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वीर दास की कविता और कारोबारी भारतीय मीडिया का खेल

दरअसल, भारतीय मीडिया में खबरें आनी बंद हो गई है। खबरों के जो मालिक हैं, वे अपनी प्रतिक्रियाओं को ही खबरें बनाकर प्रस्तुत करते हैं। खासतौर से विदेश से जुड़ी घटनाओं की सामग्री से कारोबारी भारतीय मीडिया का मनमानापन करने का रवैया बना हुआ है। यही हाल हास्य कलाकार वीर दास के मामले में है। बता रहे हैं अनिल चमड़िया

मीडिया विमर्श

भारत के विभिन्न समाचार पत्र, न्यूज चैनल व मीडिया वेबपोर्टल वीर दास की प्रस्तुति के विरोध की सामग्री प्रकाशित कर खुद को विरोध में शामिल होने की गवाही दे रहे हैं। जरा गौर फरमाएं–

दैनिक भास्कर :

कॉमेडियन के बयान पर विवाद : वीर दास ने अमेरिका के लाइव शो में दिया भारत विरोधी बयान, एफआईआर दर्ज होने के बाद दी सफाई, वीर दास की कविता जिस पर नाहक ही बवाल कट रहा है

नवभारत टाइम्स :

वीर दास के भारत विरोधीकमेंट के सपोर्ट में उतरीं काम्या पंजाबी, कहा– ‘इसमें गलत क्या है?’

जी न्यूज छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश : 

अब कॉमेडियन और एक्टर वीर दास पर गिरी नरोत्तम मिश्रा की गाज, मध्यप्रदेश में नो एंट्री

जनसत्ता :

ह‍िंदी में पढ़ें कॉमेड‍ियन वीर दास की वह कव‍िता, ज‍िस पर मचा बवाल; देशद्रोह तक का लगा आरोप

बीबीसी 

वीर दासः दो भारतकविता पर दो धड़ों में बंटे लोग, कॉमेडियन के ख़िलाफ़ शिकायत

अमेरिका में वाशिंगटन डीसी स्थित ज़ॉन एफ. केनेडी सेंटर पर जन हास्य कलाकार वीर दास के कार्यक्रम की वीडियों रिक़ॉर्डिग को लेकर भारत के अखबारों में व मीडिया वेबपोर्टलों पर छपी जानकारियों के उपरोक्त शीर्षकों पर गौर करें। ऐसा लगता है कि वेबपोर्टलाें और समाचार पत्रों ने अपने अपने मंचों पर हास्य कलाकार का पोस्टर टांग लिया हो और हर संभव तरीके से उसे पटखनी देने का अभिनय प्रस्तुत किया हो। सच तो यह है कि विदेशों में होने वाली किसी घटना को भारत के समाचार पत्र खबरें नहीं छापते हैं, बल्कि उस पर अपना नजरिया पेश करते हैं। खबरों का शीर्षक भी उसी नजरिये के अनुरूप तैयार करते हैं। खबरों के लिए ‘राष्ट्रवाद’ का डंडा उनेक हाथों में होता है। फिर राष्ट्र से नीचे उतरते हैं तो भाषा, संस्कृति और क्षेत्र का दांव इस्तेमाल कर लेते है। 

खबर क्य़ा है? खबर यह है कि वाशिंगटन डीसी स्थित ज़ॉन एफ केनेडी सेंटर में वीर दास ने अपनी प्रस्तुति दी और उस प्रस्तुति का एक छोटा हिस्सा, जो कि छह मिनट के वीडियों के रुप में है, सोशल मीडिया पर डाला गया। इसमें वीर ने अपने देश की मौजूदा स्थितियों की एक काव्यात्मक प्रस्तुति दी है। वह प्रस्तुति ‘मैं दो भारत से आता हूँ’ – शीर्षक से दी गई। आमतौर पर भारत के भीतर कई भारत के होने का एक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाता है। भारत को एक लोकतांत्रिक देश इसीलिए कहा भी जाता है। लेकिन इसी भारत में आर्थिक, सामाजिक स्तर पर गहरी असमानता है और यह बात खुद डॉ. भीमराव आंबेडकर ने राजनीतिक आजादी मिलने के बाद कहीं थी। यह असमानता वाला भारत ही है। कोई दूसरा देश नहीं। डॉ. आंबेडकर ने जो बातें कहीं, उसे अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के अध्यक्ष के रुप में ब्रह्मदेव शर्मा ने भी कही थीं। वीर दास ने तो ‘दो भारत’ की सच्चाई को प्रस्तुत किया है, लेकिन ब्रह्मदेव शर्मा ने तो ‘तीन भारत’ के होने के तथ्य संवैधानिक संस्था एससी-एसटी आयोग की रिपोर्ट में लिखी है। इन तीनों को इंडिया और भारत के अलावा ‘हिन्दोस्तनवां’ के रुप में परिभाषित किया है। 

दरअसल वीर दास ने केवल भारत में दो परतें होने की बात की है। एक ऊपर की परत वाला भारत है, जो बहुत पवित्र, शुद्ध, सम्मानित और पूजनीय दिखाया जाता है। लेकिन उस परत के नीचे गंदगी का पहाड़ छिपा है। भूमंडलीकरण के दौर में पूरी दुनिया में लोगों की आवाजाही बढ़ी है। भूमंडलीकरण केवल आर्थिक कारोबार का नाम नहीं है। यह पूरी दुनिया में हर स्तर पर साझेदारी की स्थितियां तैयार करता है। लेकिन मीडिया खुद भूमंडलीकृत नहीं होना चाहता है, क्योंकि राष्ट्र के नाम पर उसका किसी एक राजनीतिक भूगोल में जो वर्चस्व बना हुआ है, वह टूट जाता है।

हास्य कलाकार वीर दास

वीर दास ने भारत में आमतौर पर समाज में देखी जाने वाली दोहरी मानसिकता का उल्लेख किया है। यह न केवल महिलाओं के संबंध में विरोधाभास का उल्लेख किया है, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में इस विरोधाभास का वर्णन किया है। मसलन, वे ये भी कहते हैं कि “मैं उस भारत से आता हूँ, जहाँ हम शाकाहारी होने में गर्व महसूस करते हैं, लेकिन उन्हीं किसानों को कुचल देते हैं, जो ये सब्ज़ियां उगाते हैं।” लेकिन समाचार पत्रों व वेबपोर्टलों ने अपनी खबरों के लिए महिलाओं की भावनाओं का इस्तेमाल किया है और लगभग हर जगह पर उस पंक्ति को दोहराया गया है, जिसमें कि महिलाओं को भारत में एक तरफ पूजनीय कहा जाता है तो दूसरी तरफ उनके विरुद्ध बलात्कार की घटनाएं होती है। भारत सरकार के हर थाने में बलात्कार के ये आंकड़े उपलब्ध हैं। दुनिया भर में महिलाओं की सुरक्षा के लिए होने वाले आंदोलनों में सबसे ज्यादा आंदोलन भारत में देखने को मिलते हैं। महिलाओं की भारत में हालात को जाहिर करने की जब भी कोशिश होती है, उसे समाज में अशांति फैलाने की वजह बता दी जाती है। यही बात भूमंडलीकरण के दौर पर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आने जाने वाले लोग कहते हैं, तो उन्हें देशद्रोह के डंडे से मारने की कोशिश की जाती है।

किसी भी रचना पर कोई भी किसी थाने में शिकायत दर्ज करा सकता है, लेकिन क्या वह शिकायत समाचार में प्रमुखता हासिल कर लेती है? दरअसल जिन समाचार पत्रों ने वीर दास की प्रस्तुति के विरोध की सामग्री प्रकाशित की है, वे खुद उस विरोध के हिस्से बनने की कोशिश कर रहे हैं। मीडिया ने पूरी घटना के उन हिस्सों को अपने मिजाज के अनुकूल बनाकर प्रस्तुत करने की कोशिश की है, जो हिस्से उन्हें एक भावनात्मक आधार मुहैया करा देते हैं। जहां मीडिया के मंचों को अपना विरोध प्रकट करने के लिए भावनाओं का आधार नहीं मिलता दिखता है, उसकी तरफ देखते भी नहीं हैं। मसलन “मैं उस भारत से आता हूँ, जहाँ सैनिकों को हम पूरा समर्थन देते हैं तब तक, जब तक उनकी पेंशन पर बात ना की जाए।”

दरअसल भारत में पत्रकारिता की यह एक समस्या के रुप में विकसित हो गई है कि पत्रकारिता का मतलब सत्ता का समर्थन हो गया है। वह सत्ता चाहें राजनीतिक हो या फिर सामाजिक और आर्थिक हो। वीर दास की प्रस्तुति दरअसल उस हालात का बयान है, जो कि विरोधाभासों पर खड़ी है। लेकिन इसमें एक पहलू वह है, जिसकी वजह से मीडिया मंच भी बहुत सक्रिय होकर वीर दास की प्रस्तुति के खिलाफ डंडे उठा लिये हैं। वह पहलू मौजूदा सत्ता पर काबिज राजनीतिक शक्तियों का हैं। पूरी प्रस्तुति के केन्द्र में राजनीतिक नेतृत्व के विज्ञापनों और उसकी परत के नीचे दबी सच्चाई का बयान है। कविता के हर वाक्य में हम य़ह देख सकते हैं कि मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व को कटघरे में खड़ा किया गय़ा है। दरअसल वीर दास की यह प्रस्तुति इसीलिए ठीक वैसे ही उन्हें चुभ रही हैं, जैसे सच्चाई चुभती है। एक बात और महत्वपूर्ण है कि इसका विरोध करने वालो के नामों पर गौर करें। उनमें ज्यादातर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखने की कोशिश करने वाले विचारों का प्रतिनिधि दिखते हैं।    

यह कहा जा सकता है कि “मैं दो भारत से आता हूँ – जहां देश में जो कुछ करने की छूट मिलती है, उसके शब्दों को देश की चारदीवारी से बाहर ले जाने को देशद्रोह माना जाता है। भूमंडलीकरण में खुद विदेश जाओ, लेकिन अपनी जुबां को देश में छोड़ जाओ। मैं उस भारत से आता हूं।”

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

अनिल चमड़िया

वरिष्‍ठ हिंदी पत्रकार अनिल चमडिया मीडिया के क्षेत्र में शोधरत हैं। संप्रति वे 'मास मीडिया' और 'जन मीडिया' नामक अंग्रेजी और हिंदी पत्रिकाओं के संपादक हैं

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