है कि भारत को विश्व गुरु बनने के लिए भारतीय संविधान में उल्लेखित प्रावधानों के तहत नीतियों का निर्माण करना होगा तथा उसका अनुपालन सुनिश्चित कराना अनिवार्य होगा।  

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

अभिनव कटारिया

लेखक कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र में जनसंचार विषय के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं

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