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संकट में दलित स्त्री (पहला भाग)

लेखक व पत्रकार बजरंगबिहारी तिवारी बता रहे हैं इस वर्ष कोरोना काल के दौरान दलित स्त्रियों के खिलाफ हुई कुछ जघन्य अपराधों के बारे में। आज पढ़ें, जनवरी, 2021 में उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में घटित एक आपराधिक वारदात के बारे में

आंखों-देखी

भारत में कोरोना-काल इसके लिए भी जाना जाएगा कि इस दौरान स्त्रियों पर हिंसा में बढ़ोत्तरी हुई। यह बढ़ोत्तरी घरेलू हिंसा में हुई और सामाजिक हिंसा में भी। यह भी कि हिंसा की खबरें दब गईं, दबा दी गईं, कोरोना से जुड़ी खबरों की बाढ़ में गुमा दी गईं। ऐसे तो हिंसा की चपेट में सभी वर्गों, समुदायों की स्त्रियां आईं लेकिन सर्वाधिक दुष्प्रभावित दलित स्त्रियां रहीं। उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले की घटना (सितंबर 2020) इसका एक नमूना है। इस घटना को ठीक-ठाक मीडिया कवरेज मिला। सामाजिक संगठनों की यहां खूब आवाजाही भी रही। परंतु, ऐसा बाकी मामलों में नहीं हुआ। उन्हें न तो मीडिया ने अपेक्षित जगह दी और ना ही सामाजिक संगठनों ने ठीक से मुद्दा बनाया। ऐसे अवसादपूर्ण माहौल में आनंद तेलतुम्बडे की बड़ी याद आई। वे इन दिनों भीमा-कोरेगाँव मामले में निहायत कमजोर बुनियाद पर, साजिशन जेल में कैद कर दिए गए हैं। खैरलांजी जैसे कई वीभत्स कांडों पर उनकी फैक्ट-फाइंडिंग रपटें जबर्दस्त हैं। वे बाहर होते तो इन घटनाओं पर अवश्य ही लिखते। उनके जैसा स्पष्टवादी, निष्पक्ष और न्याय के लिए प्रतिबद्ध लेखक दुर्लभ है। आनंद जिस प्रखरता से सरकार और प्रशासन की आलोचना करते हैं, कुछ उसी निर्ममता से इंसाफ की लड़ाई का दावा करने वाले अस्मितावादी दलों, संगठनों और नेताओं की भी विवेचना करते हैं। शायद यही वजह है कि उनकी अन्यायपूर्ण गिरफ्तारी पर ऐसे संगठनों और दलों ने ख़ामोशी अख्तियार की। ऐसे मुक्तिकामी संगठन, जो स्वयं को अस्मितावादी नहीं मानते, उनकी भूमिका और सक्रियता भी इस मामले में सराहनीय नहीं रही है।

विवेच्य घटना उत्तर प्रदेश के महोबा जिले की है। कुलपहाड़ तहसील के अंतर्गत करारीपुरा क़स्बा जेतपुर, बेलाताल में 16 जनवरी, 2021 को एक सोलह वर्षीया दलित बालिका की लाश पेड़ से लटकती मिली। घटना के तीन-चार दिन बाद मुझे इसकी सूचना प्राप्त हुई। एक मित्र ने अखबार की कटिंग भेजी, जिसमें कहा गया था कि तनावग्रस्त बालिका ने पेड़ से लटककर अपनी जान दे दी है। प्रारंभिक खोजबीन से ज्ञात हुआ कि यह तथ्य नहीं, मात्र उत्तर प्रदेश पुलिस का मानना है। मृतका के परिवार के लोग इससे इत्तेफाक नहीं रखते। वास्तविकता का अंदाज़ घटना-स्थल पर जाकर ही लगाया जा सकता था। बुंदेलखंड के मेरे एक मित्र ने कुलपहाड़ के राकेश अग्रवाल का संपर्क नंबर दिया। राकेश जी ने बड़ी उदारता से मेरे वहां ठहरने, घटनास्थल तक आने-जाने, सभी संबंधित लोगों से मिल सकने की व्यवस्था की। मैं 29 जनवरी, 2021 को देर रात कुलपहाड़ पहुँचा। अगले दिन 30 जनवरी की सुबह बेलाताल पुलिस चौकी गया। इस पुलिस चौकी को थाना घोषित किया जा चुका है। यहां 9 सिपाही, तीन इंचार्ज की तैनाती है। यह कुलपहाड़ कोतवाली के अंतर्गत आता है। थाने पर तैनात सब इंस्पेक्टर अनमोल सिंह कहीं गए हुए थे। संबंधित मामले की जाँच-पड़ताल सीओ साहब (सर्किल ऑफिसर) के जिम्मे है। वे साहब कोतवाली में मिलेंगे, ऐसा कहा गया। शाम को कोतवाली गया तब उनके कक्ष पर ताला लटका था। दिए गए फोन नंबर पर संपर्क करना चाहा, विफल रहा। पुलिस चौकी पर नियुक्त एक सिपाही ने बताया कि हमने 24 घंटे के भीतर आरोपियों को पकड़ लिया। मेडिकल करवाया। मृतका का पोस्टमार्टम कराया और दाह संस्कार भी करवा दिया। यह पूछने पर कि आरोपियों पर कौन-कौन सी धाराएं लगाई गई हैं, सिपाही ने कहा इस पर सीओ साहब ही रोशनी डाल सकेंगे।

चौकी से घटनास्थल के लिए चला ही था कि दीवान जी (वरिष्ठ कांस्टेबल) आते मिले। उन्हें हमारे आने की खबर लग गई थी। मैं सुरेन्द्रकुमार अग्रवाल जी के साथ था, जो कि स्थानीय पत्रकार हैं। हम पीड़ित परिवार से मिलने करारीपुरा की ओर बढ़े। दीवान जी साथ थे। मुझे लगा कि अगर पुलिस हमारे साथ रही तो पीड़ित परिवार या अन्य संबंधित लोग खुलकर अपनी बात नहीं कह सकेंगे। लिहाजा, मैंने दीवान जी से अनुरोध किया और वे बीच रास्ते अपनी पुलिस चौकी वापस हो गए। मछलीमंडी, सब्जीमंडी पार करते हुए हम पीड़ित परिवार के घर पहुँचे। मृतका की मां मिलीं। गली से ऊपर की तरफ पतला-सा रास्ता जाता है। 20-25 कदम ऊपर चढ़कर उनका मकान है। मकान के नाम पर अभी एक कमरा है। ईंट की दीवार खड़ी है। कमरे पर लिंटर पड़ना बाकी है। परिवारजन अगले हिस्से में रहते हैं। कोरोना के कारण काम बंद हो गया तो नोयडा/दिल्ली से कुलपहाड़ लौट गए। अब नोयडा शायद ही जा सकें। मृतका की मां कोठियों में खाना बनाने का काम करती थीं और उनके पति ईंट-गारे का। पति-पत्नी की उम्र 35-36 के बीच होगी। पैसे मिल रहे थे तो परिवार का खर्चा चल रहा था। अब तो बहुत मुश्किल है। दो बच्चे थे। बड़ा लड़का है- दीपक, उन्नीस वर्ष का। दसवीं तक पढ़ा। नोयडा सेक्टर 41 में एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था। कोरोना तालाबंदी में उसकी कंपनी भी बंद हो गई। अब वह स्थानीय सब्जी बाज़ार में किसी की दुकान पर बैठता है। दो सौ से तीन सौ रुपये रोज़ कमा लेता है। उसी की कमाई से घर का खर्च चलता है।

उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद के कुलपहाड़ थाने के बेलाताल चौकी का नजारा

बेटी का चेहरा तक नहीं देखने दिया

मृतका की मां ने बिलखते हुए बताया कि वे तीनों (आरोपी) लड़के उनकी बेटी को परेशान करते थे। बेटी प्रीति की उम्र 16 वर्ष थी और उसे इस बार बारहवीं की बोर्ड परीक्षा देनी थी। वह नोयडा के एक स्कूल में पढ़ती थी। “एक दिन पहले मैं उन लड़कों की शिकायत करने, उलाहना देने उनके घर गई थी तो उलटे मुझे धमकाया गया। शनिवार (16 जनवरी) मैं यहीं (जहाँ गली खुलती है) बैठी हुई थी, तब मेरी बेटी सामान लाने बाज़ार, गल्ला मंडी जो गेट पर है, गई। बाज़ार करीब एक किलोमीटर भर दूरी पर है। उसने मुझसे अपने मोबाइल से दो बार बात भी की। इसके बाद उसका कोई फोन न आया। यहाँ से मिलाया तो स्विच ऑफ बता रहा था। डरकर हम थाने पर गए। थाने पर मेरा मजाक बनाया गया। मुझसे मेरे पीहर के बारे में पूछ रहे थे। कहा कि तुम्हारी बेटी लौट आएगी। न आए तो शाम को आ जाना। हम बेचैन हो रहे थे। हमने पंडित से पूछा। एक लड़के ने बताया कि वे तीन (आरोपी लड़के) इस तरफ से गए हैं। हमने यह बात पुलिस को बताई। उधर जाने पर बेलाताल के साथ छै (छह) माई माता मंदिर के पास छेवला के पेड़ की एक डाल से लटकती बेटी की लाश दिखी। पुलिस वालों ने उन्हें (तीनों आरोपियों को) थाने पर बुला लिया। पोस्टमार्टम के बाद डेडबॉडी हमें न दिखाई। हम अपनी बेटी की डेडबॉडी अंतिम संस्कार के लिए अपने घर भी न ला सके। 

यह भी पढ़ें – बर्बरता की बाढ़ में दलित स्त्री

काली पन्नी से लिपटी एक लाश दिखाकर पुलिस ने कहा कि यही तुम्हारी बेटी है। हमारी मर्जी के बिना रात में ही लाश जला दी। बेलाताल के दरोगा थे। उन्होंने बेलाताल शमशान घाट पर लाश जलवा दी। घर पर चार पुलिस वाले आए थे। कह रहे थे कि राजीनामा कर लो। चार लाख में। पुलिस ने उनसे कितना लिया होगा, पता नहीं। पुलिस उन्हीं के साथ खड़ी है। हमारी कोई सुनवाई नहीं हो रही। पता नहीं हमें कभी न्याय मिलेगा भी? पुलिस कुछ कर नहीं रही। आरोपियों को पकड़ने उनके घर भी नहीं गई थी। उन्हें वहीं थाने पर बुलवा लिया था। जरूर मोटी रकम दी गई होगी।”

रोष में भरे मृतका के पिता ने कहा कि उन्हें न्याय चाहिए। वे अब नोयडा नहीं जाएंगे। यहीं रहेंगे। वे तीन भाई हैं। वे सबसे छोटे हैं। बंटवारा बहुत पहले हो चुका है। सबसे बड़े (40 वर्ष) को तीन बेटे और एक बेटी है। मंझले भाई (36 वर्ष) को चार बेटे हैं। स्वयं उनकी दो ही संतानें थीं। बेटी की मृत्यु के बाद अब एकमात्र बेटा दीपक (19) है। “बेटे की कमाई से घर चल रहा है। मेरा तो काम-धंधा बंद है।”

 मृतका के भाई ने कहा कि जिला मुख्यालय महोबा में पंचनामे के वक्त थोड़ी देर के लिए बहन का चेहरा दिखा। उसके बाद वह काली पॉलिथीन में लिपटी शमशान में पुलिस द्वारा लाई गई। वहाँ हमें उसका चेहरा तक नहीं देखने दिया गया। मेरी बहन कान और नाक में गहना पहने हुए थी। वह गहने कहां गए? पुलिस ने हमें बच्ची का मोबाइल भी नहीं दिया। हमारी कोई सुनवाई नहीं है। मोबाइल के कॉल डिटेल्स से सच का खुलासा हो सकता है। अभी हमें कुछ भी बताया नहीं जा रहा है। 

इंसाफ पर सियासत भारी, पुलिस पर सबूत मिटाने के आरोप

26-27 जनवरी, 2021 को बहुजन समाज पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं का एक प्रतिनिधि मंडल पूर्वमंत्री गयाचरण दिनकर के नेतृत्व में पीड़ित परिवार से मिलने पहुँचा था। राकेश अग्रवाल जी ने वह रिपोर्ट मुझे भेज दी थी। मैंने मृतका के भाई से इस सूचना की पुष्टि करनी चाही। उसने कन्फर्म किया कि बसपा के लोग आए थे। उन्होंने हमें कुछ मदद का आश्वासन भी दिया था, मगर उसके बाद उनकी तरफ से कोई सुध-खबर नहीं ली गई। वहीं पास खड़े एक व्यक्ति ने जोड़ा कि ऐसे मामलों में बसपा की कोई रुचि नहीं होती। हमलावर भी उसी जाति-समुदाय के हैं तो बसपा को कोई चुनावी लाभ नहीं होगा। ऐसे में भला वे इंसाफ के लिए आवाज़ क्यों उठाएंगे? 

वह पेड़, जिसकी टहनी से टंगा था मृतका का शव। बाद में पुलिस ने टहनी को ही कटवा दिया

क्या किसी अन्य संगठन अथवा राजनीतिक दल के लोग आए थे? मेरे इस प्रश्न पर मृतका के भाई ने नकार में सिर हिलाया। सपा (समाजवादी पार्टी) से भी कोई नहीं आया था, उसने बताया। उसने तकलीफ भरी आवाज़ में कहा कि पुलिस ने आरोपियों की उम्र में घपलेबाजी की है। वे तीनों 19-19 साल के हैं, लेकिन नाबालिग बनाने के लिए उन्हें 17-17 वर्ष का लिख दिया। उसने कहा कि उन्हें कोई मुआवजा नहीं चाहिए। “न्याय मिलना चाहिए। हमारा फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमा चले। दोषी यथाशीघ्र दंडित किए जाएं। पुलिस का रवैया देखकर लगता नहीं कि इंसाफ होगा। वह छिवला पेड़ की जिस डाल से लटकी मिली थी, पुलिस ने उसी रात वह डाल कटवा दी। डाल अब भी वही पड़ी है।” मृतका के घर से आत्महत्या वाली जगह 4 किलोमीटर की दूरी पर है। जब मैं (लेखक) वहां पहुँचा तो पाया कि वह डाल उठवा ली गई थी। ताज़ी हरी सूखी हुई पत्तियाँ और टहनियां वहाँ थीं। छिवला के पेड़ आकार में बड़े नहीं होते। वह डाल भी नीचे ही थी। ढलान पर होने के नाते उस पेड़ तक पहुंचना और उस पर चढ़ना भी कठिन है। क्या सचमुच मृतका यहाँ तक आई? अब तक का अनुभव या पर्यवेक्षण तो यही कहता है कि शायद ही कोई बालिका आत्महत्या के लिए घर से इतनी दूर जाती हो! प्रश्न है कि सबूत इतनी जल्दी नष्ट क्यों किए गए? परिवार वालों की रजामंदी लिए बगैर रात में ही लाश को जला क्यों दिया गया? पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बालिका पर यौन हमले की बात का जिक्र नहीं है। दम घुटने से मृत्यु हुई, ऐसा लिखा गया है। पंचनामे में उल्लेख है कि पंचों (जिसमें मृतका के पिता, चाचा, मामा, चचेरे भाई हैं) की राय में मृतका अपने दुपट्टे से फांसी लगाकर मरी है|

आरोपियों के परिजनों का बयान

पीड़ित परिवार से मिलने के बाद मैं आरोपियों के परिवार जनों का पक्ष जानने के लिए उनके घर गया| ये घर ज्यादा दूर नहीं हैं| सबसे पहले नाई जाति से आनेवाले एक आरोपी की दुकान दिखी। आरोपी के पिता (60 वर्ष) के तीन बेटे हैं– एक (38 वर्ष), दूसरा (27 वर्ष) और तीसरा आरोपी (पिता ने साढ़े सोलह साल की उम्र बताई)। उस समय दुकान में 3-4 ग्राहक थे। पहले दोनों बेटे बाल काटने में लगे थे। उन्होंने मुझसे छूटते ही कहा उनके भाई को फंसाया गया है। उनका भाई उस दिन दुकान पर था। उस दिन सुबह वह एएसके महाविद्यालय में एडमिशन फीस जमा कराने गया था। बी.ए. प्रथम वर्ष की फीस भरनी थी। कॉलेज से लौटकर उसने घर पर खाना खाया और सीधे दुकान पर आ गया। दुकान और घर के बीच ज्यादा दूरी नहीं है। हमारी बात हो रही थी कि तब तक उनके पिता जी आ गए। उन्होंने कहा कि उनके बेटे के खिलाफ कभी कोई शिकायत नहीं आई है। न थाने में, और न मुहल्ले में। “उस दिन (16 जनवरी) को आरोपी शाम पाँच बजे तक दुकान पर काम करता रहा था जबकि लड़की तो 11-12 बजे तक गोल हो गई थी।” उन्होंने यह भी बताया कि जब भूपिंदर पानी भरने गया था तब लड़की की चाची ने बताया कि वह (लड़की) तो तीन-चार घंटे से गायब है। अगर मेरे बेटे ने कोई गलती की होती तो वह पुलिस के एक बार बुलाने भर से थाने क्यों जाता? “तब आपके बेटे का नाम किस आधार पर एफआइआर (प्राथमिकी) में डाला गया?” मेरे इस सवाल पर उनका कहना था कि पिछली नवरात्र में तीनों (आरोपी) एक साथ नौदुर्गा मंदिर गए थे। उसी को आधार बनाकर नामजद रिपोर्ट लिखाई गई। असली बात यह थी वह लड़की उस दिन मंदिर गई ही नहीं थी। “एक और बात भी जान लीजिए, लड़की ने एक हफ्ते पहले डाई (बाल काला करने वाला लिक्विड) पी लिया था।” 

ग्राम पंचायत जैतपुर की आबादी 18-20 हज़ार होगी। यहाँ संख्या में सबसे अधिक ढीमर या रैकवार हैं। उसके बाद मुसलमान। फिर, ब्राह्मण। इसके बाद क्रमशः कोरी (बुनकर), राजपूत, यादव, वाल्मीकि, जाटव (अहिरवार) हैं। नाई के 15-20 परिवार हैं, करीब 250 लोग। बुनकर पर्याप्त संख्या में हैं तो पहले यहाँ गांधी आश्रम हुआ करता था। अब टूट गया है। कोरी जाति के प्रत्याशी ग्राम प्रधान से लेकर ब्लाक प्रमुख तक बन चुके हैं। इस समय ग्राम प्रधान मौला बख्श की पत्नी मुन्नी खातून हैं।

पहले आरोपी के बाद दूसरे आरोपी के परिवार से मिला। उस समय घर में महिलाएं थीं। उसकी बड़ी अम्मा ने हमसे बात की। पहले उन्होंने माना कि बच्चे ने गलती कर दी। फिर कहा कि गाँव-बिरादरी में दुश्मन तो होते ही हैं, क्या पता हमें फंसाया गया हो? बच्चा (आरोपी) 12वीं का छात्र है। बजरंग इंटर कॉलेज में पढ़ता है। साइंस/मैथ्स ग्रुप में। पहले उसकी किसी से भी लड़ाई नहीं हुई थी। कभी उसकी कोई शिकायत नहीं आई थी। 10 फरवरी से उसकी बोर्ड परीक्षा शुरू होनी थी। अब वह जेल (बाल सुधार गृह, चित्रकूट) में है। “हमें तो फंसाया गया है।”

इसके बाद तीसरे आरोपी के घर की तरफ गया। उसके पिता की चाय की दुकान है। मकान के अगले हिस्से में दुकान है। दुकान पर आरोपी के पिता (50 वर्ष) मिले। उनके तीन पुत्र हैं। आरोपी सबसे छोटा है। बड़े बेटे ने पॉलिटेक्निक की है। आरोपी सहित शेष दोनों बेटे पिता के साथ चाय की दुकान संभालते हैं। आरोपी के पिता ने बताया कि उनके बेटे (आरोपी) की उम्र मात्र 17 साल है। आठवीं तक पढने के बाद वह चाय की दुकान पर बैठने लगा। उसको नाहक फंसाया गया है। वह दूसरे आरोपी) के साथ उठता-बैठता था, इसलिए उस पर आरोप लगा दिया गया। उन्होंने कहा कि वे पुलिस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे लेकिन यह मांग जरूर करेंगे कि जाँच निष्पक्ष हो। “लड़की के करेक्टर की जाँच-पड़ताल जरूर की जानी चाहिए। उसने एक हफ्ते पहले डाई पी लिया था।” ग्राम प्रधान के रवैये के बारे में पूछने पर आरोपी के पिता ने कहा कि उनसे कोई शिकायत नहीं है। 

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

बजरंग बिहारी तिवारी

बजरंग बिहारी तिवारी ( जन्‍म : 1 मार्च, 1972): आलोचक व समीक्षक प्रो. बजरंग बिहारी तिवारी के अध्ययन का मुख्य क्षेत्र दलित साहित्य रहा है। उनकी प्रमुख पु‍स्‍तकें में 'जाति और जनतंत्र', 'भारतीय दलित साहित्य : आंदोलन और चिंतन', 'दलित साहित्य : एक अंतर्यात्रा' व 'बांग्ला दलित साहित्य : सम्यक अनुशीलन' आदि शामिल हैं। संप्रति दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर हैं।

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