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कुर्सी के लिए कुंभ और कुंभ के कारण अनियंत्रित हुआ कोरोना!

कोरोना के भयानक रूप से प्रसार की वजहें क्या रही हैं? पहले श्मशान घाटों पर लाशों की लंबी कतारें और अब गंगा नदी में लाशों को बिना अंत्येष्टि के ही बहा दिए जाने संबंधी रपटें सामने आयी हैं। क्या इस परिस्थिति के लिए हरिद्वार में संपन्न हुआ कुंभ भी एक अहम कारण है? सवाल उठा रहे हैं भंवर मेघवंशी

भारत में कोरोना से प्रतिदिन संकर्मित हो रहे लोगों का आधिकारिक आंकड़ा रोजाना साढ़े तीन लाख को पार कर गया है और हर रोज लगभग चार हजार मौतें होने की पुष्टि सरकार के स्तर पर की जा रही है। मीडिया की रपटों के अनुसार गंगा नदी के किनारे 1140 किलोमीटर में 2 हजार से अधिक शव बहकर आए हैं, जिन्हें दाह संस्कार के बजाय रेत में दबाकर आंकड़ों को छिपाने की कोशिशें की गई हैं। करीब ढाई सौ लाशें बिहार के बक्सर में गंगा किनारे बहती हुई मिली हैं। 

गौरतलब है कि गंगा उत्तर प्रदेश के तक़रीबन 27 जिलों से बहकर गुजरती है, इन जिलों में बिजनोर, मेरठ, हरदोई, मुज्जफरनगर, फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर, उन्नाव, प्रयागराज, प्रतापगढ़, भदौही, मिर्जापुर, बनारस, गाजीपुर और बलिया आदि प्रमुख है। इन जिलों में से उन्नाव, कानपुर, कन्नौज और बलिया के हालात बेहद भयावह होने की ख़बरें आ रही हैं। 

सवाल है कि आखिर यह हालात क्यों हुए? क्या इसके लिए हाल ही में संपन्न हुआ कुंभ कोई कारण है और क्या इसका आयोजन होने देने के लिए आरएसएस जिम्मेदार है? 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में कोविड के जोखिम मूल्यांकन में पाया है कि कोरोना संक्रमण की इस घातक बढ़ोत्तरी के लिये संभावित कारणों में धार्मिक और राजनीतिक कार्यक्रमों में जुटी भारी भीड़ ज़िम्मेदार है। महामारी विशेषज्ञों और कोविड नियंत्रण व उपचार से जुड़े चिकित्सकों ने भी माना है कि कोरोना की संभावित दूसरी लहर के बावजूद देश के पांच राज्यों में चुनाव करवाने और उसमें प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह तथा अन्य विपक्षी नेताओं की भीड़ भरी रैलियां व हरिद्वार में कुंभ जैसे धार्मिक मेले का आयोजन सबसे बड़ी वजह बन गये हैं।

वहीं उत्तराखंड के हरिद्वार में हुये कुंभ मेले में जुटी लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ कोरोना को भयानक रूप से व्यापक स्तर पर बढोत्तरी करनेवाली साबित हुई है। 

इस बीच प्रतिष्ठित अंग्रेजी पत्रिका “कारवां” ने अपने वेबपोर्टल पर खोजपूर्ण आलेख प्रकाशित किया है, जिसके मुताबिक, हरिद्वार में कुंभ का आयोजन 12 वर्षों के अंतराल पर 2022 में होना था। लेकिन चूंकि ज्योतिषियों और पंडितों ने पंचांग के आधार पर एक साल पहले ही आयोजन की बात कही। जबकि उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत वर्ष 2021 में कुंभ के आयोजन से सहमत नहीं थे। उन्होंने कोविड के मद्देनजर प्रतीकात्मक कुंभ का सुझाव भी दिया था। लेकिन उत्तर प्रदेश में आगामी कुछ महीनों के बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर देश और प्रदेश की हिंदुत्ववादी सरकारों के मुखिया इसी वर्ष भव्य और दिव्य कुंभ करवा कर हिंदुओं को संदेश देने की जल्दी में थे। जब त्रिवेंद्र सिंह रावत इस साल कुंभ करवाने में आनाकानी करते दिखाई दिये तो उनको कुर्सी से हटाकर उनके स्थान पर आरएसएस की पृष्ठभूमि के ही दूसरे तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया गया। 

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और इनसेट में कुंभ की तस्वीर

सीएम की कुर्सी से हटाए जाने के बाद एक प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी बीबीसी को दिये साक्षात्कार में में त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि “मेरी योजना सीमित और प्रतीकात्मक रूप में कुंभ मेले के आयोजन की थी, क्योंकि विशेषज्ञों ने उन्हें बताया था कि कोरोना महामारी अभी ख़त्म नहीं होने वाली है। चूंकि कुंभ में देश ही नहीं विदेशों से भी लोग आते हैं। मुझे चिंता थी कि कोई स्वस्थ व्यक्ति हरिद्वार पहुंचे तो वहां से संक्रमण लेकर वापस न जाय।” 

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की यह चिंता सही साबित हुई।

दूसरी तरफ उनके स्थान पर मुख्यमंत्री बनाये गये तीरथ सिंह रावत थे, जिन्होंने न केवल इस महामारी में कुंभ के दौरान लाखों हिंदुओं की भारी भीड़ एकत्रित होने दी, बल्कि यह कहकर अंधविश्वास को बढाया कि – “कुंभ में मां गंगा की अविरल धारा है, उनका आशीर्वाद लेके जाएंगे तो इससे कोरोना नहीं फैलना चाहिए।” इतना ही नहीं, बल्कि उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि किसी को भी कुंभ में आने से नहीं रोका जाएगा और श्रद्धालुओं को रियल टाइम पॉलीमर्ज चेन रिएक्शन (आरटीपीसीआर) की नेगेटिव रिपोर्ट साथ लाने की जरुरत नहीं है। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह की ये बातें उनका अंधविश्वास और बडबोलापन ही साबित हुईं। कोरोना ने अपने पंजे कुंभ नगरी में भी फैला दिये और एक अखाड़े के महामंडलेश्वर तक बेमौत मारे गए। हजारों अन्य संक्रमित पाए गये और जो लोग कुंभ से देश भर में जहां जहां भी लौटे, उन्होंने वहां कोविड को फैला दिया। अंततः हालात बेकाबू हो गए।

उत्तर प्रदेश के बनारस में गंगा किनारे लाशों के कारण चीलों और गिद्धों की संख्या बढ़ी

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को शायद अपनी राजनीतिक भूल का अहसास हो गया है। उनको समझ आ गया है कि उन्हें जनजीवन की परवाह करने के बजाय कोरोना वायरस के जीवन की चिंता करनी चाहिए थी। उन्होंने तो नाहक ही इसका विरोध किया। इसलिए हाल ही में दिल्ली से उत्तराखंड लौटे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दार्शनिक अंदाज़ में कहा कि–‘कोरोना वायरस भी एक प्राणी है, हम भी एक प्राणी हैं। वह भी जीना चाहता है। उसे भी जीने का अधिकार है। हम उसके पीछे लगे हुए हैं और वह बहुरुपिया हो गया है।’ 

कोरोना से बचने को मुंह पर मास्क लगाकर अखाड़ा के साधुओं के साथ बैठक करते आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत।

ऐसे भी केंद्र में सत्तारूढ़ दल वैज्ञानिक दृष्टिकोण कोअपने लिए घातक और अवैज्ञानिक तथा अंधविश्वास को अपने लिए अमृत मानती है। यही कारण है कि इस दल के नेता खुद ही अवैज्ञानिक बातों का प्रचार-प्रसार करते हैं और मन से उन बातों को मानते भी हैं। जैसे आयुर्वेदिक काढ़ा, नींबू नाक में निचोड़ना, हनुमान चालीसा के पाठ से कोरोना भगाना, घर-घर यज्ञ हवन का धुआं करके कोविड से मुक्ति, गोबर स्नान और गौमूत्र पान आदि। सोशल मीडिया पर ऐसे अनेक उपाय वीडियों के जरिए भेजे जा रहे हैं। 

बहरहाल संघ और भाजपा ने मिलकर कुंभ का आयोजन कर देश को संकट में डाल दिया है। हालत यह हो गई है कि लोग सांस-सांस को तरस रहे हैं। लेकिन उसे न तो लोक-लाज का भय है और ना ही जवाबदेही का अहसास। शायद इतनी गायें मर जातीं तो देश जरुर सुलग उठता। हाल ही में यह बात भी सामने आई है कि जिस राज्य में गंगा नदी में कोरोना संक्रमितों की लाशें देखने को मिल रही हैं, वहां योगी आदित्यनाथ  सरकार ने गायों के लिये ऑक्सीमीटर और ऑक्सीजन सिलेंडर के इंतजाम के निर्देश दिये हैं।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

भंवर मेघवंशी

भंवर मेघवंशी लेखक, पत्रकार और सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने आरएसएस के स्वयंसेवक के रूप में अपना सार्वजनिक जीवन शुरू किया था। आगे चलकर, उनकी आत्मकथा ‘मैं एक कारसेवक था’ सुर्ख़ियों में रही है। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद हाल में ‘आई कुड नॉट बी हिन्दू’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। संप्रति मेघवंशी ‘शून्यकाल डॉट कॉम’ के संपादक हैं।

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