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जाया नहीं जाएगा रामस्वरूप वर्मा और जगदेव बाबू का प्रयास : रामचंद्र कटियार

रामस्वरूप वर्मा कहते थे कि किसान मजदूर घास के समान हैं और पूंजीपति घोड़े के समान। घोड़ा कमजोर होगा तो घास बढ़ जाएगी। घास कम होगा तो घोड़ा मर जाएगा। जब पूंजीपतियों के पैसे से सारे राजनीतिक दल चल रहे हैं तो परिणाम हुआ है कि 2 प्रतिशत लोगों के पास देश की 90 प्रतिशत सम्पत्ति चली गई। शोषित समाज दल के नये राष्ट्रीय अध्यक्ष रामचंद्र कटियार का नवल किशोर कुमार द्वारा विशेष साक्षात्कार

शोषित समाज दल का गठन महामना रामवस्वरूप वर्मा और अमर शहीद जगदेव प्रसाद ने मिलकर किया था। इस राजनीतिक दल के अलावा उनके बीच अर्जक संघ एक महत्वपूर्ण प्रयास था जिसके जरिए समाज में उच्च जातियों के वर्चस्ववाद को चुनौती दी जा रही थी। अर्जक संघ और शोषित समाज दल का अस्तित्व तो वर्तमान में भी है। लेकिन रामस्वरूप वर्मा और जगदेव प्रसाद के बाद इसमें कमी आयी। बीते 23 अप्रैल, 2021 को शोषित समाज दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे रघुनीराम शास्त्री का निधन हो गया था। उनके बाद पार्टी की बागडोर रामचंद्र कटियार को दी गयी है। वे रामस्वरूप वर्मा के करीबी रहे। उनसे फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार ने दूरभाष पर बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश :

रामस्वरूप वर्मा जी के संपर्क में आप कब आये? 

रामस्वरूप वर्मा हमारे पड़ोस के गांव के रहने वाले थे। जब उनका राजनीतिक दौरा हुआ करता था तो वे हमारे घर आया करते थे। वर्मा जी का गांव गौरीकरन और हमारे गांव का नाम टुटई चाल [कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश] है। हमारे पिताजी प्रधान थे। वे [रामस्वरूप वर्मा] हमारे घर एवं आस-पास के गांवों में दौरा करते थे। उनका हमारे परिवार में आना-जाना लगातार बना रहता था। इसके कारण हमारा उनसे संपर्क हुआ। पढ़ाई के बाद उन्होंने हमसे कहा कि देशसेवा सबसे बड़ी है, हमसे जुड़ो। यह सन् 1970 की बात है। जब जगदेव बाबू की बिहार में हत्या हुई, एक संकट उत्पन्न हुआ, उस समय एक राष्ट्रीय सम्मेलन होना था, उन्होंने हमें जिम्मेदारी दी कि राष्ट्रीय सम्मेलन करवाइये। हमने पुखराया [कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश] में राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया। 1975 के जून महीने में शोषित समाज दल के बैनर तले यह तीन दिवसीय कार्यक्रम संपन्न हुआ था। यह कार्यक्रम शानदार था। लाखों की भीड़ जुटी थी। इस कार्यक्रम के पश्चात हमें शोषित समाज दल के उत्तर प्रदेश का प्रांतीय महामंत्री बना दिया गया। होल टाइमर [पूर्णकालिक कार्यकर्ता] के रूप में हमने कार्य करना प्रारंभ किया। उसी समय से हम पार्टी में काम कर रहे हैं। 

रामस्वरूप वर्मा जी के साथ रहते हुए आपको कैसा अनुभव प्राप्त हुआ या ऐसी कोई बात जो अर्जक संघ से जुड़ी हो? यह भी कि यह क्यों महत्वपूर्ण है और कैसे यह समाज को बदलेगा?

जब उन्होंने शोषित समाज दल का गठन किया तो उनके दिमाग में बहुत-सी बातें थीं कि राजनीति देश में क्यों नहीं सफल हो रही है। आखिर देश पतन की ओर क्यों जा रहा है? उस समय किसी भी राजनीतिक दल के पास सिद्धांत ही नहीं था। उन्होंने बताया कि सारे दल पूंजीपतियों के धन से चल रहे हैं। इस देश में उच्च वर्ण ही उच्च वर्ग है। वे कहते थे– किसान मजदूर घास के समान हैं और पूंजीपति घोड़े के समान। घोड़ा कमजोर होगा तो घास बढ़ जाएगी। घास कम होगा तो घोड़ा मर जाएगा। जब पूंजीपतियों के पैसे से सारे राजनीतिक दल चल रहे हैं तो किसान-मजदूर को मरना ही मरना है और इसी का परिणाम हुआ है कि 2 प्रतिशत लोगों के पास देश की 90 प्रतिशत सम्पत्ति चली गई। यह परिणाम उन्होंने [रामस्वरूप वर्मा ने] पहले से ही सोच रखा था कि तमाम राजनीतिक दल पूंजीपतियों के पैसे से चलनेवाले हैं। ये कभी भी देश की उन्नति नहीं कर सकते। आज इसका परिणाम आप खुद देख सकते हैं। देश आर्थिक रूप से जर्जर हो चुका है और विदेशी कर्ज निरंतर बढ़ता चला जा रहा है। रुपए की कीमत बहुत घट रही है। किसान-मजदूर की कृषि में लागत नहीं निकल पा रही है। वह भूखों मरने की स्थिति में पहुंच गया है। वर्मा जी जब [उत्तर प्रदेश सरकार में] वित्त मंत्री थे तब उन्होंने जद्दोजहद करके 85 रुपए प्रति कुंतल गेहूं का सरकारी मूल्य घोषित कराया था। तब 7 रुपये बोरी सीमेंट मिलती थी। 40 पैसे लीटर डीजल था। 36 रुपये बोरी यूरिया मिलती थी। एक रुपये किलो लोहा था। इन सबके दाम 100 गुना से लेकर 250 गुना बढ़ चुके हैं। सबसे ज्यादा वृद्धि बीजों के दामों में हुई है। सिद्धांतहीन राजनीति ने किसान और मजदूरों की कमर तोड़ दी है। जब तक जनता के दम पर पार्टियां नहीं चलेंगीं तबतक इनका कोई भला नहीं हो सकता है। यही सब सोचकर रामस्वरूप वर्मा जी ने, देश की समस्याएं क्या हैं, उसका समाधान क्या है, सिद्धांत और कार्यक्रम जनता के समक्ष रखा। जिस दिन शोषित समाज दल का सिद्धांत और कार्यक्रम लागू हो जाएगा, उस दिन न तो बेकारी रहेगी और ना ही किसान बर्बाद होंगे। मजदूर और किसान खुशहाल हो जाएगा। देश का उत्पादन बढ़ जाएगा। देश सही मायने में सोने की चिड़िया बन जाएगा।

रामस्वरूप वर्मा और जगदेव प्रसाद की तस्वीर

 

अमरशहीद जगदेव प्रसाद और रामस्वरूप वर्मा जी ने मिलकर अपने-अपने दलों का विजय कर शोषित समाज दल का गठन किया था। ऐसी परिस्थिति क्यों और कैसे बनी थी? 

रामस्वरूप वर्मा ने कहा था कि जीवन के चारों क्षेत्रों में– सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में ब्राह्मणवादी मूल्य स्थापित हैं। जब तक चारों क्षेत्रों में मानववादी जीवन मूल्य स्थापित नहीं होंगे तब तक न तो सामाजिक समता आएगी और ना ही आर्थिक समता। तब उन्होंने 1 जून, 1968 को सामाजिक और सांस्कृतिक क्रांति के लिए “अर्जक संघ का सिद्धांत और कार्यक्रम” लिखा। उनके दिमाग में था कि हम सामाजिक-सांस्कृतिक क्रांति करेंगे, राजनीति और आर्थिक क्रांति के लिए तो बहुत जगहें हैं, इसे लोग करें। लेकिन जब देखा गया कि अर्जक संघ का विरोध पिछड़े और दलितों की पार्टियां करने लगीं, तब उन्होंने यह सोचा कि बिना बाड़ लगाये पेड़ सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि जानवर खा जाएंगे। अगर हमें जीवन के चारों क्षेत्रों में क्रांति करनी है तब हमें आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में क्रांति के लिए शोषित समाज दल का हमें निर्माण करना होगा। दोनों जगहों [बिहार और उत्तर प्रदेश में] काम हो रहा था। जब जगदेव बाबू को मालूम हुआ कि वर्मा जी चारों क्षेत्रों में क्रांति कर रहे हैं तो उन्होंने वर्मा जी से संपर्क किया। दोनों में बात हुई और 7 अगस्त, 1972 को पटना में शोषित दल और समाज दल का एक में विलय हुआ। शोषित समाज दल का कार्यक्रम उन्होंने स्वीकार किया। इस प्रकार शोषित समाज दल का कार्य तेजी से शुरू हो गया। 

रामचंद्र कटियार, राष्ट्रीय अध्यक्ष, शोषित समाज दल (तस्वीर साभार : उपेंद्र पथिक)

रामस्वरूप वर्मा एवं जगदेव बाबू के बीच कभी बातचीत हुई हो और आप मौजूद रहे हों, ऐसा कोई अनुभव बतायें। 

लखनऊ के दारूल शफा के बंगला नं. 312 में वर्मा जी का निवास था। उस समय जगदेव बाबू उनके पास आये थे, हमने पुखराया में एक बड़ी सभा करवाई थी। उस सभा के दौरान हम उनके साथ लखनऊ आयें और सब लोगों ने बैठकर कई घंटों तक बातचीत की। 

जगदेव बाबू से जुड़ी हुई कोई खास बात, जिसने आपको प्रभावित किया हो।

जगदेव बाबू बहुत क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति एवं महान नेता थे। जब उनकी वर्माजी से बात हुई तब उन्होंने कहा कि शोषित समाज दल के लिए इससे अच्छा सिद्धांत कोई हो ही नहीं सकता। शोषित समाज दल का सिद्धांत और कार्यक्रम देश में गरीबी और बदहाली को समाप्त करने के लिए बेजोड़ है। जनता को गुमराह करने के लिए जो जातिवादी दल हैं, वे हमारे लिए बाधा हैं। उन्होंने पूरी दुनिया के लिए तीन शत्रु बतलाया जो जनतंत्र के विनाश के लिए जाने जाते हैं– जातिवाद, संप्रदायवाद और पूंजीवाद। जहां-जहां ये पनपे हैं, वहां-वहां जनतंत्र खत्म हो गया। लेकिन भारत में ये तीनों शक्तियां एक साथ काम कर रही हैं। इसलिए भारत में जनतंत्र को कायम रखना एक बहुत बड़ी चुनौती है। सिद्धांतहीन राजनीति जनतंत्र को खा जाएगी। इसलिए बहुत तेजी से काम करने की जरूरत है ताकि जातिवाद, संप्रदायवाद और पूंजीवाद न पनपने पाए और जनतंत्र हमारा सुरक्षित रहे। 

यह भी पढ़ें : रामचरितमानस और राम के बारे में क्या थी महामना रामस्वरूप वर्मा की राय?

जगदेव बाबू की हत्या के बाद बिहार में शोषित समाज दल की राजनीति बहुत कमजोर पड़ गयी। इसका आप क्या कारण मानते हैं?

जैसा कि हमने आपको बताया कि सेंटीमेंट (भावना) विचार को मार देता है। शोषित समाज दल का विचार बहुत क्रांतिकारी था। इस देश का पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद इस चीज को जानता है कि जिस दिन यह पनप गया तो हम खत्म हो जाएंगे। इसलिए वह रोज चिंतन करता है कि वैचारिक राजनीति न पनपने पाये। इसलिए संप्रदायवाद को बढ़ावा दिया। संप्रदायवाद जब हिंदू-मुस्लिम हो जाता है तब मुस्लिम कितना ही काबिल व्यक्ति एवं प्रत्याशी क्यों न हो वह हिंदू का वोट नहीं पा पाता है। इसी तरह हिंदुओं में जो अच्छे और काबिल लोग हैं, उनको मुसलमान वोट नहीं करते हैं। ऐसा भावनात्मक राजनीति के कारण होता है। इसी प्रकार पूंजीवाद के जरिए या फिर मीडिया के जरिए जो अनाप-शनाप प्रचार एवं उपासना, चमत्कार की बात हाती है या गालियां दी जा रही हों, तो ऐसे में वैचारिक आदमी उनके चकाचौंध में गायब हो जाता है। इसी तरह से जब जातिवाद हावी होगा तब अपनी ही जाति को लोग पसंद करते हैं। जातियां इसीलिए बनायी गई थीं कि कमेरों को बांटकर कैसे इन पर शासन किया जाये। अब जाति खरीदी जा नहीं सकती, इसलिए पूंजीपतियों ने हर जाति की पार्टी बनानी शुरू कर दी। इससे पहले से मौजूद सामाजिक बिखराव ने राजनीतिक बिखराव को जन्म दिया। इसलिए शोषित समाज दल का जो वैचारिक अभियान था, वह जातिवाद और संप्रदायिक राजनीति से प्रभावित हुआ। इस वजह से हम जनता तक बात नहीं पहुंचा पाये। लेकिन अब उसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। अब संप्रदायवाद और जातिवाद को लोग पसंद नहीं कर रहे हैं। ऐसे बहुत से लोग मिल रहे हैं जो कह रहे हैं कि शोषित समाज दल का प्रभाव बढ़ने लगा है, जब लोग हमारी बात सुनना पसंद नहीं करते थे, वे आ-आकर मेंबर बन रहे हैं, और ये कह रहे हैं कि अब ये रास्ता सही है, हम लोग भटक गये थे। 

जगदेव बाबू की हत्या के बाद जो खालीपन आया था, उस खालीपन को भरने की कोशिश क्यों नहीं की गई?

(जोर देते हुए) नहीं-नहीं, अब जाकर हुई है। हम अभी बिहार का दौरा करके आ रहे हैं। शोषित समाज दल का स्थापना दिवस 7 अगस्त को मनाया गया। जिस हॉल में यह प्रोग्राम हुआ था, उसमें हर वर्ष स्थापना दिवस मनाया जाता रहा है। मैं हमेशा वहां जाता हूं। पहले वह आधा हॉल भी नहीं भरता था। इस बार वह हॉल इतना भर गया कि उस हॉल में बैठने की गुंजाइश नहीं रही। उसके बगल का हॉल भी भर गया। उसके बाद सड़कों पर भी भीड़ जुटी हुई थी। अब हमें लगने लगा है कि लोगों का इस ओर रुझान बढ़ा है। लोगों को महसूस होने लगा है कि हम गलत रास्ते पर चले गये थे, हम इसी रास्ते पर आयेंगे। तीन-चार पूर्व विधायक भी कार्यक्रम में आये। जातिवाद-संप्रदायवाद के दुष्परिणामों को लोग समझने लगे हैं, वे मानने लगे हैं कि जगदेव बाबू एवं रामस्वरूप वर्मा जी का रास्ता सही रास्ता है। अब हमलोग लौट रहे हैं। हमारा कारवां बढ़ रहा है। 

(संपादन : इमानुद्दीन/अनिल)

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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