h n

उपेक्षित हैं कोरोना के कारण शहीद हुए सफाईकर्मियों के परिजन

दिल्ली में सफाईकर्मी समुदाय के कम से कम 50 लोगों की मौत कोरोना के कारण हुई है। इनमें से कई थे जो अपने परिवार का पेट चलाने वाले एकमात्र थे। उनकी मौत के उनके परिजन बेहाल हैं। उन्हें कोई सहायता नहीं दी जा रही है। बता रहे हैं राज वाल्मीकि

दिल्ली में कोरोना की दूसरी लहर भले ही उतार पर है। लेकिन अकेले केवल दिल्ली में सफाईकर्मी समुदाय के कम से कम 50 लोगों की मौत कोरोना काल में हो गई है। उनके परिजनों का आज हाल-बेहाल है। कई परिवार तो ऐसे हैं, जिनमे कमाने वाला शख्स ही कोरोना का शिकार हो गया। वहीं सरकार की तरफ से ऐसे परिवारों को कोई राहत नहीं दी जा रही है। हालांकि केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार दोनों के द्वारा अखबारों में दावे किए जा रहे हैं। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने तो विज्ञापनों में स्पष्ट रूप से कहा है– “कोविड से जो दुनिया छोड़ गए, उनके परिवारों के साथ है दिल्ली सरकार”। लेकिन हकीकत में शहीद सफाई कर्मियों के परिजनों को किसी प्रकार की मदद नहीं दी जा रही है।

दिल्ली के अंबेडकर नगर निवासी करीब 18 वर्षीय अतुल अपनी छोटी बहन विधि के साथ किराये के घर में रहता है। उसने दसवीं तक पढाई की। फिर उसके घर के हालात ठीक न होने की वजह से पढ़ाई छूट गई। अभी विधि नौवीं कक्षा की छात्रा है। वह सरकारी स्कूल में पढ़ती है। इन बच्चों ने कोविड के कारण अपनी मां को खोया है। वह सफाईकर्मी समुदाय की थीं। उनका देहांत बीते 24 अप्रैल, 2021 को हो गया। अतुल और विधि के पिता तो बहुत पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। अपनी मां को खोने के बाद इन बच्चों का ध्यान रखने वाला कोई नहीं है। मां के गुजर जाने के बाद अतुल को मजदूरी करनी पड़ रही है। उसे 8000 रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता है। इसमे वह किसी प्रकार घर खर्च चलता है।

अपनी मां की तस्वीर के साथ अतुल, जिसके कंधे पर है अब घर चलाने की जिम्मेदारी

अतुल मूलरूप से देहरादून के रहने वाला है। उनका परिवार करीब 20 साल से दिल्ली में रह रहा है। बीस साल पहले विशाल और उनकी पत्नी निशा देहरादून से दिल्ली आए थे। यहीं उनके दोनों बच्चों अतुल और विधि का जन्म हुआ। विशाल पहले साफ़-सफाई का काम ठेके पर करते थे। फिर कार चलाने लगे। सात साल पहले उनकी मृत्यु शुगर की बीमारी की वजह से हुई थी। पति की मृत्यु के बाद निशा परिवार का पालन-पोषण करने के लिए कोठियों में सफाई का काम करने लगीं। वाल्मीकि समाज की होने की वजह से उन्हें कोई और काम नहीं मिला। मृत्यु के चार महीने पहले से वह मरीजों की देखभाल का काम कर रही थीं। वहीं से वह कोरोना संक्रमित हुईं। फिर 19 अप्रैल को उन्हें काम से हटा दिया गया। निशा ने नजदीकी डाक्टर को दिखाया तो डाक्टर ने उन्हें कोरोना टेस्ट कराने की सलाह दी। कोरोना टेस्ट कराने पर उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इसके बाद 24 अप्रैल को उन्हें सांस लेने में दिक्कत हुई। उनका बेटा अतुल और बेटी विधि उन्हें पास के अस्पताल में ले गए, जहां डाक्टरों ने उनकी मां को मृत घोषित कर दिया।

एक उदाहरण बबीता देवी का है। बबीता के पति की मौत कोरोना के कारण हो गई। वह बताती हैं कि “मेरा नाम बबीता है। मैं 38 साल की हूं। मैं वाल्मीकि बस्ती, तिलक नगर, नई दिल्ली में रहती हूं। मेरे दो बच्चे हैं – बेटा लव (18) और बेटी खुशी (16)। बेटा बारहवीं पास कर चुका है और खुशी अभी बारहवीं में गई है। मेरे पति हाउस कीपिंग के काम के साथ आर्केस्ट्रा कार्यक्रमों में इंस्ट्रूमेंट बजाने का काम किया करते थे। मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं। मैं घर-घर जाकर कूड़ा उठाने का काम किया करती थी। इसी तरह जीवन यापन हो रहा था। इसी दौरान सफाईकर्मी आंदोलन से डॉ. रेनू छाछर हमारी बस्ती में सर्वे के लिए आईं। उनसे परिचय होने के बाद मैं सफाईकर्मी आंदोलन से जुड़ गई। सब सही चल रहा था कि अचानक कोरोना की दूसरी लहर मुझ से मेरे पति को छीन ले गई। 22 अप्रैल 2021 को मेरे पति का कोरोना से निधन हो गया। मेरे ऊपर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। मैं टूट गई। पर मैंने हिम्मत नहीं हारी है। मेरा संघर्ष जारी है।”

बबीता अपने बच्चों के साथ

दिल्ली नगर निगम सफाई मजदूर संघ से जुड़े दिलीप पारचा ने बताया कि शाहदरा में 12 सफाई कर्मचारियों की मौत कोरोना से हुई। इनमे से किसी के भी परिजनों को न तो आर्थिक मदद मिली और न ही रोजगार। कोरोना से बहुत से सफाईकर्मी पीड़ित हुए, उनके परिजन भी बीमार पड़े, लेकिन उन्हें इलाज में कोई मदद नहीं मिल पाई। सबसे बड़ी परेशानी यह रही कि जिस तरह का खौफ़ कोरोना पीड़ित होने का था, उससे कई उन ज्यादा इस बात का कि अगर यह बात लोगों को पता चली तो उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा।  इस डर से कोरोना पीड़ित होने की बात छुपाई गई। कोरोना टेस्ट ही नहीं हुए। उत्तर प्रदेश में तो जांच करवाना बेहद मुश्किल काम था। पूरी की पूरी मशीनरी कोरोना पीड़ितों की संख्या को कम करने पर उतारू थी। इसकी मार सफाईकर्मियों पर पड़ी। जो लोग कोरोना से मारे गए, वे सरकारी आंकड़ों में दर्ज ही नहीं हुए।

दिल्ली की केजरीवाल सरकार द्वारा दैनिक हिन्दुस्तान के दिल्ली संस्करण में प्रकाशित एक विज्ञापन

यह बात काबिलेगौर है कि दिल्ली सरकार कोरोना के कारण शहीद हुए डाक्टरों के परिजनों को एक करोड़ रुपए की सहायता राशि दे रही है। साथ ही दिल्ली सरकार ने अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन प्रकाशित करवाये हैं कि– “कोविड से जो दुनिया छोड़ गए, उनके परिवारों के साथ है दिल्ली सरकार”। विज्ञापन में बताया गया है कि कोविड-19 के कारण मृत्यु हो जाने वाले लोगों के लिए दिल्ली सरकार द्वारा मुख्यमंत्री कोविड-19 परिवार आर्थिक सहायता शुरू की है। मासिक आर्थिक सहायता के रूप में 2,500 रुपये की सहायता उन दिल्लीवासियों के लिए दी जाएगी, जिनके परिवार में कमाने वाले व्यक्ति की कोविड-19 के कारण मृत्यु हुई है। इसके अलावा एकमुश्त राशि के रूप में 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि की सहायता उन समस्त दिल्लीवासियों के लिए है। लेकिन यह महज विज्ञापनबाजी ही है। वास्तविकता है कि शहीद हुए सफाईकर्मी कोरोना योद्धाओं के परिजनों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। क्या उनका कसूर यह है कि वे सफाईकर्मी समुदाय से हैं। इसलिए उनकी कोई अहमियत नहीं है। 

बहरहाल, सफाईकर्मी भी इसी देश के नागरिक हैं। संविधान में उन्हें बराबरी का अधिकार है। उनके वोट की कीमत भी अन्य नागरिकों के वोट की कीमत के समान है। परंतु नेताओं को इनकी याद तब ही आती है जब उन्हें इनका वोट लेना होता है। 

(संपादन : नवल/अनिल )


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

राज वाल्मीकि

'सफाई कर्मचारी आंदोलन’ मे दस्तावेज समन्वयक राज वाल्मीकि की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने कविता, कहानी, व्यग्य, गज़़ल, लेख, पुस्तक समीक्षा, बाल कविताएं आदि विधाओं में लेखन किया है। इनकी अब तक दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं कलियों का चमन (कविता-गजल-कहनी संग्रह) और इस समय में (कहानी संग्रह)।

संबंधित आलेख

महाराष्ट्र : वंचित बहुजन आघाड़ी ने खोल दिया तीसरा मोर्चा
आघाड़ी के नेता प्रकाश आंबेडकर ने अपनी ओर से सात उम्मीदवारों की सूची 27 मार्च को जारी कर दी। यह पूछने पर कि वंचित...
‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा में मेरी भागीदारी की वजह’
यद्यपि कांग्रेस और आंबेडकर के बीच कई मुद्दों पर असहमतियां थीं, मगर इसके बावजूद कांग्रेस ने आंबेडकर को यह मौका दिया कि देश के...
इलेक्टोरल बॉन्ड : मनुवाद के पोषक पूंजीवाद का घृणित चेहरा 
पिछले नौ सालों में जो महंगाई बढ़ी है, वह आकस्मिक नहीं है, बल्कि यह चंदे के कारण की गई लूट का ही दुष्परिणाम है।...
कौन हैं 60 लाख से अधिक वे बच्चे, जिन्हें शून्य खाद्य श्रेणी में रखा गया है? 
प्रयागराज के पाली ग्रामसभा में लोनिया समुदाय की एक स्त्री तपती दोपहरी में भैंसा से माटी ढो रही है। उसका सात-आठ माह का भूखा...
यूपी : नगीना लोकसभा सीट आख़िर क्यों है इतनी ख़ास?
इस सीट का महत्व इस बात से समझिए कि इस सीट पर उम्मीदवारी की लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, बसपा नेता आकाश आनंद समेत...