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राजस्थान : आदिवासी मीणा समुदाय और आरएसएस आमने-सामने

राजस्थान आदिवासी मीणा सेवा संघ के प्रदेश अध्यक्ष व विधायक रामकेश मीणा ने सार्वजनिक रूप से चेतावनी देते हुए संघ को ललकारा और कह दिया कि आदिवासी समाज हिंदू नहीं है। उसका अपना धर्म है और वह प्रकृति पूजक समाज है। उस पर भगवा विचारधारा और परम्पराएं न थोपी जाये। यह आरएसएस को बेहद नागवार गुज़रा। भंवर मेघवंशी की खबर

राजस्थान की राजधानी जयपुर के घाट गेट इलाक़े में स्थित पहाड़ी पर आदिवासी मीणा समुदाय की आस्था से जुड़ा एक प्राचीन आमागढ़ (आम्बागढ़) क़िला है, जिसमें नाढ़ला गौत्र के मीणाओं की कुल देवी अंबाजी का मंदिर मौजूद है। हाल ही में हिंदुत्व के नाम पर वहां कुछ ऐसा किया गया है कि अब राजस्थान में आरएसएस और आदिवासी आमने सामने हो चुके हैं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित इस क़िले में आदिवासी आस्था का मंदिर है, जिस पर साफ़ तौर पर यह स्थल मीणा समुदाय का होने की इबारत अंकित रही है। यह सर्वमान्य तथ्य भी रहा है और इस बात को लेकर कभी कोई विवाद भी नहीं रहा है। लेकिन जंगल में दुर्गम क्षेत्र में स्थित इस स्थल पर जून के पहले हफ़्ते में चुपचाप युवा शक्ति मंच नामक हिंदुवादी संगठन ने क़ब्ज़ा करने की नीयत से न केवल भगवा झंडा लगा दिया, बल्कि मंदिर का नाम भी बदल कर अम्बिका भवानी मंदिर और अंबकेश्वर शिव मंदिर कर दिया। यहां तक कि पुरानी मूर्तियों को तोड़ कर नईं मूर्तियां भी स्थापित कर दी और इस जगह को अपनी गतिविधियों का अड्डा बना लिया।

चूंकि यह निर्जन वन क्षेत्र है और वन विभाग के अधीन है, इसलिए नाढ़ला मीणा केवल पर्व त्यौहारों पर ही यहां पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं। इसलिए इस बात की ख़बर समुदाय को देर से लग पाई। लेकिन जैसे ही 16 जुलाई 2021 को चालीस फ़ीट ऊंचा भगवा झंडा फहराने की सूचना आदिवासी मीणा समुदाय के लोगों को मिली, उनकी ज़बर्दस्त प्रतिक्रिया हुई। गंगापुर सिटी के विधायक और राजस्थान आदिवासी मीणा सेवा संघ के प्रदेश अध्यक्ष रामकेश मीणा के नेतृत्व में मीणा समाज ने अपने आस्था स्थल को अवांछित तत्वों के क़ब्ज़े से मुक्त कराने का अभियान छेड़ दिया।

जैसे ही मीणा समाज ने आपत्ति उठाई, ज्ञापन दिया और सीधी कार्यवाही की घोषणा की तो भगवा ताक़तें सुरक्षात्मक होने लगी तथा उन्होंने झंडा हटाने और प्रतिमाओं से की गई छेड़छाड़ आदि के मामले को सुधारने की बात कह दी। लेकिन दो-तीन दिन बीत जाने के बाद भी झंडा नहीं हटाया गया तब बीते 21 जुलाई को आदिवासी समुदाय ने अपनी प्रतिरोध सभा आमागढ़ पर आयोजित की और भगवा झंडे को उतार दिया गया।

आमगढ़, जयपुर का किला व इनसेट में विधायक रामकेश मीणा (बाएं) व सांसद डॉ. किरोड़ीमल मीणा (दाएं)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े और उससे प्रेरित संगठनों व व्यक्तियों के लिए यह नाक़ाबिले बर्दाश्त काम हो गया। उन्होंने विधायक रामकेश मीणा सहित आदिवासी समुदाय के अन्य लोगों के ख़िलाफ़ भगवा झंडा फाड़ने और धार्मिक भावनाओं को आहत करने संबंधी मुक़दमा जयपुर के ट्रांसपोर्ट नगर थाने में दर्ज करवा दिया। इसके खिलाफ भी ज़ोरदार प्रतिक्रिया आदिवासियों में हुई। उन्होंने भी संघी संगठनों के ध्वजवाहकों पर जवाबी प्राथमिकी दर्ज करवा दी।

इस बीच नफ़रत के अनेक सौदागर सक्रिय हो गए। उग्र हिंदुत्व के नाम पर दुकान चलाने वाले कईं लोगों ने जयपुर कूच का आह्वान कर डाला। कट्टर हिंदुवादी उपदेश राणा बयानबाज़ी करने लगे। सुदर्शन न्यूज़ के सम्पादक सुरेश चव्हाण ने तो मीणा समाज को कमीणा समाज तक कह डाला। इसी दौरान भाजपा और आरएसएस से जुड़े आदिवासी मीणाओं को भी आगे किया गया और उनको ढाल बना कर पूरी लड़ाई को सांप्रदायिक और जातिवादी रंग दे दिया गया।

वहीं राजस्थान आदिवासी मीणा सेवा संघ के प्रदेश अध्यक्ष व विधायक रामकेश मीणा ने सार्वजनिक रूप से चेतावनी देते हुए संघ को ललकारा और कह दिया कि आदिवासी समाज हिंदू नहीं है। उसका अपना धर्म है और वह प्रकृति पूजक समाज है। उस पर भगवा विचारधारा और परम्पराएं न थोपी जाये। यह आरएसएस को बेहद नागवार गुज़रा। उसे लगा कि राजस्थान का सक्षम आदिवासी मीणा समाज उसे सीधी चुनौती दे रहा है और उसकी पकड़ इस समुदाय से ढीली हो रही है। ऐसे में पहले तो इसे हिंदू-मुस्लिम मसला बनाने का प्रयास किया गया और जब इसमें सफ़लता नहीं मिली तो आदिवासी समुदाय को ही आपस में भिड़ा दिया गया है, ताकि मीणा समुदाय असली अपराधियों को भूलकर आपसी लड़ाई में व्यस्त हो जाय।

भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी और सुप्रसिद्ध साहित्यकार हरिराम मीणा ने इस किले की ऐतिहासिकता और मीणा समुदाय से उसके जुड़ाव को इस तरह उल्लेखित करते हैं–“रावत सारस्वत द्वारा लिखे और सन् 1968 में सर्वप्रथम प्रकाशित ‘मीणा इतिहास’ में स्पष्ट उल्लेख है कि ‘आमागढ़ का किला निश्चय ही मीणों का रहा है और उसकी साक्षी पुरातत्व विभाग का सूचनापट्ट भी भरता है। यह किला निवास के लिए न होकर सैनिक दृष्टि से उपयोग के लिए बनाया गया मालूम होता है। किले के अंदर केवल एक जलाशय और दो-तीन पक्के मकान हैं, पर सुरक्षात्मक परकोटे एक पर एक करके तीन बने हुए हैं। अत: मीणों के संघ द्वारा सम्मिलित रूप से इसका उपयोग करने की बात ठीक लगती है। पुराने घाट के नाके पर सामरिक महत्व की दृष्टि से भी यह किला बड़ा उपादेय रहा होगा।” (पृष्ठ संख्या-139) 

मानगढ़ के आदिवासी संघर्ष पर ‘धूणी तपे तीर’ जैसा कालजयी उपन्यास लिखने वाले आदिवासी साहित्यकार हरिराम मीणा अभी चल रहे पूरे प्रकरण को विस्तार से समझाते हुए बताते हैं कि– “इस घटनाक्रम पर नज़र डालें तो पता लगता है कि धर्म के नाम पर सांप्रदायिक ताकतें किस तरह सार्वजानिक स्थलों पर अतिक्रमण करते हुए अपना कब्ज़ा करती रही है? आमागढ़ वाले प्रकरण में 4 जून, 2021 को शिव व गणेश की प्रतिमाओं को खंडित किया जाता है। 5 जून को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करायी गयी।। उल्लेखनीय है कि इस स्थल से जयपुर शहर की आबादी में मुस्लिम लोग निवास करते हैं। कुछ असामाजिक तत्वों ने प्रयास किया कि मूर्तियों के साथ की गयी तोड़फोड़ को सांप्रदायिक रंग दे दिया जाय। जब यह पता चला कि यह काम तो कथित युवा शक्ति मंच द्वारा जुड़े युवकों ने किया है, तो यह कुचक्र असफल हो गया। फिर 13 जून को पुरानी प्रतिमाओं के स्थान पर नयी लगा दी गयीं। 5 से 7 जुलाई के दिनों में चुपचाप निर्माण सामग्री पहुंचाई गयी। बिजली के खम्भा की बेस बनाकर उसे रोप दिया गया। मौका देखकर 16 को भगवा झंडा लगा दिया। आनन-फानन में अगले दिन झंडा फहराने का कार्यक्रम बना दिया गया। विधायक रामकेश मीणा द्वारा किले का मुआयना करने के बाद इस कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा। 21 जुलाई को विधायक रामकेश ने फिर वहां पहुंचे। उन्होंने सभा आयोजित की। उसके बाद झंडा उतारने की कार्यवाही के दौरान झंडा फट गया। बात का बतंगड़ बनाते हुए अतिक्रमणकारियों ने मुक़द्दमा दर्ज करा दिया। ध्यान रखना चाहिए कि मीणा जैसे भारत के सैकड़ों आदिवासी समुदाय प्रकृति, पुरखों और आदिदेव शिव व उनकी संगिनी आदिशक्ति माता के प्रति धार्मिक आस्था रखते आये हैं। आमागढ़ जैसे मीणा आदिम समुदाय के ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल के साथ इस किस्म की छेड़खानी और कब्ज़ा करने की मंशा का तीखा विरोध होना चाहिए।”

इस क़ब्ज़ाकरण का विरोध जिस तरह का आदिवासी मीणा समुदाय की तरफ़ से हुआ है, उसकी उम्मीद संघ और उससे जुड़े लोगों को नहीं रही होगी। शायद उन्होंने सोचा होगा कि आदिवासियों के भगवाकरण की उनकी परियोजना सौ फ़ीसदी सफल हो चुकी है और सब आदिवासी संघी हिंदुत्व के सांचे में स्वयं को गौरवान्वित महसूस करेंगे तथा कोई प्रतिरोध की आवाज़ नहीं उठेगी। लेकिन सोशल मीडिया पर सक्रिय आदिवासी युवाओं ने इतना तीक्ष्ण और मजबूत प्रतिरोध दर्ज करवाया है कि आरएसएस और अन्य भगवा ताक़तों की चूलें हिल गई हैं। वे अब एक अप्रत्यक्ष युद्ध पर उतर आए हैं, जिसमें उसी समुदाय के संघी मानसिकता के लोगों को आगे करके आदिवासी से आदिवासी को लड़ाने का काम शुरू किया जा चुका है।

हम देख सकते हैं कि आदिवासी समुदाय के युवा और बुद्धिजीवी लोग आमागढ़ पर भगवा ताक़तों के क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ अपनी पूरी ताक़त से संघर्षरत हैं तो दूसरी तरफ़ मीणा समाज में बाबा के रूप में प्रतिष्ठित क़द्दावर नेता व भाजपा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा का सहयोग आदिवासी अस्मिता के लिए लड़ रहे लोगों के बजाय हिंदुवादी ताक़तों को मिल रहा है। हालाँकि इसके विरुद्ध भी कड़ी प्रतिक्रिया हो रही है। फिर भी संघ किरोड़ी लाल मीणा के ज़रिए आक्रोशित आदिवासियों का ध्यान भटकाने की पुरज़ोर कोशिश में लगा है।

किरोड़ी लाल मीणा खुलकर हिंदुत्ववादी शक्तियों के बचाव और अपने ही समाज बंधुओं के विरोध में उतर आए हैं। उन्होंने राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव निरंजन आर्य से मुलाक़ात कर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा है, जिसमें आदिवासी विधायक रामकेश मीणा की गिरफ़्तारी की मांग की गई है। भाजपा सांसद का कहना है कि समूचा मीणा समाज सदैव हिंदू रहा है और वह जन्म से मरण तक हिंदू परंपराओं का निर्वहन करता है। ऐसे में विधायक रामकेश मीणा ने यह कहकर हमें पूरे देश में बदनाम कर दिया है कि आदिवासी मीणा हिंदू नहीं हैं। यह साज़िश है। इसलिए विधायक रामकेश मीणा को गिरफ़्तार किया जाना चाहिये। 

किरोड़ी लाल की मांग पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता और ट्राइबल आर्मी के संस्थापक हंसराज मीणा जो आंबागढ़ मसले पर शुरू से मुखर है, कहते है कि आदिवासी अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने वालों की गिरफ़्तारी की मांग की जानी चाहिए थी, लेकिन मीणा समाज के लोग आपस में ही भिड़े हुये हैं। वे लिखते है कि “मीणा आदिवासी समुदाय का युवा जाग चुका है। अब वो अनपढ़ बालक नहीं रहा, जिसे ताबीज देकर खुश कर दिया जाएगा। अब वो हक, अधिकार, सम्मान के लिए लड़ेगा। ढोंग, पाखंड, अंधविश्वास फैलाने वाले साम्प्रदायिक ताक़तों के खिलाफ खड़ा होगा।”

(संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

भंवर मेघवंशी

भंवर मेघवंशी लेखक, पत्रकार और सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने आरएसएस के स्वयंसेवक के रूप में अपना सार्वजनिक जीवन शुरू किया था। आगे चलकर, उनकी आत्मकथा ‘मैं एक कारसेवक था’ सुर्ख़ियों में रही है। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद हाल में ‘आई कुड नॉट बी हिन्दू’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है। संप्रति मेघवंशी ‘शून्यकाल डॉट कॉम’ के संपादक हैं।

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