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सामाजिक-राजनैतिक स्तर पर खंडित हैं पंजाब के दलित

पंजाब के दलित पहले से ही धार्मिक निष्ठाओं और परंपरागत व्यवसायों के आधार पर बंटे हुए थे। इस स्थिति का मुख्यधारा की राजनैतिक पार्टियों ने जमकर दोहन किया, जिससे उनके बीच की विभाजक रेखाएं और गहरी होती गईं हैं, बता रहे हैं रौनकी राम

पंजाब में कुल आबादी में दलितों की आबादी का अनुपात, भारत के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सबसे अधिक है। पंरतु राज्य का दलित समुदाय एकसार नहीं है। यह 39 जातियों में बंटा हुआ है, जिनकी आध्यात्मिक निष्ठा अलग-अलग धर्मों और डेरों के प्रति है। ऊंच-नीच पर आधारित इन विभाजक रेखाओं के कारण ही यह समुदाय राज्य में चुनावों में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवा पाता है।

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लेखक के बारे में

रौनकी राम

रौनकी राम पंजाब विश्वविद्यालय,चंडीगढ़ में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनके द्वारा रचित और संपादित पुस्तकों में ‘दलित पहचान, मुक्ति, अतेय शक्तिकरण’, (दलित आइडेंटिटी, इमॅनिशिपेशन एंड ऍमपॉवरमेंट, पटियाला, पंजाब विश्वविद्यालय पब्लिकेशन ब्यूरो, 2012), ‘दलित चेतना : सरोत ते साररूप’ (दलित कॉन्सशनेस : सोर्सेए एंड फॉर्म; चंडीगढ़, लोकगीत प्रकाशन, 2010) और ‘ग्लोबलाइजेशन एंड द पॉलिटिक्स ऑफ आइडेंटिटी इन इंडिया’, दिल्ली, पियर्सन लॉंगमैन, 2008, (भूपिंदर बरार और आशुतोष कुमार के साथ सह संपादन) शामिल हैं।

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