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दलित अस्मिता का जयघोष है ‘सरपट्टा’

फिल्म में सभी कलाकारों ने जबरदस्त काम किया है। कबिलन के रूप में अभिनेता आर्य ने अभिनय किया है और कोच रंगान के रूप में पसुपथी हैं। फिल्म में कई जगह पेरियार, बुद्ध और आंबेडकर की तस्वीरें दिखाई देती हैं, जो बॉलीवुड की फिल्मों में दिखाये ही नहीं जाते। बता रहे हैं रवि संबरवाल

फिल्म समीक्षा

वर्ष 2001 में आशुतोष गोवरिकर की फिल्म “लगान” में दलित लड़के को अधनंगा सा दिखाना और फिल्म “सरपट्टा” में दलित समुदाय सरपट्टा के कोच रंगान को कुर्सी पर बैठे मूछों पर ताव देते और साथ में उनके पैरों में पंडित को बैठे दिखाना अपने आप में एक बड़ी बात है।

तमिल फिल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड से काफी आगे निकल चुकी है। एक तमिल फिल्म है “सरपट्टा” जिसमें 1970 के दशक के मद्रास को दिखाया गया है। इसके निर्माता, निर्देशक व पटकथा लेखक आंबेडकरवादी पा रंजीत हैं, जो इससे पहले “मद्रास”, “काला”, “कबाली” और “परीयेरुम पेरुमल” जैसी सफल फिल्में बना चुके हैं।

“सरपट्टा” की कहानी खेल पर आधारित है, जिसके केंद्र में सामाजिक व राजनैतिक विमर्श हैं। फिल्म में दो समुदायों को दिखाया गया है। सरपट्टा परंबराई एक दलित समुदाय का समूह है जबकि इदियप्पा दबंग जाति  का समूह है। दोनों समूह अपनी-अपनी शान के लिए बॉक्सिंग खेलते हैं। कुछ समय से इदियप्पा समूह का ही बॉक्सिंग पर दबदबा था, जबकि उसके कुछ साल पहले सरपट्टा के कोच रंगान और उसके साथी बॉक्सिंग के बाहुबली हुआ करते थे। उसके एक दोस्त की बॉक्सिंग मैच की बहस के चलते हत्या भी कर दी गई थी। लेकिन अब उसका लड़का छिप-छिपकर बॉक्सिंग मैच देखने आ जाता है। वह अनाज की मंडी में मजदूरी करता है। इसका नाम कबिलन है और वह बॉक्सिंग करने के लिए इतना उतावला है कि मैच देखते-देखते भी उसके हाथ-पांव चलने लगते हैं। लेकिन उसकी मां को जब यह पता चलता है कि कबिलन बॉक्सिंग मैच देखने गया था तो उसकी मां उसे झाड़ू से पीटती है और खूब डांटती है। इसके पीछे का कारण यह है कि बॉक्सिंग ने ही उसके पति को उससे छीन लिया और अब वह अपने बेटे को नहीं खोना चाहती थी। लेकिन एक दिन कबिलन सरपट्टा ग्रुप के ही एक बॉक्सर को मुकाबले के लिए चुनौती दे डालता है और रिंग में बुरी तरह उसे हरा भी देता है, जिसे देखकर कोच रंगान समेत सभी हैरान रह जाते हैं।

अब कोच रंगान को नया बॉक्सर कबिलन के रूप में मिल चुका था। उसका पहला मुकाबला डांसिंग बॉक्सर के नाम से प्रसिद्ध बॉक्सर से होता है जो एक खतरनाक बॉक्सर होता है। कबिलन उसे दूसरे राउंड में ही बुरी तरह हरा देता है। अब इदियप्पा ग्रुप अपनी हार पाकर बुरी तरह बौखला जाता है। व इसी ग्रुप का सबसे शक्तिशाली बॉक्सर वेंबुली कबिलन से कहता है कि अगला मैच हम दोनों के बीच ही होगा। दोनों अगले मैच की तैयारी करने लगते हैं। कोच रंगान अपने बेटे को चुनने की बजाय कबिलन को मैच के लिए चुनता है, जिसकी वजह से उसका बेटा बॉक्सिंग होने से एक दिन पहले कबिलन पर हमला कर देता है, क्योंकि सरपट्टा के लिए वह खुद बॉक्सिंग करना चाहता था। लेकिन इसके लिए खुद कोच रंगान राजी नहीं था, क्योंकि वह जानता था कि उसका बेटा मैच हार जाएगा। मैच में कबिलन और वेंबुली की भिड़ंत होती है। मैच रोमांच से भर उठता है लेकिन जैसे ही कबिलन मैच जीतने को होता है तभी इदियप्पा समूह के लोग तोड़फोड़ शुरू कर देते हैं और लकड़ी की कुर्सियां रिंग में खड़े कबिलन पर फेंकने लगते हैं। अफरा-तफरी का माहौल देख इदियप्पा समूह कबिलन को जान से मारने की कोशिश करता है।

फिल्म का एक दृश्य

भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के शासनकाल में लगे आपातकाल का जिक्र करते हुए कहानी को यहां बिल्कुल अलग मोड़ दिया गया है। तभी मैच के बीच में ही कोच रंगान को डीएमके पार्टी की गतिविधियों में शामिल होने के चलते जेल में डाल दिया जाता है।

खेल अब खेल नहीं रहा था बल्कि बदला बन गया था। कुछ समय बाद कोच रंगान जेल से छूटता है। कोच कबिलन को देखकर हैरान हो जाता है क्योंकि अब वह किसी भी नजरिए से बॉक्सर नहीं लग रहा था। उसका पेट बाहर निकल आया था और अनफिट दिखाई दे रहा था। कुछ समय बाद उसके अंदर का बॉक्सर फिर से जिंदा हो जाता है और वह अपने आपको कड़ी मेहनत कर बॉक्सिंग के लिए तैयार कर लेता है।

अब उसका मुकाबला फिर से वेंबुली से ही होना था। दोनों खूब मेहनत करते हैं। मैच में पहुंचने से पहले कबिलन पर हमला करवाया जाता है ताकि वह मैच में पहुंच ही न सके। परंतु सभी को हराकर कबिलन रिंग में पहुंचता है और लड़ता है। वह वेंबुली को परास्त कर देता है। 

फिल्म की खासियत यह है कि इसमें सिर्फ एक नायक नहीं है। कई पात्र अपने आप में नायक हैं। इसमें कबिलन की मां का संघर्ष है। कोच रंगान का बॉक्सिंग रिंग में सरपट्टा को जिंदा रखने का संघर्ष है और कबिलन का अपने समुदाय के लिए जीतने का संघर्ष है। फिल्म में सभी कलाकारों ने जबरदस्त काम किया है। कबिलन के रूप में अभिनेता आर्य ने अभिनय किया है और कोच रंगान के रूप में पसुपथी हैं। फिल्म में कई जगह पेरियार, बुद्ध और आंबेडकर की तस्वीरें दिखाई देती हैं, जो बॉलीवुड की फिल्मों में दिखाये ही नहीं जाते। 

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

रवि संबरवाल

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र में मास कम्युनिकेशन के छात्र रवि संबरवाल स्वतंत्र पत्रकार हैं

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