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समतामूलक समाज का मूल्य बोध करा रहा किसान आंदोलन

किसान आंदोलन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सामाजिक जड़ता को तोड़ रहा है। गाजीपुर बार्डर पर जाट समाज के किसान बड़ी संख्या में हैं। हमारे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय के लोगों को रूढ़िवादी माना जाता है। लेकिन उनके विचार-व्यवहार में तेजी से बदलाव दिखा है। बता रही हैं निर्देश सिंह

कोई भी समाज तब तक समाज की परिभाषा अख्तियार नहीं करता जब तक कि उसके सभी सदस्य सम्मान के साथ अपना जीवन न जी सकें। यदि कोई समाज इस स्थिति को प्राप्त करता है तो वह समतामूलक समाज कहलाता है और इसी तरह के समाज की परिकल्पना भारतीय संविधान में बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर ने की है। लेकिन यह कहना अतिरेक नहीं कि आज भी भारतीय समाज में भेदभाव है और बहुसंख्यक समाज के लोग इसके शिकार हैं। इन सबके बीच पिछले चार महीने से चल रहा किसान आंदोलन एक नजीर है, जो समतामूलक समाज का मूल्य बोध करा रहा है।

यह बात मैं इसलिए भी कह रही हूं क्योंकि मैं आत्मसाक्षी हूं। बीते 26 दिसंबर से दिल्ली-यूपी की सीमा गाजीपुर आंदोलन स्थल पर मैं माता सावित्रीबाई फुले पाठशाला चला रही हूं। हमारी पाठशाला में आसपास के कूड़ा बीनने वाले बच्चे आते हैं। हमलोगों ने उनके हाथ से कूड़ा हटाकर कलम-किताबें दिया है। हमारा यह प्रयास भी केवल हमारा नहीं है। पाठशाला में जो बच्चे आते हैं, उन्हें किसान आंदोलन में शामिल होने आए किसान भी स्नेह देते हैं। कई तो ऐसे स्वयंसेवक हैं जो बच्चों को पढ़ाते हैं। 

गाजीपुर बार्डर पर माता सावित्रीबाई फुले पाठशाला में पढ़ते बच्चों के बीच भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत

गाजीपुर बार्डर पर रहते हुए मैंने यह भी अनुभव किया है कि एक सभ्य समाज का निर्माण कैसे हो सकता है और कैसे महिलाएं बेखौफ जी सकती हैं। जिन दिनों मैं यहां आई थी, तब लोग मुझे लेकर सशंकित रहते थे कि अपने घर से दूर कोई महिला किसानों के बीच कैसे रह सकती है। लेकिन जब मैं यहां आई तब मैंने देखा कि यहां कोई लैंगिक भेदभाव नहीं है। महिलाएं लंगर में सेवाएं दे रही हैं। वहीं पुरुष भी लंगर में अपना सहयोग दे रहे हैं। रही बात सुरक्षा की तो किसान आंदोलन स्थल पर महिलाएं जितनी सुरक्षित हैं, उतनी कहीं नहीं हैं। 

वैसे बात केवल सुरक्षा तक ही सीमित नहीं है। गाजीपुर बार्डर के अपने अनुभवों के आधार पर मैं कह सकती हूं कि इस आंदोलन ने उन महिलाओं को मंच दिया है जो अबतक अपने घरों में थीं या फिर अपने खेतों में काम कर रही थीं। बीते 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर महिलाओं ने मंच का संचालन किया और पूरे विश्व को बताया कि किसान परिवारों की महिलाएं केवल ताली बजाने के लिए आंदोलन स्थल पर नहीं आई हैं। 

गाजीपुर बार्डर पर किसानों के बीच खत्म हो रहा जाति व धर्म का भेद

किसान आंदोलन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह सामाजिक जड़ता को तोड़ रहा है। गाजीपुर बार्डर पर जाट समाज के किसान बड़ी संख्या में हैं। हमारे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय के लोगों को रूढ़िवादी माना जाता है। लेकिन उनके विचार-व्यवहार में तेजी से बदलाव दिखा है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पूर्व में खाप पंचायतें किस तरह के अमानवीय फैसलों के लिए कुख्यात थीं। आज वही पंचायतें देश की सरकार के खिलाफ आंदोलनरत हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने आंदोलन में महिला परिजनों को भी शामिल किया है।

बंधुता किसान आंदोलन की महत्वपूर्ण खासियत है। किसान आंदोलन में शामिल होने वाले सभी फिर चाहे किसी भी जाति व धर्म के हों, भाईचारे का रिश्ता रखते हैं। वे सब एक-दूसरे का ख्याल तो रखते ही हैं, साथ ही इसकी पूरी कोशिश करते हैं कि उनसे ऐसा कोई व्यवहार न हो जिससे किसी का दिल दुखे। इस क्रम में आंदोलन स्थल पर कैंप करने वाले डाक्टरों को रेखांकित किया जाना अनिवार्य है। सभी स्वेच्छा से लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं। इस संबंध में मेरा अपना उदाहरण है।

उन दिनों टेंट लगाने के क्रम में मेरे पैर में मोच आ गई। दर्द इतना था कि मैं चल भी नहीं पा रही थी। लेकिन टेंट का काम पूरा करना आवश्यक था। मैंने बगल के चिकित्सकीय कैंप के पास अपने एक सहयोगी को भेजा। उन्होंने आनन-फानन में मेरा इलाज किया और गर्म पट्टी बांध दी। लेकिन मुझे खुशी तब हुई जब अन्य चिकित्सकीय कैंपों के चिकित्सक भी मेरे पास आए और उन्होंने मेरा ख्याल रखा। यहां तक कि जो दवाईयां कैंप में मौजूद नहीं थीं, वे भी शाम को अपनी तरफ से खरीदकर दी। दवाईयों से दर्द में कुछ आराम तो मिला लेकिन दवाइयों का असर खत्म होने के बाद दर्द फिर शुरू हो जाता था। डाक्टरों ने मुझे एक्स-रे कराने की सलाह दी। वजह यह रही कि कैंप में एक्स-रे आदि की सुविधा नहीं है। बाद में जब एक्स-रे हुआ तो पैर की मांसपेशी में समस्या सामने आई। फिर इलाज शुरू हुआ और मुझे आराम मिला।

बहरहाल, यह तो महज एक उदाहरण है। मुझ जैसे अनेक लोगों के स्वास्थ्य का ख्याल पूरी आत्मीयता के चिकित्सक रखते हैं। यह किसान आंदोलन का ही परिणाम है जिसके अंत:करण में हर भूखे को रोटी उपलब्ध कराना है ना कि भूख की तिजारत करना।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

निर्देश सिंह

लेखिका माता सावित्रीबाई फुले महासभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं

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