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अनिश्चितता के दौर में क्रिसमस लाया है उम्मीद, प्यार और खुशियों का संदेश

जैसे दो हजार साल से ज्यादा समय पहले चरवाहों को ईसा मसीह के जन्म का अहसास हुआ था, उसी तरह मुझे भी उस जन्म की प्रासंगिकता का अहसास है जब ईश्वर मानव शरीर में इस दुनिया में आए थे। वे हम पर शासन करने के लिए नहीं आए थे। क्रिसमस की प्रासंगिकता को रेखांकित कर रही हैं डॉ सिल्विया फ़र्नान्डिस

हम दिसंबर 2021 में है। एक और बावला साल समापन की ओर है। जब यह साल शुरू हुआ तब भारत में डेल्टा वैरिएंट के कारण तबाही का आलम था। उस दौर में या तो हमने या हमारे परिचितों ने ऐसे लोगों को खोया, जिनसे हम प्यार करते थे। पूरी दुनिया में लाखों लोग अवसाद में डूब गए। उन्हें आर्थिक परेशानियां भोगनी पडीं। इन सबके बाद हमने चैन की सांस ली ही थी कि ओमिक्रोन, जिसके बारे में हम ज्यादा नहीं जानते, सामने आ गया। 

ऐसा लगता है कि पूरी दुनिया में स्वास्थ्य विशेषज्ञों को और इसके नतीजे में सरकारों को भी समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करें। वे लोगों की जान बचाना चाहतीं हैं। परंतु वे यह भी नहीं चाहतीं कि अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचे। कोविड-19 एक नई बीमारी है। इसका वायरस अपना रूप बदलता जा रहा है, जिसके कारण दुनिया को इससे निपटने में नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। नियम रोजाना बदल रहे हैं और हम सब भौचक्के हैं। नियोक्ताओं को पता नहीं है कि हमें घर से काम करना चाहिए या ऑफिस आना चाहिए। स्कूल संचालकों को पता नहीं है कि क्लास ऑनलाइन होना चाहिए या बच्चों को स्कूल बुलाया जाना चाहिए। दूसरे देशों से लोगों को हमारे यहां आने देना चाहिए या नहीं। ये सभी निर्णय सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग लेते हैं, परंतु, इसका असर हम सब पर पड़ता है।  

साल का अंतिम माह होने के साथ-साथ दिसंबर वह महीना भी है, जिसमें पूरी दुनिया दो हज़ार से भी ज्यादा साल पहले दूरस्थ इजराइल के बेथलेहम में एक बच्चे के जन्म का उत्सव मनाती है। इस जन्म का क्या महत्व है? प्राचीन इजराइल में अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए बलि दिए जाने की परंपरा थी। ईश्वर को पूर्णतः दोषरहित, एकदम बढ़िया मेमना चढ़ाना होता था। पशु को श्रद्धालु यरूशलम के मंदिर के पुजारी के पास लाते थे, जहां उसकी बलि दी जाती थी। यह एक खर्चीला काम था। इससे लोगों को यह अहसास होता था कि पाप (ईश्वर द्वारा निर्धारित राह से भटकना) के परिणाम हमें भोगने होते हैं। ईश्वर का यह आदेश था कि पाप के लिए माफ़ी खून बहाने पर ही मिल सकती है।

पटना वीमेंस कॉलेज, पटना में क्रिसमस की खुशियां अभिव्यक्त करतीं छात्राएं (साभार – एनाक्षी डे बिस्वास)

जब भी चरवाहे पाते कि कोई दोषरहित मेमना पैदा हुआ है तो वे उसे कपड़े में लपेट कर नांद में रख देते। हर चौकी या ‘मिगडाल एडर’ में एक नांद हुआ करती थी। 

बाइबिल हमें बताती है कि ईसा मसीह की मां मैरी ने ईश्वर की आत्मा या पवित्र आत्मा की शक्ति से गर्भधारण किया था। उनकी गर्भावस्था के दौरान तत्कालीन शासक ऑगस्टस सीज़र ने देश में जनगणना करवाने की घोषणा की। इसके लिए हर व्यक्ति को अपने गृहनगर जाना था। बढ़ई जोसफ और उनकी गर्भवती पत्नी मैरी भी सरकार के इस निर्णय से प्रभावित हुए। उन्हें उत्तरी इजराइल स्थित अपने घर से बेथलेहम तक की लम्बी दूरी तय करनी थी। यह यात्रा कठिन भी थी और खर्चीली भी। एक गर्भवती महिला के लिए ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों पर गधे की सवारी करना आसान न था। परन्तु उन्होंने यह किया। 

बेथलेहम जनगणना के लिए आए लोगों से खचाखच भरा था। वहां की संस्कृति मेहमाननवाज़ थी, परन्तु इस दंपत्ति को आसरा देने के लिए किसी के पास जगह ही नहीं थी। फिर, किसी ने उन्हें एक छप्पर, जहां मवेशी रहते थे, के नीचे रहने की जगह दी। या शायद वह घर के पीछे बनी खोह थी, जहां लोग अपने मवेशी रखा करते थे। वहीं ईसा मसीह का जन्म हुआ। मैरी ने नवजात शिशु को एक कपड़े में लपेट कर नांद में रख दिया। यही उनका पालना था। ईश्वर ने एक भविष्यवाणी को पूरा करने के लिए जनगणना का इस्तेमाल किया। वह अक्सर अपनी योजनाओं को अमल में लाने के लिए साधारण घटनाओं का प्रयोग करता है। 

इस अलौकिक जन्म के बारे में सबसे पहले रात में अपनी भेड़ें चरा रहे चरवाहों ने जाना। उन्हें यह पता था कि नांद में कपडे में लिपटे पड़े इस बालक के जन्म का क्या मतलब है। नवजात ईसा को सबसे पहले उन्होंने ही अपनी प्रार्थना अर्पित की। (लूका 2: 8-20, बाइबिल)

मैं जिस परिवार में पली-बढ़ी, वह केवल नाम के लिए ईसाई था। उस समय ईसा मसीह से हमारा उस तरह का आत्मीय रिश्ता नहीं था जैसा कि मेरा आज है। परन्तु क्रिसमस नज़दीक आते ही हम सब एक अजीब से उत्साह से सराबोर हो जाते थे। 25 दिसंबर के हफ़्तों पहले से अलग-अलग तरह की मिठाईयां बनने लगते थीं। सबके लिए तोहफे खरीदे जाते थे। 24 तारीख़ की रात हम सब मिडनाइट सर्विस के लिए चर्च जाते थे। घर लौटने के बाद मेरी मां सभी को गर्मागर्म कोको (चाकलेट ड्रिंक) देती थीं और फिर हम सब मिठाईयों का आनंद लेते थे। तोहफे खोले जाते थे और हम सब बच्चे अपने माता-पिता के स्नेह की गर्माहट में खो जाते थे। यद्यपि हम लोगों के पास ज़मीनें थीं, परन्तु उन दिनों मेरे पिता आर्थिक तंगी से गुज़र रहे थे। फिर भी वे हम सबको ऐसे तोहफे देते थे, जो हमें खुश कर देते थे। आज मैं 68 साल की हूं और कोशिश करने पर भी मुझे एक भी वह तोहफा याद नहीं आ रहा है, जो मुझे दिया गया था। परन्तु हमारे घर का उमंग एवं उत्साह से भरा माहौल और हमारे माता-पिता का प्रेम मुझे आज भी नहीं बिसरता।

आज मैं क्रिसमस को एक नई दृष्टि से देखती हूं। आज 17 दिसंबर है। मैंने परिवारवालों के लिए कुछ तोहफे ज़रूर खरीदे हैं, परन्तु मैंने अभी तक एक भी मिठाई नहीं बनाई है।      

जैसे दो हजार साल से ज्यादा समय पहले चरवाहों को ईसा मसीह के जन्म का अहसास हुआ था, उसी तरह मुझे भी उस जन्म की प्रासंगिकता का अहसास है जब ईश्वर मानव शरीर में इस दुनिया में आए थे। वे हम पर शासन करने के लिए नहीं आए थे। उन्होंने अत्यंत साधारण परिस्थितियों में जन्म लेकर अपनी विनम्रता का परिचय दिया। वे केवल एक उद्देश्य से आए थे – मरने के लिए। हमारे कर्मों को सलीब तक ले जाने के लिए, ताकि आपको और हमें अपने पापों के लिए क्षमा मिल सके – अपने साथी मनुष्यों के साथ भेदभाव और दुर्व्यवहार करने और उन्हें वंचित रखने के लिए। जन्म के तैंतीस वर्ष बाद उसी शरीर को एक कपड़े में लपेटकर एक चट्टान को काट कर बनाए गए मकबरे में दफना दिया गया। किंतु बाइबिल के अनुसार वह मकबरा उन्हें रोके रखने में असमर्थ रहा और तीन दिन बाद वे पुनर्जीवित हो गए। पाप और मौत पर विजय पा ली गई! 

करीब 28 साल पहले आत्मबलिदानी प्रेम के इस महानतम कार्य पर मैंने वह एकमात्र प्रतिक्रिया दी जो दी जा सकती थी। मैंने तय किया कि मैं अपने लिए मर जाऊँगी और उसके लिए जिंदा रहूँगीं। जैसे-जैसे मैं उसकी शिक्षाओं का पालन करती गई और उसकी आत्मा का, जो मुझे 28 साल पहले मिले थे, मुझमें बदलाव आते गए। चूंकि मैं सख्त मिट्टी की बनी हूं इसलिए उस उस्ताद कुम्हार को भी बहुत श्रम करना पड़ रहा है। उसमें काफी वक्त लग रहा है। लेकिन बदलाव आ रहा है। फारवर्ड प्रेस उस बदलाव के फलों में से एक है। स्नेह उस बदलाव का हिस्सा है। शांति उस बदलाव का हिस्सा है। आशा उस बदलाव का हिस्सा है। आनंद उस बदलाव का हिस्सा है। 

बहरहाल, भले ही ओमीक्रान सुर्खियों में हो, मैं चिंतित नहीं हूं। मैं बैचेन नहीं हूं। मुझे मालूम है और मुझे भरोसा है कि इन चुनौतीपूर्ण हालातों के बावजूद ईश्वर मेरे जीवन के बारे में अच्छी योजना बना रहा है। अन्य लोगो के गलत निर्णयों के बावजूद, मैं जानती हूं कि आखिरकार सब कुछ किसके नियंत्रण में है। और वह न्यायप्रिय है, करूणामय है, बुद्धिमान है और पवित्र है। मैं कह सकती हूं– “पूरी दुनिया को ख़ुशी मिले।”  

और आप लोगों, हमारे पाठकों के लिए, मैं उसी प्यार, शांति और हर्ष की कामना करती हूं, जिसका आनंद मैं ले रही हूं। सन् 2022 आपके और आपके परिवारों को ईश्वर के कृपा और आशा के तोहफे प्रदान करे। चाहे ओमिक्रोन रहे या न रहे।  

(अनुवाद : अमरीश हरदेनिया, संपादन : नवल/अनिल )


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लेखक के बारे में

डा. सिल्विया कोस्का

डा. सिल्विया कोस्का सेवानिव‍ृत्त प्लास्टिक सर्जन व फारवर्ड प्रेस की सह-संस्थापिका हैं

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