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शहादत के 120 साल बाद भी बिरसा का इंतजार

भारत के आदिवासी क्षेत्रों में इन दिनों हालात उससे भी बदतर हैं जो बिरसा के समय थे। बस्तर हो या केवड़िया, नियमगिरी हो या नेतरहाट। तथाकथित विकास के नाम पर आदिवासी अपनी जमीन से उजाड़े जा रहे हैं। बता रहे हैं मनीष भट्ट मनु

बिरसा मुंडा (15 नवंबर, 1875 – 9 जून, 1900) पर विशेष

आज 9 जून है। “अबुआ दिसुम अबुआ राज” के प्रणेता बिरसा मुंडा (15 नवंबर, 1875 – 9 जून, 1900) जिन्हें धरती आबा के नाम से भी जाना जाता है – का शहादत दिवस। धरती आबा की कहानी शुरू होती है उनकी दस वर्ष की उम्र से जब चाइबासा स्थित स्कूल में आदिवासी समुदाय के बारे में शिक्षक की टिप्पणी के विरोध में सवाल उठाने पर उन्हें स्कूल से बाहर निकाल दिया जाता है। स्कूल के अभिलेख में उनका नाम बिरसा डेविड दर्ज था। इसके बाद उन्होेंने अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों पर जुल्म, उनकी जमीन हड़पने की रणनीति और अंग्रेजों के इंडियन फारेस्ट एक्ट 1882 की मुखालफत में आवाज उठाई।

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लेखक के बारे में

मनीष भट्ट मनु

घुमक्कड़ पत्रकार के रूप में भोपाल निवासी मनीष भट्ट मनु हिंदी दैनिक ‘देशबंधु’ से लंबे समय तक संबद्ध रहे हैं। आदिवासी विषयों पर इनके आलेख व रपटें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं।

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