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खतरों से वाकिफ हूं, लेकिन आदिवासियों के लिए लड़ना बंद नहीं करूंगा : हंसराज मीणा

रोहित वेमूला की सांस्थानिक हत्या ही ट्राइबल आर्मी शुरू करने की मूल वजह रही। उस घटना ने झकझोर कर रख दिया था। मैं देख रहा था कि कैसे दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की आवाज काे दबा दिया जाता है। मुख्यधारा की मीडिया को इन वर्गों के सवालों से कोई सरोकार नहीं होता। पढ़ें हंसराज मीणा का साक्षात्कार

हंसराज मीणा आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। सोशल मीडिया पर इनकी महत्वपूर्ण उपस्थिति रही है। आदिवासी समुदाय के हंसराज मीणा इस वजह से भी खास हैं कि ये दलित-बहुजनों के बीच एकजुटता का प्रयास भी करते हैं। विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर पढ़ें हंसराज मीणा का नवल किशोर कुमार द्वारा यह साक्षात्कार 

आपका जन्म कहां हुआ? आपके परिवार की पृष्ठभूमि क्या है?

मेरा जन्म राजस्थान के करौली जिले के सपोटरा में हुआ। यह मध्य प्रदेश से सटा हुआ है। यह बीहड़ व डांग का इलाका है। मेरी पैदाइश एक गरीब किसान परिवार में हुई। मेरी माताजी का नाम चतरबाई और पिताजी का नाम राधे लाल मीणा है। जैसे देश के अन्य हिस्से में आदिवासी समुदायों के बच्चों को पढ़ने-लिखने में परेशानियां होती हैं, वैसी ही परेशानियां मेरे पास भी थीं। मसलन, प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल में ही हुई। वहां की शिक्षा व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं थी। अंग्रेजी पढ़ाने के लिए शिक्षक तक नहीं थे। 

आपने कहां तक शिक्षा प्राप्त की?

मैंने गंगापुर सिटी (सवाई माधोपुर) के एक कॉलेज से राजनीति शास्त्र में बीए और एमए किया है। लेकिन यह करने में भी मुझे चुनौतियों का सामना करना पड़ा। मैं चार भाइयों में सबसे छोटा हूं। घर की आर्थिक विपन्नता का असर मेरी पढ़ाई पर भी हुआ। मैं संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा उत्तीर्ण होकर आइएएस बनकर देश के आम-अवाम की सेवा करना चाहता था। परंतु, सफल नहीं हो पाया।

ट्राइबल आर्मी का गठन करने का ख्याल कैसे आया? क्या वजह रही इसकी?

रोहित वेमूला की सांस्थानिक हत्या ही मूल वजह रही। उस घटना ने झकझोर कर रख दिया था। मैं देख रहा था कि कैसे दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की आवाज काे दबा दिया जाता है। मुख्यधारा की मीडिया को इन वर्गों के सवालों से कोई सरोकार नहीं होता। यहां तक कि जो इन वर्गों के नाम पर सियासत करते हैं, वे भी कहीं न कहीं इन सवालों को उठाने से गुरेज करते हैं। मैंने तो यह सोचा कि अपने लोगों की आवाज को मजबूत करने के लिए और उनके संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए बिना आइएएस बने भी सार्वजनिक जीवन में रहते हुए बेहतर काम किया जा सकता है। तो इसी सोच ने प्रेरित किया और मैंने ट्राइबल आर्मी के नाम से काम करना शुरू कर दिया।

तो आपने सबसे पहले क्या किया? 

सामाजिक जीवन में मेरी सक्रियता वर्ष 2011 में आरक्षण बचाओ आंदोलन से हुई। सोशल मीडिया के संदर्भ में शुरूआत तो मैंने ट्वीटर से ही की। मैं आदिवासियों के राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सवालों को उठाता रहा। प्रयास करता रहा कि अधिक से अधिक लोगाें को अपने साथ जोड़ सकूं। ट्वीटर ने कई बार मेरे अकाउंट को बंद कर दिया। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। 

हंसराज मीणा

आपने तो ‘ब्लू टिक’ कैंपेन भी चलाया था।

हां, यह सवाल हमलोगों ने उठाया था। ट्वीटर प्रभु वर्ग के लोगों को पिक एंड चूज के आधार ब्लू टिक देता था। फिर मैंने और दिलीप मंडल जी ने यह अभियान चलाया। ट्वीटर को बाध्य होकर यह बताना पड़ा कि ब्लू टिक के संबंध में उसकी नीतियां क्या हैं। यहां तक कि उन्होंने इस अभियान के बाद अनेक दलित-बहुजन लोगों के अकाउंट को ब्लू टिक दिया।

आप केवल सोशल मीडिया पर ही सक्रिय हैं या जमीन पर भी?

बिल्कुल हम जमीनी कार्यकर्ता हैं। देखिए अभी ऐसा है कि गुप्तचर विभाग के लोग सक्रिय हैं। वे मेरे फोन की टेपिंग करते रहते हैं। वे तो मेरे पीछे-पीछे मेरे घर तक आए। वहां लोगों से पूछताछ की। तो ऐसा वे करते रहते हैं। मैं एक टीम के साथ काम करता हूं। हमारी टीम में कई सारे लोग हैं जो जमीन से सीधे जुड़े हैं। हम कानूनी मसलों को लेकर भी मुखर रहे हैं। कुछ मामलों को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक लेकर गए हैं।

अपनी मां चतरबाई के साथ हंसराज मीणा

आपने कई बार आदिवासी राजनेताओं के खिलाफ भी अभियान चलाया है। क्या वजह रही?

हां, जब कभी ऐसा कोई मामला मेरे संज्ञान में आता है कि हमारे अपने लोग ही गलत कर रहे हैं तो मैं सवाल उठाता हूं। मैं मानता हूं कि यही मेरा काम है। अपने लोगों के हित के लिए आवाज उठाना। नाम और दल नहीं बताऊंगा लेकिन दो राजनेता हैं, जो आज मुख्यमंत्री हैं। चुनाव के पहले वह मुझसे सलाह लिया करते थे। उन्होंने मुझसे कई वादे किए थे कि आदिवासी समाज के हितों के लिए वे पहल करेंगे। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद वे बदल गए हैं। पता नहीं कौन मनुवादी लोग उन्हें मिल गया और हमें नजरअंदाज कर दिया गया। 

कभी आपने कोई खतरा महसूस किया?

वह तो हमेशा महसूस होता रहता है। ये जो सत्ता में बैठे हैं, हमेशा मेरे पीछे पड़े रहते हैं। मैंने आठ महीने पहले मुंबई इसलिए छोड़ दिया क्योंकि मुझे संभावित खतरे की जानकारी मिल गयी थी। फिर मैंने अपनी सुरक्षा अपने हाथ करते हुए मुंबई से अपने गांव लौट गया और मैं अब यही हूं। वैसे खतरा केवल जान जाने का ही नहीं होता। वे साजिशें भी करते रहते हैं। जैसे कि एक बार मेरे खिलाफ उत्तर प्रदेश के भदोई जिले में मामला दर्ज करा दिया गया। जैसे ही इसकी झारखंड के एक पूर्व मुख्यमंत्री को हुई कि मेरे खिलाफ झूठा मामला दर्ज कराया गया है तो उन्होंने योगी आदित्यनाथ से बात की।  तो मैं यह जानता हूं कि आदिवासियों के लिए आवाज उठाने के खतरे क्या हैं और यह भी कि खतरों के कारण मैं लड़ना बंद नहीं करूंगा।

आपके मुद्दे कौन-कौन हैं?

हर दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के साथ कोई भी अहित होता है या फिर उसका हक मारा जाता है तो वह मेरा मुद्दा है। फिलहाल मैं आदिवासियों के लिए जनगणना प्रपत्र में अलग धर्म कोड का प्रावधान करने को लेकर काम कर रहा हूं। इसके अलावा पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों को जमीन पर लागू करने और आरएसएस के वर्चस्ववादी एजेंडे को लेकर भी राष्ट्रीय स्तर पर काम कर रहा हूं।

आगे आपने क्या सोचा है? मेरा मतलब है कि क्या आप प्रत्यक्ष राजनीति करेंगे? कोई नई पार्टी बनाएंगे या फिर किसी पार्टी को ज्वॉयन करेंगे?

फिलहाल तो किसी भी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है। मैं अपना काम कर रहा हूं। रही बात राजनीति की तो फिलहाल राजनीतिक मौसम खुशगवार नहीं है मेरे लिए। 

(संपादन : अनिल)

(आलेख परिवर्द्धित : 9 अगस्त, 2021, 04:26 PM)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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