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जानें, बिहार के पहले दलित कैबिनेट मंत्री जगलाल चौधरी के बारे में

जब जगलाल चौधरी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के अंतिम वर्ष में थे तो उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर पढ़ाई बीच में छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। जगलाल चौधरी ने 1921 के असहयोग आन्दोलन में सक्रियता से भागीदारी निभाई। बता रहे हैं देवेंद्र शरण

जगलाल चौधरी (5 फरवरी, 1895 – 9 मई, 1975) पर विशेष

उन दिनों जब डॉ. आंबेडकर अछूत आंदोलन चला रहे थे, तब उनका प्रभाव हिंदी प्रदेशों खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में कम ही था। हालांकि उन दिनों दलित जातियों के अनेक नेताओं की कांग्रेस पर अच्छी पकड़ थी। इन्हीं में से एक रहे बिहार के सारण जिले के गड़ख प्रखंड में जन्मे जगलाल चौधरी। वे बिहार के प्रथम दलित कैबिनेट मंत्री भी रहे। 1953 में जगलाल चौधरी ने ‘ए प्लान टू रिकंस्ट्रक्ट भारत’ शीर्षक से एक पुस्तक लिखी। इसमें उन्होंने डॉ. आंबेडकर के विचारों का समर्थन करते हुए सभी वर्गों के स्त्री-पुरुषों के समान अधिकार और अवसर प्रदान किए जाने के हिमायती थे। जाति प्रथा को वह हिन्दू समाज के लिए सबसे बड़ा अभिशाप समझते थे तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता और धार्मिक सहिष्णुता व प्रत्येक व्यक्ति को उसके इच्छा के अनुसार धर्म मानने की स्वतंत्रता के पक्षधर थे। 

जगलाल चौधरी का जन्म 5 फरवरी 1895 को सारण जिले के गड़खा प्रखंड के मीटेपुर गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम मुसन चौधरी और माता का नाम तेतरी देवी था। ये बिहार के दलित समुदाय में शामिल पासी जाति से आते थे, जिनका पारंपरिक पेशा ताड़ी बेचने का है। मुसन चौधरी भी अशिक्षित थे और ताड़ी बेचने का काम करते थे। लेकिन जगलाल चौधरी को उच्च शिक्षा दिलवाने के लिए अत्यन्त प्रयत्नशील थे। जब जगलाल चौधरी 15 वर्ष के थे तब उनका विवाह जोगेश्वरी देवी से हुआ था। जोगेश्वरी देवी का परिवार भी अत्यन्त गरीब और अशिक्षित था।

जगलाल चौधरी प्रारम्भ से ही मेधावी छात्र रहे थे और उन्हें नौवीं कक्षा में प्रतिमाह पांच रुपए सरकारी वजीफा भी मिला करता था। उनकी शिक्षा में आर्थिक परेशानी न आए इसके लिए उनके बड़े भाई मीसम चौधरी ने महत्वपूर्ण योगदान किया था। वे सेना में नौकरी करते थे और अपने परिजनों को बराबर पैसा भेजते रहते थे। जगलाल चौधरी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई। वर्ष 1903 में उनका नामांकन छपरा जिला स्कूल में करवाया गया। वे 17 वर्ष की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए। वर्ष 1914 में पटना कॉलेज, पटना, से आईएससी की परीक्षा पास करने के उपरांत उन्होंनेन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया।

जब जगलाल चौधरी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के अंतिम वर्ष में थे तो उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर पढ़ाई बीच में छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। जगलाल चौधरी ने 1921 के असहयोग आन्दोलन में सक्रियता से भागीदारी निभाई।

जगलाल चौधरी और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के बीच घनिष्ठता रही। इसकी गवाही दोनों के बीच हुए पत्र-व्यवहार हैं, जो आज भी उनके परिजनों के पास सुरक्षित हैं। 

जगलाल चौधरी (5 फरवरी, 1895 – 9 मई, 1975), साभार : विश्वनाथ चौधरी,  सचिव, जगलाल चौधरी स्मृति संस्थान, पटना

जगलाल चौधरी ने सारण जिला के कांग्रेस के सदस्य के रूप में काम करना शुरू किया। वे बिहार राज्य कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे और 1922 में बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुके थे। कुछ समय के लिए वह पुर्णिया जिला के टीकापट्टी आश्रम में रहकर यहां के कांग्रेस कमेटी और यहां के लोगों की समस्याओं को सुलझाने के काम में जुट गए थे। 

कांग्रेस के साथ रहते हुए जगलाल चौधरी ने उसके सभी आंदोलनों में आगे बढ़कर हिस्सेदारी ली। मसलन, 16 अप्रैल, 1930 को उन्होंने नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान बढ़-चढ़ कर भाग लिया और जेल गए। जेल से छूटने के बाद कांग्रेस के लिए यथावत काम करते रहे। 

11 मार्च 1934 को गांधी अछूतोद्धार आंदोलन के कम्र में पटना के दानापुर पहुंचे। दानापुर रेलवे स्टेशन पर जगलाल चौधरी और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने उनका स्वागत किया। इस क्रम में छपरा, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, सीतामढ़ी, कटिहार, अररिया, फरबीसगंज, मुंगेर और भागलपुर की यात्राएं की। उन दिनों बिहार में भयंकर भूकम्प आया हुआ था। इस टूर में सम्मिलित होकर बिहार के जगलाल चौधरी, जगजीवन राम आदि नेताओं ने अस्पृश्यता के विरुद्ध इस आन्दोलन में भाग लिया।

ब्रिटिश सरकार ने जब 1937 में प्रांतीय स्वायत्तता की बात की तो तत्कालीन ग्यारह भारतीय प्रांतों में चुनाव कराना निश्चित हुआ। प्रांतीय चुनाव को लेकर भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति ने 8 जुलाई 1937 को वर्धा में एक बैठक की। कार्यसमिति ने यह निर्णय लिया कि कांग्रेस चुनाव में भाग लेगी और अपने घोषणापत्र के आधार पर ही चुनाव लड़ेगी। चुनाव में बड़ी सफलता मिलने के बाद बम्बई, मद्रास, बिहार, उड़ीसा सहित आठ प्रांतों में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी।

बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक सारण जिला के मशरख प्रखंड के एक गांव में हुई। बैठक की अध्यक्षता अब्दुल बारी ने की। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह और जगलाल चौधरी सहित अनेक शीर्ष नेताओं ने बैठक में भाग लिया। इस बैठक में आम सहमति के बाद ही कांग्रेस ने सरकार बनाने का निर्णय लिया।

20 जुलाई, 1937 को श्रीकृष्ण सिंह मुख्यमंत्री बने और उनके नेतृत्व में अनुग्रह नारायण सिंह, सैयद महमूद तथा जगलाल चौधरी मंत्रिमंडल में शामिल किये गए। जगलाल चौधरी पहले दलित थे, जो मंत्री बनने में कामयाब हुए। जगलाल चौधरी ने 20 जुलाई 1937 को आबकारी और लोक स्वास्थ्य विभाग के कैबिनेट मंत्री का पदभार ग्रहण किया।

आबकारी मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल यद्यपि संक्षिप्त ही रहा, लेकिन उन्होंने इस दौरान कड़े निर्णय लेने में संकोच नहीं किया। 6 अप्रैल 1938 को राज्य के चुनिन्दा जिलों में शराबबन्दी की घोषणा की। सारण, मुजफ्फरपुर, हजारीबाग, धनबाद और रांची में मद्यपान निषेध लागू किया गया।

तब तक द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ चुका था और ब्रिटिश सरकार ने यह निर्णय लिया कि भारत भी युद्ध में भाग लेगा। इस निर्णय का विरोध कांग्रेस ने जोरदार ढंग से किया। कांग्रेस चाहती थी कि ब्रिटिश सरकार भारत को पहले आजाद कर दे। ब्रिटिश सरकार के निर्णय के विरोध में कांग्रेस की सभी प्रान्तीय सरकारों ने पदत्याग करने का निर्णय लिया। दरअसल, 3 सितम्बर, 1939 को भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड लिनलिथगो ने यह घोषणा की कि भारत भी द्वितीय विश्वयुद्ध में सम्मिलित है। इस घोषणा के पूर्व उसने किसी भी भारतीय राजनीतिक दल से परामर्श नहीं किया। इसके कारण कांग्रेस असंतुष्ट हो गई। ब्रिटिश सरकार की युद्धनीति का विरोध करने के लिए गांधी ने 1940 से व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू किया। इस सत्याग्रह में सत्याग्रही पूर्व निर्धारित स्थान पर भाषण देकर गिरफ्तारी देता था। भाषण के पूर्व सत्याग्रही को अपने सत्याग्रह की सूचना जिला मजिस्ट्रेट को देनी होती थी। 

बिहार में व्यक्तिगत सत्याग्रह 28 नवम्बर, 1940 से प्रारम्भ हुआ। बिहार मंत्रिमंडल द्वारासे त्यागपत्र देने के बाद जगलाल चौधरी ने भी व्यक्तिगत सत्याग्रह शुरू किया और इस सिलसिले में गिरफ्तार हुए।

जगलाल चौधरी अहिंसा और त्याग को विशेष महत्व देते थे। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में उनकी सहभागिता रही थी। जबकि सरकारी प्रकाशन में यह लिखा गया कि “जगलाल चौधरी जो कांग्रेस के मंत्रिमंडल में 1937-39 तक रहे, जो गांधीजी के विश्वासपात्र व्यक्ति थे, उन्होंने स्वयं लोगों को सारण जिला के एक थाना को जलाने के लिए उकसाया। इतना ही नहीं उन्होंने भीड़ से कहा कि दरोगा को बांधकर नदी में फेंक दो।” आगे इसी सरकारी प्रकाशन में कहा गया है कि–

“इसी मंत्री ने सैनिकों का विरोध करने के लिए भाला लेकर और मशाल जलाकर लोगों को आन्दोलनरत रहने को कहा था।”

जगलाल चौधरी को भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने और अन्य कारणों से अनेक अनुषंगी दंड दिया गया था। पटना हाई कोर्ट के तत्कालीन जज ने उनके ऊपर लगाए गए दंड को सही ठहराया था।

अन्य स्रोतों से पता चलता है कि जगलाल चौधरी गांव-गांव लोगों को अन्दोलन के लिए संगठित और प्रेरित कर रहे थे। एक गांव से दूसरे गांव में घूम-घूमकर ब्रिटिश सैनिक टुकड़ी का विरोध करने के लिए लोगों को अहिंसात्मक तरीके से संगठित करने और गोलियों तथा संगीनों का मुकाबला करने के लिए तैयार कर रहे थे। 19 अगस्त, 1942 को एक भीड़ ने डाक खानेपर हमला किया था लेकिन डाक खाने के सभी कर्मचारियों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया था। गड़खा, दरौली (सीवान) तथा कतिया (गोपालगंज) के डाकघर और थाना पर भीड़ ने धावा बोला था लेकिन सभी जगह में कर्मचारियों को पहले डाकघरों और पुलिस चौकियों से सुरक्षित निकाल लिया गया था ताकि आन्दोलन से किसी की जान को खतरा न हो।

22 अगस्त को सैनिक टुकड़ी ने आन्दोलनकारियों पर गोलियां चलाई, जिसमें गड़खा में दो व्यक्ति शहीद हो गए, जिसमें से एक जगलाल चौधरी के पुत्र इन्द्रदेव चौधरी भी थे। इसके अगले ही दिन 23 अगस्त को जगलाल चौधरी को पुलिस ने वसंतपुर नामक स्थान में गिरफ्तार कर लिया। जगलाल चौधरी ने इस घटना की जानकारी देते हुए स्वयं लिखा है कि “23 अगस्त को जो दरोगा मुझे गिरफ्तार कर पुलिस थाना ले जा रहा था, उसी ने मुझे बताया कि मेरा एक पुत्र पुलिस के द्वारा गड़खा में मारा गया है। उसने यह भी बताया कि मेरे पुत्र का पार्थिव शरीर उसकी निगरानी में है। थाना पहुंचने पर उसने मेरे पुत्र के शव को मेरे कहने पर दिखाया। मैंने उन्हें अपने पुत्र के शव को दे देने के लिए कहा।”

“मेरा एक भतीजे ने छपरा आकर मेरे पुत्र के शव की खोजबीन की। … मैंने सुना कि मेरे पुत्र की हत्या पड़ोसी के सीढ़ियों पर कर दी गयी। पिछले साल अप्रैल महीने में जेल से रिहा होने पर मैं घर गया था। मैंने वह स्थान देखा जहां सीढ़ियों से उतरते वक्त उसे गोली मार दी गई थी।”

तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री और लार्ड वेवेल ने स्वतंत्रता देने के उद्देश्य से और भारतीय संवैधानिक गतिविधियों को दूर करने के लिए प्रांतीय एवं केन्द्रीय विधायिका के संगठन के लिए चुनाव कराने की घोषणा की। उन्होंने यह भी घोषणा की कि चुनाव 1945-46 के शीतकालीन सत्र में होगा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने चुनाव में भाग लेने का निर्णय किया। बिहार में भी प्रांतीय स्तर पर चुनाव की घोषणा हुई। चुनाव में पूरे भारत में कांग्रेस को सफलता मिली। 30 मार्च, 1946 को बिहार के राज्यपाल ने श्रीकृष्ण सिंह को अन्तरिम सरकार बनाने का न्यौता दिया। श्रीकृष्ण सिंह सहित चार मंत्रियों ने शपथ लिया। जगलाल चौधरी को पुनः मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। उन्हें स्वास्थ्य और कल्याण मंत्रालय सौंपा गया।

आजादी के बाद 1952 के आम चुनाव में सफलतापूर्वक लड़े और गरखा (सारण) सुरक्षित सीट से 1957, 1962, 1967, 1969 के चुनावों के विधान सभा के लिए चुने गए। जगलाल चौधरी का निधन 9 मई, 1975 को हो गया। इनके निधन के पश्चात उनके सम्मान में भारत सरकार ने वर्ष 2000 में एक डाक टिकट जारी किया। इसके पहले 1970 में ही छपरा में जगलाल चौधरी कॉलेज की स्थापना हुई। बाद में 5 फरवरी 2018 को जगलाल चौधरी की आदमकद प्रतिमा का अनावरण पटना के कंकड़बाग में राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा किया गया। 

संदर्भ : 

  1. होम पोलिटिकल फाइल नं. – 250/1935, बिहार अभिलेखागार, पटना।
  2. होम पोलिटिकल फाइल नं.- 424/1944, बिहार अभिलेखागार, पटना।
  3. होम पोलिटिकल फाइल नं.- 214/1946, बिहार अभिलेखागार, पटना।
  4. सारण जिला गजेटियर्स, 1960
  5. के.के. दत्ता, बिहार में स्वतंत्रता आन्दोलन, खंड I, II, III
  6. एम.के. विद्रोही, दलित दस्तावेज – 1989, नई दिल्ली

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

देवेन्द्र शरण

लेखक रांची विश्वविद्यालय, रांची के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं। उनकी प्रकाशित कृतियों में ‘शेड्यूल्ड कास्ट्स इन दी फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया’ (1999), ‘भारतीय इतिहास में नारी’ (2007), ‘नारी सशक्तिकरण का इतिहास’ (2012) और ‘मेरे गीत आवारा हैं’ (काव्य संग्रह, 2009) शामिल हैं।

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