h n

हिंदू कोड बिल को लेकर डॉ. आंबेडकर के प्रति आर्य महिलाओं के मन में जहर

हिंदू कोड बिल स्त्री अधिकारों की दावेदारियों का क़ानूनी घोषणा पत्र था। लेकिन डॉ. आंबेडकर के इस कोड बिल का सादन से लेकर बाहर तक पुरज़ोर विरोध किया गया था। यहां तक कि हिंदी नवजागरण काल की चर्चित पत्रिका ‘आर्य-महिला’ ने भी विषवमन किया था। बता रहे हैं सुरेश कुमार

“महत्व की दृष्टि से भारत विधानमंडल द्वारा अतीत में या भविष्य में निर्मित की जानी वाली किसी भी विधि की तुलना इससे (हिंदू कोड) नहीं की जा सकती। वर्गीय और लैंगिक असमानता, जो हिंदू समाज का मूलाधार है, को बरक़रार रखते हुए केवल आर्थिक मसलों से जुड़े कानून पारित करते जाना हमारे संविधान का मखौल बनाना होगा। यह ऐसा ही है जैसे गोबर के ढेर पर महल की तामीर करना। मैं हिंदू कोड को इसलिए इतना अधिक महत्व देता हूँ।” यह वाक्य थे डॉ. आंबेडकर के जब उन्होंने हिंदू कोड बिल से तत्कालीन नेहरू सरकार के पीछे हटने पर कानून मंत्री से पद से इस्तीफा देते समय।

यह डॉ. आंबेडकर की जाति के विनाश के विचार के प्रति प्रतिबद्धता का परिचायक था, जो यह मानते थे कि जाति व्यवस्था के विनाश के लिए महिलाओं को पितृसत्ता की गुलामी से मुक्त कराना आवश्यक है।

दरअसल, डॉ. आंबेडकर ने जिस हिंदू कोड बिल का प्रस्ताव किया था, वह सभी जाति की महिलाओं की आजादी काे ध्यान में रखकर बनाया गया था। जिसका तब विरोध न केवल ब्राह्मणवादी पुरुषों ने किया बल्कि वे महिलाएं भी थीं, जो पितृसत्ता को बनाए रखने की पक्षधर थीं। जबकि डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रस्तावित विधेयक में बिना वसीयत किए मृत्यु को प्राप्त हो जाने वाले हिंदू पुरूषों और महिलाओं की संपत्ति के बंटवारे के संबंध में कानूनों को संहिताबद्ध किए जाने का प्रस्ताव था। यह विधेयक मृतक की विधवा, पुत्री और पुत्र को उसकी संपत्ति में बराबर का अधिकार देता था।

हिंदू कोड बिल दो प्रकार के विवाहों को मान्यता देता था– सांस्कारिक व सिविल। उसमें हिंदू पुरूषों द्वारा एक से अधिक महिलाओं से शादी करने पर प्रतिबंध और विवाह के विघटन संबंधी प्रावधान भी थे। किसी भी विवाहित व्यक्ति को विवाह की संविदा समाप्त करने के तीन रास्ते उपलब्ध थे– पहला, विवाह को शून्य घोषित करवाना, दूसरा, विवाह को अवैध घोषित करवाना और तीसरा, विवाह का विघटन। विधेयक में यह प्रावधान भी था कि किसी विवाह को अदालत द्वारा अवैध घोषित कर देने के बाद भी उससे उत्पन्न संतानों की वैधता प्रभावित नहीं होगी।

विवाह विच्छेद के लिए सात आधारों का प्रावधान था। 1) परित्याग, 2) धर्मांतरण, 3) रखैल रखना या रखैल बनना, 4) असाध्य मानसिक रोग, 5) असाध्य व संक्रामक कुष्ठ रोग, 6) संक्रामक यौन रोग व 7) क्रूरता।

आंबेडकर द्वारा हिंदू कोड बिल में जो प्रावधान किए गए उनसे दो बातें स्पष्ट होती हैं। पहली, वे पिछड़ी जातियों के राजनीतिक नेता थे और उनके हितों का प्रतिनिधित्व करते थे। दो, जब उन्होंने हिंदू कोड बिल तैयार किया तब तक उन्होंने यह निश्चय कर लिया था कि वे हिंदू धर्म को त्यागकर बौद्ध धर्म अपनाएंगे। उसके बाद भी उन्होंने कठोर परिश्रम से ऐसे विधेयक का मसविदा तैयार किया, जिससे हिंदू महिलाओं को लाभ होता और उनमें से भी ऊँची जातियों/वर्गों की महिलाओं को, जिनके परिवार के सदस्यों के पास संपत्ति होती। आंबेडकर को केवल किसी विशेष वर्ग या जाति की महिलाओं के हितों की चिंता नहीं थी। वे सभी जातियों व वर्गों की महिलाओं के हितों का संरक्षण चाहते थे।

इस आधार पर देखें तो हिंदू कोड बिल स्त्री अधिकारों की दावेदारियों का क़ानूनी घोषणा पत्र था। लेकिन डॉ. आंबेडकर के इस कोड बिल का सादन से लेकर बाहर तक पुरज़ोर विरोध किया गया था। यहां तक कि हिंदी नवजागरण काल की चर्चित पत्रिका ‘आर्य-महिला’ ने भी विषवमन किया था।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 28 नवंबर को हिंदू कोड बिल को लेकर अपने भाषण में कहा था कि यदि यह बिल पास नहीं हुआ तो उनकी सरकार पद त्याग करेगी। नेहरू के इस वक्तव्य से आर्य-महिला की संपादक सुंदरी देवी बेहद खफ़ा दिखीं।

यह बड़ी दिलचस्प बात है कि स्त्री केन्द्रित पत्रिका ‘आर्य-महिला’ ने हिंदू कोड बिल का सदन के बाहर सबसे तीखा और पुरज़ोर विरोध किया था। ‘आर्य-महिला’ पत्रिका श्री आर्यमहिला हितकारिणी महापरिषद की मुखपात्र थी। इस पत्रिका का उद्देश्य भारतीय स्त्रियों में सांस्कृतिक, साहित्यिक, धार्मिक और आदर्शवादी विचारों का प्रचार-प्रसार करना था। सन् 1918 में इस पत्रिका का प्रकाशन काशी से हुआ था। इस पत्रिका की पहली संपादक श्रीमती सुरथा कुमारी देवी थी। इसके बाद पत्रिका की संपादक श्रीमती नारायणी देवी बनाई गयीं। यह पत्रिका सरकारी स्कूलों में स्वीकृत भी थी। हिंदू कोड बिल का निर्माण जिस समय हो रहा था, उस समय इस पत्रिका की प्रधान संपादक श्रीमती सुंदरी देवी एम.ए. थीं। आर्य-महिला की संपादक ने डॉ. आंबेडकर और तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ़ हिंदू कोड बिल मसले पर जमकर मोर्चेबंदी दिखाई। ‘आर्य-महिला’ पत्रिका का दावा था कि हिंदू कोड बिल सनातन धर्म और क़ानून पर सबल आघात है। आजादी के दो वर्ष पूरे होने पर पत्रिका के संपादकीय में इस बात पर चिंता प्रकट की गयी कि भारत भले ही स्वतंत्र है लेकिन सनातन धर्म का आकल्पनीय ह्रास हो रहा है। सन् 1949 के अगस्त अंक के संपादकीय में संपादक सुंदरी देवी ने यह दावा किया कि भारतीय स्वतंत्रता के साथ हिन्दु धर्म पर अनेक आक्रमण आरंभ हो गए हैं। ‘आर्य-महिला’ के इस संपादकीय में हिन्दु कोड बिल को हिंदू-धर्म पर प्रबल आघात के रूप में देखा गया। संपादक ने अपनी शंका प्रकट करते हुए कहा कि हिंदू-समाज के प्रत्यक्ष कलंक रूप हिंदू कोड बिल जैसे प्रस्ताव को पराश्रय देकर यह विचारणीय विषय बन गया, जिसके स्वीकृत हो जाने पर निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि रहा-सहा हिन्दु धर्म भी क़ानूनों के सबल आघातों द्वारा एक दिन सर्वथा लोप हो जा सकता है।

नेहरू भी रहे आर्य महिलाओं के निशाने पर

‘आर्य-महिला’ के सितंबर 1949 के अंक के संपादकीय में हिंदू कोड बिल का पुरज़ोर विरोध किया गया। इस संपादकीय में नेहरू का तीखा विरोध करते हुए कहा गया कि नेहरू सरकार हठ त्याग कर हिंदू कोड बिल को वापिस ले ले। इस संपादकीय में यह भी दावा किया गया कि इस बिल से सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक जीवन में उथल-पुथल मच जाएगा। संपादक का कहना था कि पंडित जवहरलाल नेहरू भारतीय जनता को धोखे में डालकर इस बिल को पारित करने का कुचक्र न करें। इस संपादकीय के हवाले से नेहरू सरकार को इस बात की चेतावनी भी दी गई कि हिंदुओं के सनातन धर्म का नाश करने वाला शासन लंबे समय तक टिक नहीं सकता है। इस संपादकीय में नेहरू को उदाहरण देकर बताया गया कि बौद्धों ने सनातन धर्म का नाश करना चाहा तो कुमारिल भट्ट ने इस भूमि से निष्कासित कर दिया और बौद्धों को चीन-जापान में शरण लेनी पड़ी है। ‘आर्य-महिला’ पत्रिका नेहरू सरकार पर इस बिल को वापिस लेने का पुरजोर दबाव बना रही थी। आर्य-महिला के दिसंबर 1949 के संपादकीय में नेहरू सरकार की तीखी आलोचना की गई। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 28 नवंबर को हिंदू कोड बिल को लेकर अपने भाषण में कहा था कि यदि यह बिल पास नहीं हुआ तो उनकी सरकार पद त्याग करेगी। नेहरू के इस वक्तव्य से आर्य-महिला की संपादक सुंदरी देवी बेहद खफ़ा दिखीं। उन्होंने नेहरू की आलोचना करते हुए अपने संपादकीय में लिखा कि पद त्याग के पिस्तौल से नेहरू ने बाजी जीत ली है। बिल का समर्थन करने वाले सदस्यों ने केवल अपना व्यक्तिगत मत दिया है। इस बिल का समर्थन कर उन्होंने करोड़ों देशवासियों के साथ विश्वासघात किया है। इसके बाद नेहरू सरकार को धमकी देते हुए संपादकीय में लिखा गया कि ‘हिंदू कोड बिल के संबंध में भी नेहरूजी तथा नेहरू सरकार इससे भो भयंकर भूल करने जा रही है। नेहरूजी अपनी व्यक्तिगत लोकप्रियता तथा अपनी सरकार की सारी शक्ति जमाकर हिंदू कोड बिल पास करने पर तुले हुए हैं, जैसा कि उनके 28 नवम्बर के संघधारा सभा में दिये हुए वक्तव्य से स्पष्ट है। इस समय वे अपने हितैषियों की सलाह सुनने को भी तैयार नहीं है, परन्तु जब हिंदू कोड बिल कानून बनकर हिंदू जनता पर लागू हो जाएगा और उसका जो भयकर परिणाम होगा, उसका सारा उत्तर दायित्व नेहरूजी और उनकी सरकार पर होगा।’ इस तरह ‘आर्य-महिला’ की संपादक हिंदू संस्कृति की दुहाई देकर बिल वापिस लेने का दबाव बना रही थी। ।

मुख्य निशाने पर थे डॉ. आंबेडकर

श्रीमती विद्यादेवी ने हिंदू कोड बिल का मुखर विरोध किया था। विद्यादेवी श्री आर्यमहिला हितकारिणी महापरिषद की संचालिका और अखिल भारतीय महिला संघ अध्यक्ष थी। डॉ. आंबेडकर ने अप्रैल 1950 में हिंदू कोड बिल तलाक, संपत्ति का अधिकार, स्त्री संपत्ति और एकपत्नी विवाह पर एक कान्फ्रेंस आयोजित की थी। डॉ. आंबेडकर ने इस कान्फ्रेंस में श्रीमती विद्यादेवी को भी अपना मत रखने के लिए आमंत्रित किया था। इसकी विस्तृत रिपोर्ट आर्य-महिला जून 1950 के अंक में छपी थी। श्रीमती विद्यादेवी ने इस कान्फ्रेंस में हिंदू कोड बिल का घोर विरोध किया था। उन्होंने पहले तो वैदिक संस्कृति का बड़ा गुणगाण किया फिर कहा भारतीय स्त्री के पति के आदर्श राम हैं। हिंदू स्त्रियाँ धर्म-शास्त्र का त्यागकर इंद्रिया सुख की कामना नहीं रखती हैं। इसलिए हिन्दु कोड बिल को तत्काल वापिस लिया जाए। आर्य-महिला, सितंबर 1951 के अंक में श्रीमती विद्यादेवी ने हिंदू कोड बिल के विरोध में ‘हिंदू कोड बिल से हिंदू महिलाओं का सर्वनाश’ शीर्षक से लेख लिखा था। लेखिका कि ओर इस लेख में दावा किया कि हिंदू कोड बिल लागू होने से आर्य नारियों का सदियों से संचित सतीत्व नष्ट हो जाएगा। वे लोक-परलोक कहीं की नहीं रहेगी।

श्रीमती विद्यादेवी का मत था कि शासन सत्ता को केवल उनकी आज्ञापालन का अधिकार है, हिंदूकोड का नया शास्त्र बनाने का हक़ नहीं हैं। श्रीमती विद्यादेवी ने अपने लेख के निष्कर्ष में दावा किया कि हिंदू कोड बिल बनाना सरकार अनधिकार चेष्टा कर रही है। इस बिल के लागू होने से स्त्री जाति का सर्वनाश हो जाएगा। श्रीमती विद्यादेवी जिन शास्त्रों की दुहाई दे रही थी, उन्हीं शास्त्रों ने स्त्रियों का अधिकारविहीन बना डाला था। जबकि हिंदू कोड बिल तो स्त्रियों को अधिकार दिलाने की बात कर रहा था।

उनका मन डॉ. आंबेडकर के लिए जहर से भरा था। जबकि डॉ. आंबेडकर हिंदू नारी के उत्थान के लिए ही हिंदू कोड बिल की परियोजना लेकर आए थे। इस कोड बिल में स्त्री के संपत्ति के अधिकार से लेकर तलाक तक प्रावधान किया गया था।

श्रीमती विद्यादेवी ने आर्य-महिला, अगस्त 1951 के अंक में ‘हिंदू-कोड बिल हिंदू नारियों को चुनौती’ शीर्षक से एक और लेख लिखा था। इस लेख में उन्होंने हिंदू महिलाओं से कोड बिल का विरोध करने की अपील की थी। श्रीमती विद्या देवी ने हिंदू महिलाओं से अपील करते हुए कहा कि, ‘हिंदू नारियों से हमारी प्रार्थना है कि, अब प्रमाद-निंद्रा में सोने का समय नहीं है। अधिक से अधिक संख्या से दिल्ली चलिये और अपने शांतिपूर्ण उग्र प्रदर्शन से हिंदू कोड बिल पास करना असंभव कर दीजिये। जो नहीं हो सकें, वे प्रधान मंत्री के पास तार या पत्र भेज अपना विरोध प्रकट करें।’

जब की गयी डॉ. आंबेडकर को कानून मंत्री के पद से हटाने की मांग

‘आर्य-महिला’ पत्रिका ने हिंदू कोड बिल के मसले पर डॉ. आंबेडकर के विरुद्ध मोर्चा खोला दिया था। पत्रिका के जून 1950 के अंक में ‘यह लोकतन्त्र या नेहरूशाही’ शीर्षक से संपादकीय लिखा गया। इस संपादकीय डॉ. आंबेडकर को हिंदू जाति का द्रोही बताया गया। संपादिका सुंदरी देवी का मत था कि डॉ. आंबेडकर हिंदू धर्म के कट्टर विद्रोही है। ऐसे हिंदूद्रोही व्यक्ति के हाथों कानून बनवाना हिंदू जाति का अपमान करना है। अपने इस संपादकीय में सुंदरी देवी ने डॉ. आंबेडकर को कानून मंत्री के पद से हटाने की मांग कर डाली थी। डॉ. आंबेडकर को लेकर इस संपादकीय में लिखा गया कि, “डॉ. आंबेडकर हिंदू जाति तथा हिंदू धर्म के कट्टर द्रोही हैं, यह उनकी अबतक की कृतियों एवं उनके गत मई मास में बुद्ध जयन्ती के उपलक्ष्य में दिल्ली में आयोजित एक सभा में हिंदू धर्म के संबंध में जो उन्होने विष उगला है, उसी से स्पष्ट है। ऐसे हिंदू धर्म द्रोही को विधानमंत्री बनाकर उसके हाथ में केवल हिदूओं के लिये हिंदू कोड बिल बनानेका अधिकार सौपना क्या हिंदू जनता का घोर तिरस्कार एव अपमान नहीं है? उक्त सभा में जिस तरह हिंदू धर्म की आलोचना डाॅ. आंबेडकर ने की, उसी प्रकार यदि मुसलमान धर्म की होती, तो क्या उनको विधानमंत्री बना रखने का यही साहस नेहरू सरकार दिखा सकती थी?’

नेहरू के पीछे हटने के बाद छलकी थी आर्य महिलाओं की खुशी

आख़िरकार, नेहरू सरकार पर हिन्दी लेखक, संपादक, आर्य-महिलाएँ, हिंदू संगठन और राजनेताओं ने चौतरफा दबाव बना कर हिंदू कोड बिल को पारित होने से पीछे धकेल दिया। 26 सितंबर 1951 को प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू यह घोषणा कर दी कि समय का अभाव होने से इस पर विचार नहीं होगा। ‘आर्य-महिला’ की संपादक ने हिंदू कोड बिल के पारित न होने की खुशी का इज़हार अक्तूबर 1951 के अंक में ‘दैवी विजय’ शीर्षक से संपादकीय लिखकर किया गया। इस संपादकीय में हिंदू कोड बिल को देवता और असुरों का संग्राम बताया गया। असुरों पर देवताओं की विजय की संज्ञा दे डाली थी। हिंदू कोड बिल के पारित न होने की खुशी में इस संपादकीय में लिखा गया था कि, ‘हिंदू कोड बिल संबंधी संग्राम देवता एवं असुरों का संग्राम था, इस कारण यह तात्कालिक विजय आसुरी सम्पत्ति पर दैवी सम्पति की विजय है। इसका सर्वोपरि श्रेय हिंदूजाति के सर्वमान्य नेता वीतराग त्याग तपोमूर्ति पूज्यपाद श्रीकरपात्री जी को है, जिन्होंने सर्दी और गर्मी, दिन और रात एक समान करके भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक सतत पर्यटन करके प्रगाढ़, मोहनिद्रा में पड़ी हुई हिंदू जाति को जगाकर इस बिल के विरोध का प्रचण्डतम रूप बना दिया। देशके कोने-कोने से सहस्रां नर-नारियों का दल इस बिल के विरोध के लिये दिल्ली पहुँचने लगा और उग्र विरोध तथा प्रदर्शन प्रारंभहो गया। पूज्य स्वामी करपात्री जी तथा महिलाओं पर पुलिस द्वारा निष्ठुरतासे लाठी प्रहार कराया गया, इसके विरोध में अखिल भारतीय महिला संघ की प्रधान मंत्री लखनऊ की श्रीमती शान्तादेवी वैद्या तथा मद्रास के प्रसिद्ध नेता स्वामी सत्यानन्दजी ने आमरण अनशन प्रारंम्भ कर दिया। इतना संगठित एवं जोरदार विरोध देखकर समयाभाव का बहाना बनाकर इस समय के लिये हिंदू कोड बिल स्थगित करने के लिये नेहरू सरकार को विवश होना पड़ा।’

बहरहाल, बीसवीं सदी में हिंदू कोड बिल का पारित न होना बड़ी परिघटना थी। स्त्री अधिकारों की पैरोकारी करने वाले इस बिल के खिलाफ आर्य-महिलाओं ने जमकर मोर्चेबंदी की थी। आर्य महिलाएं जिस हिंदू संस्कृति की दुहाई देकर इसका विरोध कर रही थी, उसी ने मानवीय अधिकारों से उन्हे वंचित करने का काम किया था। ‘आर्य-महिला’ की इस मुहिम से न जाने कितनी स्त्रियाँ कानूनी अधिकार पाने से वंचित रह गयी थी। आर्य महिलाओं ने हिंदू कोड बिल के विरोध करके न जाने कितनी स्त्रियाँ को पराधीन बना दिया था। जबकि हिंदू कोड बिल स्त्री पराधीनता की बेड़ियों का संघार कर रहा था। देखा जाए तो अब भी उच्च श्रेणी की बहुत सी बुद्धिजीवी स्त्रियाँ डॉ.आंबेडकर के चिंतन से बहुत अधिक सरोकार और जुड़ाव नहीं महसूस करती हैं। वे डॉ. आंबेडकर को जाति और आरक्षण के आईने में देखती है। उनका मन डॉ. आंबेडकर के लिए जहर से भरा था। जबकि डॉ. आंबेडकर हिंदू नारी के उत्थान के लिए ही हिंदू कोड बिल की परियोजना लेकर आए थे। इस कोड बिल में स्त्री के संपत्ति के अधिकार से लेकर तलाक तक प्रावधान किया गया था।

(संपादन : नवल/अनिल)

लेखक के बारे में

सुरेश कुमार

युवा आलोचक सुरेश कुमार बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एम.ए. और लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद इन दिनों नवजागरण कालीन साहित्य पर स्वतंत्र शोध कार्य कर रहे हैं। इनके अनेक आलेख प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित हैं।

संबंधित आलेख

फुले, पेरियार और आंबेडकर की राह पर सहजीवन का प्रारंभोत्सव
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के सुदूर सिडियास गांव में हुए इस आयोजन में न तो धन का प्रदर्शन किया गया और न ही धन...
भारतीय ‘राष्ट्रवाद’ की गत
आज हिंदुत्व के अर्थ हैं– शुद्ध नस्ल का एक ऐसा दंगाई-हिंदू, जो सावरकर और गोडसे के पदचिह्नों को और भी गहराई दे सके और...
जेएनयू और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के बीच का फर्क
जेएनयू की आबोहवा अलग थी। फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में मेरा चयन असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर हो गया। यहां अलग तरह की मिट्टी है...
बीते वर्ष 2023 की फिल्मों में धार्मिकता, देशभक्ति के अतिरेक के बीच सामाजिक यथार्थ पर एक नज़र
जाति-विरोधी फिल्में समाज के लिए अहितकर रूढ़िबद्ध धारणाओं को तोड़ने और दलित-बहुजन अस्मिताओं को पुनर्निर्मित करने में सक्षम नज़र आती हैं। वे दर्शकों को...
‘मैंने बचपन में ही जान लिया था कि चमार होने का मतलब क्या है’
जिस जाति और जिस परंपरा के साये में मेरा जन्म हुआ, उसमें मैं इंसान नहीं, एक जानवर के रूप में जन्मा था। इंसानों के...