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आसाम और बंगाल में हम आदिवासियों की हुई हार : मुक्ति तिर्की

हम आदिवासियों में एकता की कमी है। हमें दूसरे लोग उपयोग कर लेते हैं। अब आसाम को ही लें तो आसाम में पहले कांग्रेस हमलोगों का यूज कर लेती थी, अब भाजपा कर रही है। आदिवासी दुनिया के प्रकाशक-संपादक मुक्ति तिर्की से नवल किशोर कुमार की दूरभाष पर खास बातचीत

[वरिष्ठ आदिवासी बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक अखबार ‘दलित आदिवासी दुनिया’ के प्रकाशक-संपादक मुक्ति तिर्की पश्चिम बंगाल के डुवार्स-तराई के चाय बागानों में ही पले-बढ़े हैं। मुक्ति तिर्की के पिता पियुस तिर्की खुद चाय श्रमिक यूनियन के नेता तथा चाय बागान में टीचर थे, साथ ही डुवार्स के अलीपुरदुआर संसदीय सीट से 5 बार सांसद भी रहे। स्वयं मुक्ति तिर्की को देशभर में आदिवासियों के ज्वलंत मुद्दों पर आवाज उठाने तथा आंदोलन करने के लिए जाना जाता है। प्रस्तुत है उनसे खास बातचीत]

आसाम और पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आ चुके हैं। आप चाय बागान के आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ते रहे हैं। आप इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणाम को किस रूप में देखते हैं?

पश्चिम बंगाल में जो परिणाम आया है, वह तो अच्छा है। रही बात हम आदिवासियों की तो हमारा तो नारा ही रहा है “अबुआ दिशुम, अबुआ राज”। ऐसा ही नारे का उपयोग ममता बनर्जी ने भी किया। ‘अपना बंगाल, अपनी बेटी’ के रूप में। उन्हें जीत मिली। लेकिन हम आदिवासी तो फेल हो गए। हमारे लोगों की तो पहचान बनी ही नहीं। हम आदिवासी केवल वोटबैंक बनकर रह गए हैं। बंगाल के चाय बागानों में 56 लाख आदिवासी हैं। लेकिन हमारी बात ही नहीं कही गई। यहां तक कि हमलोग भी अपनी बात नहीं रख पाए। इसे हमारी गलती कहिए या फिर हमारी अक्षमता।

क्या ऐसा ही कुछ आसाम में भी हुआ?

हां बिल्कुल। आसाम में एक करोड़ आदिवासी हैं जिन्हें उनकी पहचान से वंचित रखा गया है। उनका बड़ा मुद्दा है कि उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा मिले। हर बार यही मुद्दा होता है। हर बार वे झूठ बोलकर वोट ले लेते हैं। हमारे लोग एक-तिहाई हैं। लेकिन उनकी पहचान ही नहीं है। आप देखें कि उत्तरी और उपरी आसाम के 11 जिलों के 47 में से 42 सीटें और मध्य आसाम के पांच सीटों में हमारे लोग निर्णायक संख्या में हैं। वहीं पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर, मुर्शिदाबाद, बंकुरा और रवींद्रनाथ टैगोर के विश्वभारती के चारों ओर हमारे लोग हैं। मेरा अनुमान है कि कम से कम 60 सीटों पर हम आदिवासी महत्वपूर्ण हैं। इनमें कुछेक जो हमारी पहचान से संबंध रखते हैं, विजयी हुए हैं। इनमें पश्चिम बंगाल के मनोज कुमार उरांव जो कि कुमारग्राम विधानसभा क्षेत्र और माल बाजार से बुलु चिक बराइक आदि शामिल हैं। ऐसे ही आसाम में कुछेक हैं जो हैं तो आदिवासी लेकिन सामान्य सीट से जीते हैं। आप यह समझें कि आसाम में हम आदिवासी जो चाय बागानों में काम करते हैं, उन्हें सरकार चाय जनजाति कहती है। लेकिन हमें आदिवासियों की श्रेणी में नहीं रखा गया है। 

दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक अखबार ‘दलित आदिवासी दुनिया’ के प्रकाशक-संपादक मुक्ति तिर्की

पश्चिम बंगाल में निर्वाचित आदिवासी विधायक

क्रम संख्यानामक्षेत्रपार्टी
1दुलाल मुर्मूनयाग्रामटीएमसी
2परेश मुर्मूकेशियरीटीएमसी
3देबनाथ हांसदा बिनपुरटीएमसी
4राजीब लोचन सरेनबंदवानटीएमसी
5संध्यारानी टुडूमानबाजारटीएमसी
6ज्योत्सना मंडी रामबांधटीएमसी
7मनोज कुमार उरांवकुमारग्रामबीजेपी
8बिशाल लामाकालचीनीबीजेपी
9बुलु चिक बराइक मालटीएमसी
10पूना भेंगड़ानगरकाटाबीजेपी
11दुर्गा मुर्मूफांसीदेवाबीजेपी
12बुध राय टुडूतपनबीजेपी
13जॉयल मुर्मूहबीबपुरबीजेपी

इसके पीछे क्या कारण मानते हैं?

कारण तो हमलोग खुद हैं। हम आदिवासियों में एकता की कमी है। हमें दूसरे लोग उपयोग कर लेते हैं। अब आसाम को ही लें तो आसाम में पहले कांग्रेस हमलोगों का यूज कर लेती थी, अब भाजपा कर रही है। बंगाल में भी जब गोरखालैंड मूवमेंट चल रहा था तब उनसे लड़ने-भिड़ने के लिए हमारे लोगों को यूज किया गया। बंगाली लोगों में हिम्मत नहीं थी। आदिवासी भी एकदम बम-बम हो गए। लेकिन मिला कुछ भी नहीं। बाद में जब लेफ्ट आया तब उसने मजदूर-मजदूर कहकर हमारे लोगों का उपयोग किया। तो हमारे लोगों का तो हमेशा इस्तेमाल ही किया गया है। हमारा तो किसी ने भी भला नहीं किया। न कांग्रेस ने, न वामपंथियों ने और ना ही तृणमूल ने। अभी भी हम यदि पश्चिम बंगाल में चाय मजदूरों की बात करें तो हम बंधुआ मजदूर ही हैं। हम चाय कंपनियों के बंधुआ मजदूर हैं और चाय कंपनियों का राजनीतिक दलों के साथ सांठगांठ है। तो हो यह रहा है कि वे लोग (राजनीतिक दल) अपना काम निकाल ले रहे हैं और हम मजदूर के मजदूर ही रह गए हैं। 

आसाम में 2 निर्वाचित आदिवासी विधायक

क्रम संख्यानामक्षेत्रपार्टी
1सर्वानंद सोनोवाल मजुलीबीजेपी
2नबा कुमार डॉली,धकुआखानाबीजेपी
3रनोज पेगूधेमाजबीजेपी
4भूबन पेगूजोनाई बीजेपी
5नंदिता गोरलोसा हाफलॉंगबीजेपी
6नुमल मोमिनबोकाजानबीजेपी
7दार्जिंग रोन्हघांगहावड़ाघाटबीजेपी
8बिद्या सिंग इंग्लेंगदिफूबीजेपी
9गोबिंदा चंद्र बासुमैत्रेयी उदागुड़ीयूपीपीएल
10रबिराम नजारेकोकराझार पश्चिमबीपीएफ
11लॉरेंस इस्लारी कोकराझार पूर्व-
12जयंता बासुमैत्रेयी सीडीयूपीपीएल
13जाबद स्वर्गिअरीदूधनाईकांग्रेस
14भूपेन बारोबड़मायूपीपीएल
15उरखाव ग्वरा ब्रह्मा छापागुड़ीयूपीपीएल

भविष्य में कैसी राह दिखती है?

व्यक्तिगत रूप से अभी तो मैं तृणमूल के समर्थन में ही हूं। लेकिन मैं फिर कहता हूं कि हम फेल हुए। हम अपने लोगों को एकजुट नहीं रख सके। भाजपा के लोगों ने झूठ बोलकर हमारे लोगों का वोट ले लिया। अब हम आसाम और बंगाल में अपने लोगों को जागरूक करने का काम करते रहेंगे। इसके अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।

(संपादन : अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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