h n

अब खामोशी छोड़ेंगीं बसपा प्रमुख, आएंगीं मैदान में नजर 

उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारे में बसपा प्रमुख की चुप्पी को लेकर कयासबाजियां लगाई जा रही हैं। भाजपा से लेकर सपा और कांग्रेस तक ने उनके उपर सवाल उठाए। यहां तक कि उनके अपने कार्यकर्ताओं तक ने हैरानी व्यक्त की। लेकिन अब बसपा प्रमुख ने मैदान में उतरने का मन बना लिया है। बता रहे हैं सैयद जैगम मुर्तजा

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती आगामी 2 फरवरी को यूपी चुनाव के लिए अपनी पहली जनसभा को संबोधित करेंगीं। इस आशय की जानकारी बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने एक सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से दी है। इसके मुताबिक आगरा में होने वाली इस जनसभा से मायावती उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए अपनी पार्टी के अभियान का आग़ाज़ कर रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या उन्होंने देर नहीं कर दी है?

बसपा के बारे में कहा जाता है कि मायावती अकेली सबसे बड़ी स्टार प्रचारक हैं। ख़ासतौर पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में विधान सभा चुनाव हो तो बहुजन समाज पार्टी के प्रचार की कमान हमेशा उनके ही हाथ में रहती है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि उत्तर प्रदेश में नामांकन की प्रक्रिया शुरु होने के बाद तक मायावती चुनाव में सक्रिय भागीदारी से दूर हैं। इसे लेकर विपक्ष भी तमाम तरह के सवाल उठा रहा है। लेकिन अब ख़बर आ रही है कि मायावती 2 फरवरी को आगरा में इस चुनाव की अपनी पहली जनसभा संबोधित करेंगी।

अभी तक पार्टी के प्रचार अभियान की कमान संभाल रहे पार्टी महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने सोशल मीडिया के माध्यम से इस बाबत ऐलान किया है। आगरा के कोठी मीना बाज़ार मैदान पर मायावती की पहली चुनावी सभा प्रस्तावित है जहां कोविड नियमों का पालन करते हुए बसपा प्रमुख अपने जनता से मुख़ातिब होंगीं। मायवाती की चुनावी सभा की ख़बर भर से पार्टी कार्यकर्ताओँ में उत्साह है। ज़ाहिर है, प्रचार अभियान में उनकी ग़ैर-मौजूदगी पार्टी कार्यकर्ताओं और उम्मीदवारों के मनोबल पर बुरा असर डाल रही थी। अब चुनाव मैदान में उनके कार्यकर्ता यक़ीनन बेहतर उत्साह के साथ नज़र आएंगे।

सक्रिय चुनाव प्रचार से मायावती की ग़ैर-मौजूदगी न सिर्फ बसपा कार्यकर्ताओँ बल्कि विपक्ष की दूसरी पार्टियों को भी खल रही थी। भाजपा नेता दावा कर रहे थे कि बसपा अध्यक्ष ने चुनाव से पहले ही अपनी पार्टी की हार मान ली है। वहीं सपा के नेतागण कह रहे थे कि बसपा प्रमुख भाजपा के दबाव में हैं। यहां तक कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी मायावती के चुनाव प्रचार से ग़ायब रहने पर हैरानी जताते हुए कहा था कि शायद उनके उपर भाजपा का दबाव है। 

मायावती, बसपा प्रमुख

इस बीच सतीश चंद्र मिश्रा ने दावा किया था कि बहन जी पूरी तरह सक्रिय हैं और रोज़ कार्यकर्ताओं से मुलाक़ात कर रही हैं। लेकिन यह सच है कि उनके कार्यकर्ता उनसे मुलाक़ात नहीं, मैदान में अपने नेता को नेतृत्व करते देखना चाहते हैं।

राजनीतिक विश्लेषक दावा कर रहे हैं कि मायावती ने हालांकि प्रचार मैदान में आने में थोड़ी देर कर दी है, लेकिन अभी भी वह अपने कार्यकर्ताओँ को उत्साहित करने का दम रखती हैं। बीते रविवार को ही वर्चुअल प्रचार की शुरुआत करते हुए उन्होंने विरोधी दलों पर अपने चिरपरिचित अंदाज़ में सवाल उठाए। उन्होंने उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की सक्रियता को भाजपा विरोधी वोटों में बंटवारा करने की कोशिश बताया जबकि गोरखनाथ मठ को बड़ा लग्जरी बंगला बताते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी निशाने पर लिया। इसके बाद तो इतने भर से उनके कार्यकर्ता काफी जोश में नज़र आए।

यह भी पढ़ें : गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ को कैसी चुनौती देंगे चंद्रशेखर आज़ाद?

मुज़फ्फरनगर से पार्टी के एक उम्मीदवार ने कहा कि, जिस तरह सपा ने टिकट वितरण में मुसलमानों की अनदेखी की है और चंद्रशेखर आज़ाद को किनारे किया है, उसके बाद दलित और मुसलमानों के पास बसपा में वापस लौटने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। इसी तरह ग़ाज़ियाबाद निवासी रामचंद्र जाटव कहते हैं कि बसपा का कोर वोटर संगठित है और मायावती पर मन से चुनाव नहीं लड़ने का आरोप मनगढ़ंत है।

हालांकि मायावती के चुनाव प्रचार में सक्रिय भूमिका निभाने में देर को लेकर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं हैं। यह रणनीति का हिस्सा है, या फिर कोई मजबूरी इसे लेकर भी तमाम दावे हैं, लेकिन मायावती इन सबसे बेअसर दिख रही हैं। एक बात यक़ीनी है, उनके प्रचार में आने का असर चुनाव नजीजों पर ज़रुर होने वाला है। अब इसका असर कितना होगा, यह तो नतीजों से साबित होगा। हालांकि सामंतवाद के ख़िलाफ सामाजिक न्याय की लड़ाई का नॅरेटीव तय कर चुके इस चुनाव में मतों का बिखराव किसके पक्ष मे जाएगा, यह समझना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं है।

(संपादन : नवल/अनिल)

URL : News-UP-Election-BSP-Mayawati-Hindi 

लेखक के बारे में

सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

संबंधित आलेख

नई भूमिका में बिहार तैयार
ढाई हजार वर्ष पहले जब उत्तर भारत का बड़ा हिस्सा यज्ञ आधारित संस्कृति की गिरफ्त में आ चुका था, यज्ञ के नाम पर निरीह...
अखबारों में ‘सवर्ण आरक्षण’ : रिपोर्टिंग नहीं, सपोर्टिंग
गत 13 सितंबर, 2022 से सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ईडब्ल्यूएस आरक्षण की वैधता को लेकर सुनवाई कर रही है। लेकिन अखबारों...
बहस-तलब : सशक्त होती सरकार, कमजोर होता लोकतंत्र
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार कहा था कि विचारों के आधार पर आप किसी को अपराधी नहीं बना सकते। आज भी देश की जेलों...
मायावती की ‘माया’ के निहितार्थ
उत्तर प्रदेश के चुनाव के बाद बसपा की हालिया तबाही पर कई मंचों पर विचार हो रहा होगा। आइए सोचें कि बसपा के इस...
यूपी चुनाव : आखिरी चरण के आरक्षित सीटों का हाल
आखिरी चरण का मतदान आगामी 7 मार्च को होना है। इस चरण में यूपी के जिन नौ जिलों के विधानसभा क्षेत्र शामल हैं, इन...