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देश बचाने के लिए जातिगत जनगणना और आरक्षण का संरक्षण जरूरी

बहुजन एकता राष्ट्रीय महाधिवेशन को संबोधित करते हुए प्रो. मोहन गोपाल ने रिजर्वेशन को रेस्टोरेशन की उपमा दी और कहा कि अतीत में सवर्णों ने हमारे संसाधनों पर कब्जा किया, हमें अज्ञान बनाए रखा। अब डॉ. आंबेडकर के प्रावधानों के कारण हमें आरक्षण मिल रहा है तो यह एक तरह सवर्ण हमें वही वापस कर रहे हैं, जो हमारे पूर्वजों से लूटा गया। फारवर्ड प्रेस की खबर

साल 2021 के अंत में बीते 18-19 दिसंबर को दिल्ली में बड़ी संख्या में पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अल्पसंख्यक वर्ग के लोग जुटे। मौका था पैगाम अर्थात फुले आंबेडकरी गौरवशाली और आदर्शवादी मुहिम, वी दि पिपुल और सोशल रिवोल्यूशनरी एलायंस (एसआरए) सहित अनेक संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय महाधिवेशन का। डॉ. बी.आर. आंबेडकर भवन, झंडेवालान के मैदान में बहुसंख्यक एकता पर केंद्रित इस आयोजन को संबोधित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन ने वंचित समाज के लोगों को शिक्षा का महत्व समझाया। साथ ही उन्होंने इस मौके पर चिंता व्यक्त की कि अभी भी समाज में जातिगत भेदभाव है और इसके कारण लोग शोषण-उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं।

वहीं मुख्य वक्ता के रूप में नेशनल ज्यूडिशिअल अकेडमी के पूर्व निदेशक प्रो. मोहन गोपाल ने रिजर्वेशन को रेस्टोरेशन (पुनर्स्थापन) की संज्ञा दी और कहा कि जातिगत जनगणना और आरक्षण का संरक्षण का मतलब देश को बचाना है। प्रमुख अतिथि के रूप में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं राष्ट्रिय पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस वी. ईश्वरैय्या ने कहा कि आज ओबीसी के आरक्षण पर चारों तरफ से हमला बोला जा रहा है। यह लड़ाई सड़क से लेकर सदन और अदालतों तक लड़नी होगी। वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह यादव ने कहा कि आरक्षण संविधान प्रदत्त अधिकार है और यह किसी का अहसान नहीं है। आयोजन के दौरान पूर्व मंत्री नागमणि, पैगाम के राष्ट्रीय निमंत्रक बी.एन.वाघ और पैगाम के संस्थापक अध्यक्ष सरदार तेजिंदर सिंह झल्ली ने भी संबोधित किया।

जारी है जातिगत भेदभाव और शोषण : जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन 

अपने मुख्य संबोधन में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालकृष्णन ने उपस्थित जनसमूह को देखकर हर्ष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि हमारे समाज का उत्थान शिक्षा के माध्यम से ही हो सकता है। उन्होंने सरकारी नौकरियों में गए लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि उनके पास मेधा है और क्षमता है, जिसके बदौलत समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि शोषण और उत्पीड़न आज भी सच्चाई है। स्वयं विभिन्न अदालतों में न्यायाधीश के रूप में काम करते हुए मेरे सामने अनेक मामले आए और यह देखकर ही दुख होता है कि हमारे लोग आज भी जातिगत भेदभाव व शोषण के शिकार होते हैं। उन्होंने कहा कि इन सबका इलाज शिक्षित होना, संगठित होना ही है। 

महाधिवेशन को संबोधित करते सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन

वहीं मुख्य वक्ता प्रो. मोहन गोपाल ने रिजर्वेशन को रिस्टोरेशन की उपमा दी। उन्होंने कहा कि आरक्षण कोई भीख नहीं है तो हमें दी जा रही हो। उन्होंने कहा कि वे केरल से आते हैं और इजवा समुदाय के हैं जो कि ओबीसी में शामिल है। लेकिन इजवा समुदाय के साथ भी सवर्ण वैसे छुआछूत करते थे, जैसे कि दलितों के साथ। उन्होंने कहा कि अतीत में सवर्णों ने हमारे संसाधनों पर कब्जा किया, हमें अज्ञान बनाए रखा। अब डॉ. आंबेडकर के प्रावधानों के कारण हमें आरक्षण मिल रहा है तो यह एक तरह सवर्ण हमें वही वापस कर रहे हैं, जो हमारे पूर्वजों से लूटा गया।

ईडब्ल्यूएस के तहत गैर सवर्णों को भी मिले आरक्षण

उन्होंने कहा कि ईडब्ल्यूएस के रूप में संविधान विरोधी बात देश में लागू हो गयी है। उन्होंने कहा कि देश में कोई भी आरक्षण जाति के आधार पर नहीं है। संविधान की धारा 16 में, जिसके तहत राज्यों को आरक्षण देने का अधिकार हासिल है, वहां भी जाति को आधार नहीं बनाया गया है। वहां कहा गया है कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए लोगों के लिए सरकार विशेष प्रावधान कर सकती है। आज ओबीसी में अनेकानेक जातियां हैं। इनमें मुसलमान भी हैं। लेकिन ईडब्ल्यूएस को केवल ऊंची जातियों के लोगों के लिए आरक्षित कर दिया गया है। इसका मतलब ही है आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए तो इस आधार पर वे सभी लोग चाहे वह एससी हों, एसटी हों या फिर ओबीसी हों, यदि आर्थिक रूप से पिछड़े हैं तो उन्हें ईडब्ल्यूएस के तहत आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। प्रो. मोहन ने कहा कि इस मामले को लेकर उन्होंने केरल हाई कोर्ट में याचिका दायर कर रखा है, जिसके उपर सुनवाई लंबित है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार केवल सरकारी परिसंपत्तियां ही नहीं, बल्कि निजीकरण के नाम पर लोगों की जमीन जायदाद भी अदानी-अंबानी को बेच रहे हैं। इसलिए आज लोगों को न्याय देने की जरूरत है।

प्रो. मोहन गोपाल

उन्होंने कहा कि इस देश में भले ही समतामूलक संविधान है लेकिन सत्ता अभी भी ओलीगार्की (कुलीन तंत्र) ही है। जबकि यह देश एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों का है। इतिहास गवाह है कि जब किसी देश पर केवल कुछ लोगों का अधिकार होता है तो वह खत्म हो जाता है। इसलिए जरूरी है कि जातिगत जनगणना हो और संख्या के आधार पर संसाधनों का बंटवारा हो। आरक्षण का संरक्षण आज के दौर के लिए सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई है।

बी.एन. वाघ ने वी द पिपुल और एसआरए आदि संगठनों का पैगाम के साथ आकर बहुसंख्यको की एकता बनाने पर उनके पदाधिकारियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने किसान आंदोलन के दरमियान सात सौ से ज्यादा जान गंवानेवाले किसानों को उन्होंने श्रद्धांजलि अर्पित की। वहीं सरदार तेजिंदर सिंह झल्ली ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा की हमे मौजूदा व्यव्स्था को बदलने की जरूरत है और हमरा लक्ष्य डॉ. आंबेडकर और जोतीराव फुले के कुदरती सत्यशोधक समाज को शिक्षा के माध्यम से ज्ञानवान बनाने का प्रयास करना है। 

(संपादन : अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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