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हूल विद्रोह से जुड़े सात आदिवासी गीत और उनका भावार्थ

हूल विद्रोह झारखंड के आदिवासियों के गौरवमयी अतीत की याद दिलाता है। इसकी अभिव्यक्ति आदिवासी गीतों में स्पष्ट रूप से होती है। पढ़ें, इस विद्रोह से जुड़े सात गीत व अनुवाद। मनीष भट्ट मनु की प्रस्तुति

हूल विद्रोह दिवस (30 जून, 1855) पर विशेष

आदिवासी समाज में संघर्ष का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह अलग बात है कि एक लंबे अरसे तक इनका इतिहास बाकी समाज के सामने नहीं आ पाया। प्राकृतिक संसाधनों पर गैर-आदिवासी समुदाय के नियंत्रण और कब्जा किए जाने के विरोध में यह समाज सदियों से संघर्ष करता चला आया है। ऐसे ही एक संघर्ष का ऐलान 30 जून, 1855 को किया गया था। संथाल हूल बाहरियों द्वारा जल, जंगल, जमीन पर कब्जे किए जाने के विरोध में हुआ सशस्त्र संघर्ष था। आज भी इस समुदाय के गीतों में हूल और उसके नायक मिल जाते है।

गीत क्रमांक : एक

चोलो भाई, चोलो भाई,
भोगनाडीह आतू हो,
सिदो कानहू बुलाईते,
सुबा ठाकुर डाकाईते,
चोलो भाई सुनी आसिबो,
चोलो भाई चोलो भाई,
भोगनाडीह आतू हो,
सुबा ठाकुर हुकूम भाई,
सुबा ठाकुर आचू भाई,
जिबोन मांगाय जिबोन दिबो हो …

हिंदी अनुवाद

चलो भाई, चलो भाई,
भोगनाडीह गांव,
सिदो कान्हू ने बुलाया है,
सुबा ठाकुर भी हंकाया है,
चलो भाई सुन का आएं,
चलो भाई, चलो भाई
भोगनाडीह गांव,
सुबा ठाकुर ने हुकूम भेजा,
सुबा ठाकुर ने पुकारा है,
जीवन मांगे तो जीवन देंगे …

भावार्थ : यह गीत हूल विद्रोह में शामिल होने के लिए भेजा गया आमंत्रण है। इसमें भोगनाडीह गांव के सिदो अपने  पुरखों से मिले संदेश के बारे में कह रहे हैं कि बड़े पैमाने पर विद्रोह से ही आजादी संभव है। गीत में यह भी कहा गया है कि सारे लोग भोगनाडीह गांव जाने को तैयार हैं। वे कहते हैं यदि हमसे हमारी जिंदगी भी मांगी जाए तो हम दे देंगे।

कई आदिवासी गीतों में हूल विद्रोह और उसमें हुए बलिदानों की बातें हैं। इनमें कहा गया है कि सिदो-कान्हू को अपनी मातृभूमि के लिए खून तक से नहाना पड़ा

गीत क्रमांक : दो

चेदाक् दो रे सिदो मायामतेम नुमलेन,
चेदाक् दो रे कान्हु हूल हूलेम होहोय,
दिसोम खातिरते नायो मायामतेञ नुमलेन,
जात भाय को नोवार लागित हूल हूलिञ होहोय …

हिंदी अनुवाद

हे सिदो, क्यों तुमने रक्त स्नान किया,
हे कान्हु क्यों तुम हूल हूल आवाज दे रहे,
मातृभूमि के लिए मैंने रक्त स्नान किया,
अपनी जाति अपने भाइयों के लिए ही
मैंने हूल हूल आवाज लगायी …

भावार्थ : इस गीत में हूल और उसमें हुए बलिदानों की बातें हैं। इसमें कहा गया है कि सिदो को अपनी मातृभूमि के लिए खून से नहाना पड़ा। अपनी जाति की रक्षा के लिए कान्हू को हूल का आह्वान करना पड़ा। 

गीत क्रमांक : तीन

भोगनाड़ीह नातो दायना नाड़ी मोज नाड़ी सोनोत आतो,
सिदो कान्हु महाराज कीन जानाम आकाना,
नाड़ी दायना बूद ताकीन नाड़ी दायना नकील,
सिदो कान्हु महाराज कीन ओमोन आकाना …

हिंदी अनुवाद

ओ बहन, भोगनाडीह गांव सुंदर और पावन गांव है,
ओ बहन सिदो कान्हु महाराज ने जन्म लिया है,
ओ बहन वे बेहद बुद्धिमान हैं, वे बेहद ज्ञानी हैं,
ओ बहन सिदो कान्हु महाराज का अवतरण हुआ है …

भावार्थ : इस गीत में संथाली महिलाओं की बातचीत है। वे भोगनाडीह गांव में सिदो और कान्हू के जन्म को लेकर उत्साहित हैं। वे कहती हैं कि सिदो-कान्हू तेज दिमाग वाले हैं। 

गीत क्रमांक : चार

संताल मा दिसोमरे,
सिदो कान्हु कीन राज लेना हो,
ती काटुप कोलोम ताकीन,
होड़मो मायाम सिहाय ताकीन,
संताल परगना कीन बेगारलेदा …

हिंदी अनुवाद

संतालों के देश में,
सिदो कान्हु ने राज किया था,
उनकी उंगलियां ही कलम थीं,
उनके शरीर का रक्त ही स्याही था,
उन्होंने संताल परगना को बनाया था …

भावार्थ : इस गीत में सिदो और कान्हू के शासन की चर्चा है। इसमें कहा गया है कि उन्होंने ही संथाल परगना को एकजुट किया था। 

गीत क्रमांक : पांच

फूलो झानो आम दो तीर रे तलरार रेम साअकिदा,
आम दो लट्टु बोध्या खोअलहारे बहादुरी उदुकेदा,
भोगनाडीह रे आबेन बना होड़ किरियाबेन,
आम दो महाजन अत्याचार बाम सहा दाड़ी दा,
आम दो बनासी ते तलवार रेम साउकेदा,
अंगरेज आर दारोगा परति रे अड़ी अयम्मा रोड़केदा,
केनाराम बेचाराम आबेन बड़ा होड़ ते बेन सिखोव केअकोवा,
आम दो श अंगरेज सिपाही गोअ केअकोवा,
आबेन बना होड़ाअ जुतुम अमर हुई ना …

हिंदी अनुवाद

फूलो झानो तुमने हाथों में तलवार पकड़ी,
तुमने भाईयों से बढ़कर वीरता दिखलाई,
भोगनाडीह में तुम दोनोँ ने शपथ ली,
कि महाजनों सूदखोरों का अत्याचार नहीं सहेंगे,
तुमने दोनों हाथों से तलवारें उठाई,
अंग्रेजों और दरोगा के जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई,
तुम दोनोँ ने केनाराम बेचाराम को सबक सिखाया,
इक्कीस अंग्रेज सिपाहियों को मार गिराया,
तुम दोनोँ का नाम सदैव अमर रहेगा …

भावार्थ: यह गीत फूलो और झानो की वीरता बयान करता है। वे सिदो और कान्हू की बहनें थीं। 

गीत क्रमांक : छह

ती रेताम टोडोर बाजाल,
जांगा रेताम पांयड़ी,
आम देा बाजल चालारूकान
सिवड़ी जिहोल ते,
देश खातिर बाजाल दिसोम खातिर,
आम दो बाजाल,
चालारूकान सिवड़ी जिहोल ते,
जात भायाद को लागित,
मायांग जिअ ऊम एन,
बेपारिया कुबंडूको लागित,
दिसोम दुरू दाराम इ होहोकेत,
जात भालाई तुम,
दिसोम साधिन लागित,
जिवी जुवान को आलाय केत,
दिसोम दूरूदाराम इअ होहो आचुर केत …

हिंदी अनुवाद

ओ बाजाल तुम्हारे हाथों में जंजीर,
और पैरों में बेड़ी रे,
जाते हो बाजाल तुम,
सिवड़ी कारागार रे,
देश खातिर भूमि खातिर,
जा रहे हो बाजाल,
तुम सिवड़ी कारागार रे,
अपने जात भाइयों की खातिर,
नहाया अपने खून से,
चोर, व्यापारियों से मुक्ति पाने,
जात के बचावे खातिर पुकारा जोर,
जात की भलाई खातिर,
देश की आजादी खातिर,
हम देशभक्त हुए कुर्बान,
देश की सुरक्षा खातिर …

भावार्थ : यह गीत गोड्डा के सुंदरपहाड़ी प्रखंड स्थित बारीखटंगा गांव के एक युवक बाजाल का बारे में है। हूल के नायकों में सिदो और कान्हू के बाद सबसे ज्यादा संभवतः बाजाल पर लिखा गया है। उसे हूल के आरोप में पकड़ कर शिउड़ी जेल ले जाया जा रहा है। बाजाल को देखकर लोग कह रहे हैं कि तुम समाज की भलाई के लिए जेल जा रहे हो।

गीत क्रमांक : सात

तोकोय हुकूमते बाजाल तोकोय बोलेते,
रूपु सिंह ताम्बोली दोम माक् केदेया,
सिदो हुकूमते नायगो कान्हू बोलेते,
रूपु सिंह ताम्बोली दोञ माक …

हिंदी अनुवाद

किसके हूक्म से बाजाल किसके आज्ञा से,
रूपसिंह तांबोली को तुमने काट मारा रे,
सिदो के हूक्म से, कान्हू कीे आज्ञा से,
रूपसिंह तांबोली को मैंने काट ड़ाला रे ….

भावार्थ : यह गीत में लोग बाजाल से पूछ रहे हैं कि रुपसिंह का खून तुमने किसके कहने पर किया। वह उन्हें बताता है कि सिदो का हुक्म और कान्हू की आज्ञा थी।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

मनीष भट्ट मनु

घुमक्कड़ पत्रकार के रूप में भोपाल निवासी मनीष भट्ट मनु हिंदी दैनिक ‘देशबंधु’ से लंबे समय तक संबद्ध रहे हैं। आदिवासी विषयों पर इनके आलेख व रपटें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं।

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