डॉ. जोगेन्द्रनाथ मंडल ( 29 जनवरी, 1904 – 5 अक्टूबर, 1968) पर विशेष
जोगेन्द्रनाथ मंडल का जन्म 29 जनवरी, 1904 को अविभाजित बंगाल के बोरिसाल जिला के मैस्तारकांदी गांव में एक गरीब नमोशूद्र (दलित) परिवार में हुआ था। दरअसल, अविभाजित बंगाल में नमोशूद्र जाति को चांडाल नाम से पुकारा जाता था। चांडालों में सांस्कृतिक और सामाजिक जागृति लाने का श्रेय ‘मतुआ’ धर्म के संस्थापक हरिचंद ठाकुर और उनके बेटे गुरुचंद ठाकुर को जाता है। हरिचंद ठाकुर सामाजिक विषमता का मूल हिन्दू धर्म की शोषक प्रवृत्ति को मानते थे। सन् 1876 में लाखों अछूत अकाल और भुखमरी के कारण मौत के मुंह में समा गये थे। चारों तरफ जमींदारों द्वारा और सवर्ण हिन्दुओं द्वारा अछूतों को गुलाम बनाए रखने के लिए धर्म का सहारा लेकर अत्याचार किया जा रहा था। मनुवादी क्रूरता और शोषण को धर्म का आवरण पहनाकर जायज ठहराते थे और अछूतों को यह बताया जाता था कि चातुर्वर्ण्य जाति व्यवस्था ईश्वर का आदेश है। दूसरी तरफ मुसलमानों के मौलवीवाद और अंग्रेज हुकूमत चाबुक के कारण अछूतों की भी स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। ऐसी परिस्थिति को देखकर हरिचंद ठाकुर ने 1830 में मतुआ धर्म की स्थापना की, जो समतामूलक विचारधारा पर आधारित थी।