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यूपी चुनाव : तीसरे चरण के बाद अब निगाहें पूर्वांचल पर

यूपी में तीसरे दौर का मतदान सियासी तौर पर इसलिए भी अहम है, क्योंकि 2017 में अलगाव के बाद शिवपाल यादव एक बार फिर से सपा के साथ हैं। इस दौर में यादव वोटरों पर भी सबकी नज़र थी, जो मुलायम सिंह यादव के परिवार की तरह ही अलग-अलग पार्टियों में बिखर गई थी। पढ़ें, सैयद जै़गम मुर्तजा का विश्लेषण

त्वरित विश्लेषण

उत्तर प्रदेश के यादव बहुल इलाक़े में किस दल को बढ़त मिली है? तीसरे चरण की वोटिंग के बाद यह सबसे अहम सवाल है। गत 20 फरवरी, 2022 को वोटिंग पूरी होने के बाद दो बातें दावे के साथ कही जा सकती हैं। पहली, यादवलैंड नाम से मशहूर एटा, इटावा, मैनपुरी, फिरोज़ाबाद और कन्नौज में समाजवादी पार्टी (सपा) का प्रदर्शन 2017 के मुक़ाबले काफी बेहतर है। दूसरी बात, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस चरण में पहले और दूसरे चरण के दौरान हुए नुक़सान की भरपाई करने में शायद सफल नहीं हो पाई। लिहाजा भाजपा की नजर अब पूर्वांचल पर है और चुनाव प्रचार की पूरी कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हाथ में ले ली है। वहीं आनेवाले चार चरण अखिलेश के लिए भी निर्णायक हैं। इसके अलावा यह भी खास है कि यह चुनाव अगड़ा बनाम पिछड़ा के आधार पर लड़ा जा रहा है या फिर भाजपा के हिंदुत्व के सवाल पर।

अभी तक माना जा रहा है कि पिछड़ों, ख़ासकर जाट, गूजर और मुसलमानों की गोलबंदी से पहले और दूसरे चरण की वोटिंग में भाजपा को भारी नुक़सान उठाना पड़ा है। हालांकि सीटों को लेकर सिर्फ क़यास लगाया जा सकता है लेकिन सपा दावा कर रही है कि उसने पहले दो चरण में ही क़रीब अस्सी-नब्बे सीट पक्की कर ली हैं। ऐसे में सबकी नज़र तीसरे चरण के मतदान पर थीं। यूपी में तीसरे दौर का मतदान सियासी तौर पर इसलिए भी अहम माना है, क्योंकि 2017 में अलगाव के बाद शिवपाल यादव एक बार फिर से सपा के साथ हैं। इसके अलावा इस दौर में यादव वोटरों पर भी सबकी नज़र थी जो मुलायम सिंह यादव के परिवार की तरह ही अलग-अलग पार्टियों में बिखर गए थे।

मुकाबला : सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

भाजपा के लिए इस दौर में यादव मतदाताओं के अलावा ग़ैर-यादव पिछड़ों को अपने पाले में बनाए रखने की चुनौती थी। लेकिन वोटिंग के बाद लगता है कि भाजपा यादव मतदाताओं को इस बार अपने साथ बांध कर नहीं रख पाई है। हालांकि पार्टी तसल्ली कर सकती है कि बुंदेलखंड में उसे पिछड़ों के बीच अभी भी ठीक-ठाक समर्थन हासिल है। रविवार को हुए मतदान में भाजपा हमीरपुर, झांसी, ललितपुर और महोबा में बढ़त का दावा कर रही है। लेकिन मध्य यूपी और पश्चिम यूपी की बची हुई सीटों पर भाजपा को 2017 जैसी सफलता शायद न मिल पाए। कासगंज, फर्रुख़ाबाद, एटा, इटावा, मैनपुरी, फिरोज़ाबाद, कन्नौज, कानपुर, कानपुर देहात और हाथरस में इस बार भाजपा को कड़ी टक्कर मिल रही है। 

सादाबाद, जसवंतनगर, जसराना, टूंडला, एटा, सिरसागंज, इटावा, जलेसर, सिकन्दरा, भर्थना, डिबियापुर, मैनपुरी, करहल, अमृतपुर, कन्नौज, बिधूना, में समाजवादी पार्टी उम्मीदवार 2017 के मुक़ाबले काफी मज़बूत नज़र आ रहे हैं। कानपुर और कासगंज ज़िले की तमाम सीटों पर इस बार क़रीबी मुक़ाबला देखने को मिल सकता है। जालौन में भी भाजपा इस बार एकतरफा जीत हासिल करने की स्थिति में नहीं है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बुंदेलखंड में भाजपा कुछ हद तक अपनी सीटें बचा पाएगी लेकिन यादव बहुल ज़िलों में मामला टक्कर का है। कम से कम 2017 जैसे हालात इस बार नहीं नज़र आ रहे।

भाजपा के लिए बड़ी चिंता शहरी सीटों पर कम मतदान है। पार्टी भले ही जैसे-तैसे इन सीटों पर चुनाव जीत जाए लेकिन उसके वोटरों या समर्थकों में 2017 या 2019 के लोक सभा चुनाव जैसा उत्साह नहीं दिख रहा है। अब जबकि तक़रीबन आधी सीटों पर वोटिंग हो चुकी है तो भाजपा के लिए चिंता होना लाज़िम है। हालांकि पार्टी अभी भी चार चरणों से उम्मीदें लगाए बैठी है। लेकिन यह तय है कि अगर राज्य की सत्ता में वापसी करनी है तो अगले चार चरण में भाजपा को अपना स्ट्राइक रेट अस्सी फीसद से ऊपर रखना होगा। यह नामुमकिन तो नहीं है, लेकिन जिस तरह का माहौल पहले तीन दौर की वोटिंग के बाद राज्य में बना है, उसमें इतनी सीटें पाना किसी चमत्कार से कम भी नहीं है। 

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

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