नजरिया
गाय नहीं जानती कि उसके नाम पर सरकार बन चुकी है। वह यह भी नहीं जानती कि हिंदुओं ने उसे माता बना दिया है। वह बेचारी पहले की तरह प्लास्टिक और गंदगी खाती घूम रही है। लोग दूध के लिए गाय को पालते हैं, और जब वह दूध देना बंद कर देती है, तो उसे खुला छोड़ देते हैं। फिर किसी को उससे कोई मतलब नहीं। कहीं जाए, कुछ भी खाए, जिन्दा रहे या मरे। पहले लोग बूढ़ी गाय को कसाई को बेच देते थे। लेकिन अब संघियों के डर से कोई नहीं बेचता। इसलिए मारी-मारी फिरती हैं। पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू लाख कहते रहें कि एक जानवर हमारी माता कैसे हो सकता है? गाय को न वेद माता मानते हैं, न उपनिषद, न स्मृतियां, जिस मनुस्मृति को ब्राह्मण अपना पवित्र कानून मानते हैं, उसमें भी गाय को माता नहीं कहा गया है। लेकिन हिंदुत्ववादियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उनके लिए गाय माता है, तो है, और डंडे के बल पर वे पूरे देश को मनवाएंगे कि गाय माता है, जो नहीं मानेगा, उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करायेंगे, और इससे भी बात नहीं बनी, तो कानून अपने हाथ में लेकर खुलेआम हिंसा करेंगे।