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सुप्रीम कोर्ट के समक्ष धरना दें राकेश टिकैत, पूछें– कृषि केंद्र का विषय या राज्य का? : प्रकाश आंबेडकर

तीनों कृषि कानूनों की वापसी सरकार द्वारा राजनीतिक कारणों से ही लिया गया फैसला है। इसलिए तो हम सुप्रीम कोर्ट से कह रहे हैं कि कृषि केंद्र का विषय है या राज्य का, इस मामले में अपना फैसला सुनाए। पढ़ें, प्रकाश आंबेडकर से यह बातचीत

केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने कल 24 नवंबर, 2021 को अपनी बैठक में बीते 19 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि कानूनों – कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020, मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम, 2020 – को वापस लेने की घोषणा को अमलीजामा पहनाने की दिशा में पहल करते हुए एक प्रस्ताव को सहमति दे दी। पूर्व सांसद व वंचित बहुजन अघाड़ी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर का कहना है कि सबसे महत्वपूर्ण सवाल का जवाब शेष है कि कृषि केंद्र का विषय है या राज्य का। इस संबंध में फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार ने उनसे दूरभाष पर बातचीत की। प्रस्तुत है इस बातचीत का संपादित अंश

आपने ट्वीटर पर कहा है कि “भले ही प्रधानमंत्री मोदीजी ने कहा है कि तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया गया है, फिर भी सुप्रीम कोर्ट को अपना फैसला देना चाहिए कि कृषि ‘राज्य का विषय है या नहीं’। इससे आपका आशय क्या है?

देखिए, सवाल यही है कि कृषि भारतीय संविधान की किस सूची में है। यह समवर्ती विषय सूची में है, केंद्रीय विषय सूची में है या फिर राज्य की विषय सूची में। अब यदि यह राज्य के विषय की सूची में है तो इससे संबंधित कानून केंद्र सरकार नहीं बना सकती। अगर यह केंद्रीय विषय सूची में है तभी केंद्र सरकार कानून बना सकती है। यह सुप्रीम कोर्ट को बताना चाहिए।

आपके हिसाब से वर्तमान में कृषि किस विषय सूची का हिस्सा है?

जहां तक मेरी जानकारी है, उसके हिसाब से यह राज्यों का विषय है।

तो इसका मतलब आप यह कह रहे हैं कि केंद्र सरकार ने जो तीनों कृषि कानून बनाए, वे अवैध हैं?

मैं यह कह रहा हूं कि केंद्र सरकार को कृषि से संबंधित कानून बनाने का अधिकार नहीं है। मैं ऐसा नहीं कहूंगा कि अवैध है लेकिन कानून बनाने का अधिकार केंद्र को नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना चाहिए। जब सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार करेगी तब कई और बातें सामने आएंगीं।

फारवर्ड प्रेस से पूर्व में बातचीत में आपने कहा था कि तीनों कृषि कानूनों का असर सबसे अधिक दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों पर पड़ेगा जो भूमिहीन व गरीब हैं। 

हां, बिल्कुल। सबसे ज्यादा नुकसान उनका ही है जो गरीब हैं। छोटे किसान हैं, जिनके पास एक एकड़ है या एक बीघा है या फिर इतना भी नहीं है। आप देखें कि इनके बारे में कभी बात ही नहीं होती। मजदूरों की समस्याओं पर विचार नहीं किया जाता। 

प्रकाश आंबेडकर व भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत की तस्वीर

तो क्या आपको लगता है कि अब जबकि सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस करने का फैसला कर लिया है तो इन वर्गों के किसानों की समस्याओं का निराकरण हो सकेगा?

इससे कोई हल नहीं होगा। सिर्फ इतना ही होगा कि तीनों कृषि कानूनों के कारण उनका जो शोषण होनेवाला था, अब वह कम होगा। इसको ऐसे समझिए कि यदि कानून लागू होते तो उनके पास कोई विकल्प अथवा चारा नहीं बचता, अब उनके पास यह विकल्प बच गया। नहीं तो वे किसान, जिनके पास एक बीघा, दो बीघा जमीन है, वे इन तीनों कानूनों से मरनेवाले ही थे। 

आंदेालनरत किसान यह कह रहे हैं कि केवल तीनों कानूनों को वापस लेने से बात नहीं बनेगी। सरकार को एमएसपी की गारंटी के एक कानून बनाना चाहिए। 

बिल्कुल बनाना चाहिए। देखिए देश में कृषि मूल्य निर्धारित करने के एक आयोग है जो हर साल मूल्य तय करती है। तो आयोग जो मूल्य तय करती है, वह किसानों को मिलना ही चाहिए। जब यह मूल्य किसानों को मिलता है तो उनहें राहत मिलती है। 

कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने राजनीतिक कारणों से कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है। आप क्या मानते हैं?

बिल्कुल यह सरकार द्वारा राजनीतिक कारणों से ही लिया गया फैसला है। इसलिए तो हम सुप्रीम कोर्ट से कह रहे हैं कि कृषि केंद्र का विषय है या राज्य का, इस मामले में अपना फैसला सुनाए। किसान इस मामले को लेकर धरना दें। मैं तो राकेश टिकैत साहब से कहूंगा कि वह सुप्रीम कोर्ट के समक्ष धरना दें ताकि सुप्रीम कोर्ट यह तय करे कि कृषि केंद्र का विषय है या राज्य का।

क्या आपको लगता है कि तीनों कानूनों को वापस लेने भाजपा को कोई चुनावी लाभ मिलेगा?

एक तो यह किसान जो थे, वे सरकार के खिलाफ थे। वे उससे लड़ रहे थे। चाहे वह पंजाब हो, हरियाणा हो, यूपी हो, मध्य प्रदेश हो, या राजस्थन हो, किसान लड़ रहे थे। केंद्र सरकार ने कानूनों को तो पीछे लेने का निर्णय ले लिया है। इससे हुआ यह है कि किसानों की जो लूट होनेवाली थी, किसानों ने उसे रोक दिया है। तो यह लड़ाई तो किसानों ने जीत ली है, परंतु अब उनका सवाल है कि जो न्यूनतम समर्थन मूल्य है, वह उन्हें मिलना चाहिए। यह बिल्कुल जायज मांग है। केंद्र सरकार ही है जो किसानों के साथ खेल रही है। आप इसको ऐसे समझिए कि देश के कई राज्यों में सोयाबीन की खेती होती है। उससे तेल भी निकाला जाता है और उसके अवशेष को खाया भी जाता है। तो सरकार ने क्या किया कि पहले इसका एमएसपी 9000 रुपए प्रति क्विंटल रखा। लेकिन मोदी जी ने नासमझी कर दी। उन्होंने क्या किया कि पामोलिन जो कि खाद्य तेल है और मलेशिया से आता है, उसके उपर ड्यूटी कर कम कर दी। अब इसका नतीजा यह हुआ कि सोयाबीन की कीमत गिरकर सीधे साढ़े चार हजार रुपए प्रति क्विंटल हो गया। तो यह तो किसानों को नुकसान हो गया। यह तो बीजेपी की व्यवस्था है। तो किसान यही तो मांग कर रहे हैं कि उन्हें हर हाल में एमएसपी मिलना चाहिए।

आप यह कह रहे हैं कि कृषि केंद्र का विषय नहीं है। फिर एमएसपी का कानून केंद्र सरकार कैसे बना सकती है?

देखिए, कृषि केंद्र का विषय नहीं है। लेकिन मूल्य का निर्धारण केंद्र का विषय है। इसलिए वह एमएसपी से संबंधित कानून बना सकती है।

(संपादन : अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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