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शोषक और शोषित में विभाजित है हिन्दुस्तान : जगदेव प्रसाद

आज का हिन्दुस्तानी समाज साफतौर से दो तबकों में बंटा हुआ है – शोषक और शोषित। हरिजन, आदिवासी, मुसलमान और पिछड़ी जातियां शोषित हैं। तमाम ऊंची जात वाले शोषक हैं। शोषित सौ में नब्बे हैं, शोषक सौ में दस हैं। इन दोनों वर्गों में स्वार्थ की दृष्टि से इनमें कहीं समझौते की गुंजाइश नहीं है।’ पढ़ें, 2 अप्रैल, 1970 को बिहार विधानसभा में जगदेव प्रसाद का ऐतिहासिक संबोधन

जगदेव प्रसाद (2 फरवरी, 1922 – 5 सितंबर, 1974) की जन्मशती के मौके पर विशेष

[जगदेव प्रसाद ने बिहार विधानसभा में 2 अप्रैल, 1970 को दिए अपने भाषण में शोषक और शोषित के बीच के अंतर को स्थापित किया था। साथ ही उन्होंने शासन-प्रशासन में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों की समुचित भागीदारी के लिए मांगें रखीं। हम उनके इस ऐतिहासिक संबोधन को हू-ब-हू प्रकाशित कर रहे हैं।]

2 अप्रैल, 1970 को बिहार विधानसभा में बहुजन नायक जगदेव प्रसाद का ऐतिहासिक संबोधन 

अध्यक्ष महोदय,

चार दिनों से राज्यपाल के अभिभाषण पर बह बहस चल रही है। मैंने कुछ माननीय सदस्यों के भाषण सुने हैं। कम्युनिस्ट पार्टी, संसोपा [संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी], प्रसोपा [प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी], जो कम्युनिज्म और समाजवाद की पार्टियां हैं, के नेताओं के भाषण भी गौर से सुने हैं। जो भाषण इन दलों के नेताओं ने दिये हैं, उनसे साफ हो जाता है कि ये पार्टियां अब किसी काम की नहीं रह गई हैं। इनसे कोई ऐतिहासिक परिवर्तन या सामाजिक, आर्थिक ना-बराबरी के जो असली कारण हैं, उनको साफ शब्दों में मजबूती के साथ नहीं कहें। कांग्रेस, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी, भाक्रांद [भारतीय क्रांति दल]– ये सब द्विजवादी, पूंजीवादी व्यवस्था और संस्कृति के पोषक हैं। करीब-करीब इन सभी दलों ने राज्यपाल के अभिभाषण के बारे में कहा है कि इस अभिभाषण से समाज को कोई दिशा नहीं मिलती है। मेरे ख्याल से यह सरकार और सभी राजनीतिक पार्टियां द्विज-नियंत्रित होने के कारण राज्यपाल के अभिभाषण की तरह दिशाहीन हो चुकी हैं। मुझको कम्युनिज्म और समाजवाद की पार्टियों से भारी निराशा हुई है। इनका नेतृत्व दिनकटु हो गया है।

साढ़े आठ महीने तक बिहार में राष्ट्रपति शासन रहा है। राष्ट्रपति शासन का मतलब है अफसरी राज्य, अफसरी राज्य का मतलब है ऊंची जाति का राज, क्योंकि अफसर ऊंची जात के हैं, शोषित समाज के अफसर ऊंट के मुंह में जीरे की तरह हैं। बिहार में राष्ट्रपति शासन में सर्वेसर्वा थे – सलाहकार टी.पी. सिंह, मुख्य सचिव सच्चिदानंद सिंह और विकास आयुक्त बी. एन. सिन्हा, उनमें बी.एन. सिन्हा अय्यर आयोग के हीरो हैं। अय्यर आयोग के मुताबिक इनसे बढ़कर हिन्दुस्तान में दूसरा कोई भ्रष्ट व्यक्ति नहीं। ये तीनों अफसर कानून, नियम, इंसानियत, इंसाफ और जनतंत्र के हत्यारे साबित हो चुके हैं। लूट-खसोट और जुल्म करने में इन तीनों ने नादिरशाह को भी शर्मिदा कर दिया है। जातीयता में इन्होंने पिछले सभी रिकॉर्ड को मात दे दी है।

राष्ट्रपति शासन में शोषित जनता और शोषित अफसर तबाह, बर्बाद कर दिए गए हैं। ऐसे जन-विरोधी, जनतंत्र विरोधी ऊंची जात के शासन से मुक्ति दिलाने वाले दारोगा प्रसाद राय बधाई के पात्र हैं। बिहार के इतिहास में पहली बार एक शोषित समाज के साधारण परिवार में पैदा हुआ एक अच्छा आदमी मुख्यमंत्री हुआ है। इस पर हमको फख्र है।

जो अनुपात कृषि विभाग में शोषक और शोषित का है, सुनिश्चित रूप से वही अनुपात सरकार के अन्य विभागों में है। जो अनुपात पटना विश्वविद्यालय में शोषक और शोषित का है, वही अनुपात अन्य विश्वविद्यालयों में है। पटना विश्वविद्यालय में 56 विभागाध्यक्ष हैं, जिनमें शोषित सिर्फ 5 हैं। इस स्थिति को पंसद करने वालों को हम शरीफ और इंसाफवर कैसे मान सकते हैं?

हमारे दल ने अपने खड़गपुर शिविर में पांच एकड़ जमीन पर से मालगुजारी खत्म करने की मांग की थी। हमारा दल इसके लिए आंदोलन कर रहा था। हमको खुशी है कि इस सरकार ने इस महीने के अंदर पांच एकड़ जमीन पर से मालगुजारी खत्म करने की हमारी मांग को मंजूर कर लिया और इसके लिए अध्यादेश भी जारी कर दिया। लेकिन मुझे खेद है कि पांच एकड़ के लिए मुफ्त बिजली और सिंचाई का इंतजाम नहीं किया। मैं चाहूंगा कि पांच एकड़ जमीन जोतने वाले किसानों के लिए मुफ्त पानी और बिजली का इंतजाम करके यह सरकार समाजवाद की दिशा में ठोस कदम उठावे।

आज का हिन्दुस्तानी समाज साफतौर से दो तबकों में बंटा हुआ है – शोषक और शोषित। हरिजन [अनुसूचित जाति], आदिवासी, मुसलमान और पिछड़ी जातियां शोषित हैं। तमाम ऊंची जात वाले शोषक हैं। शोषित सौ में नब्बे हैं, शोषक सौ में दस हैं। इन दोनों वर्गों में स्वार्थ की दृष्टि से इनमें कहीं समझौते की गुंजाइश नहीं है। इन्हीं दस प्रतिशत शोषकों का नब्बे प्रतिशत शोषितों पर कई हजार वर्षों से शासन कायम है। नौकरशाही पर दस प्रतिशत शोषक वर्ग का एकाधिकार जैसा है। राजनीति पर भी इसी का एकाधिकार जैसा है। यह बात दूसरी है कि राजनीतिक एकाधिकार पर अब छिटपुट हमला शुरू हो गया है, जिसके फलस्वरूप आज दारोग प्रसाद राय बिहार के मुख्यमंत्री हैं। इसका श्रेय शोषित दल को ही है।

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दस प्रतिशत शोषक बनाम नब्बे प्रतिशत शोषित की रोटी और इज्जत की लड़ाई वैज्ञानिक समाजवाद या कम्युनिज्म की असली लड़ाई है। हिन्दुस्तान में असली वर्ग संघर्ष आर्थिक नाबराबरी के ही आधार पर नहीं, सामाजिक नाबराबरी के आधार पर है। यही हिन्दुस्तान का मार्क्सवादी-लेनिनवादी वर्ग-संघर्ष है। यही कम्युनिज्म की लड़ाई है, जो इस विश्लेषण को नहीं मानता, वह न तो क्रांतिकारी है न तो कम्युनिस्ट। शोषित दल समाज के नब्बे प्रतिशत शोषितों का निछक्का दल बनना चाहता है।

जीवन के सभी सार्वजनिक अंगों पर ऊंची जात का कब्जा है। सरकारी यंत्रों पर ऊंची जात का सख्त कब्जा है। बाईस वर्षों की लंबी आजादी के बाद तीन पंचवर्षीय योजनाओं के अमल और समाजवादी घोषणाओं के बावजूद हरिजन, आदिवासी, मुसलमान और पिछड़ी जातियां ऊंची जातियों की गुलामी करने को मजबूर हैं। वास्तव में आज का भारत दस प्रतिशत द्विजों का भारत है। इसको नब्बे सैकड़ों शोषितों का हिन्दुस्तान बनाने की लड़ाई हम लड़ रहे हैं। सरकार के सभी महकमों पर ऊंची जात का कब्जा है।

जगदेव प्रसाद (2 फरवरी, 1922 – 5 सितंबर, 1974)

हमने बिहार सरकार के कृषि विभाग और पटना विश्वविद्यालय की नौकरियों का सर्वेक्षण कराया है। हमारे सर्वेक्षण के मुताबिक कृषि विभाग में प्रथम श्रेणी के 133 अफसर हैं, जिनमें शोषित सिर्फ 11 हैं। द्वितीय श्रेणी के अफसर 595 हैं, जिनमें शोषित सर्फ 62 हैं। दोनों मिलकर 728 अफसर हैं, जिनमें शोषित सिर्फ 73 हैं। पटना विश्वविद्यालय में कुल 747 प्राध्यापक, व्याख्याता और पदाधिकारी हैं जिनमें शोषित सिर्फ 124 हैं।

जो अनुपात कृषि विभाग में शोषक और शोषित का है, सुनिश्चित रूप से वही अनुपात सरकार के अन्य विभागों में है। जो अनुपात पटना विश्वविद्यालय में शोषक और शोषित का है, वही अनुपात अन्य विश्वविद्यालयों में है। पटना विश्वविद्यालय में 56 विभागाध्यक्ष हैं, जिनमें शोषित सिर्फ 5 हैं। इस स्थिति को पंसद करने वालों को हम शरीफ और इंसाफवर कैसे मान सकते हैं?

अध्यक्ष महोदय, मैं कुछ सुझाव इस सरकार की मजबूती के लिए, मुख्यमंत्री की लोकप्रियता के लिए, स्वच्छ, निष्पक्ष और सक्षम प्रशासन के लिए देना जरूरी समझता हूं :

राष्ट्रपति शासन के तीन मुख्य अपराधियों– सलाहकार टी.पी. सिंह, मुख्य सचिव सच्चिदानंद सिंह और विकास आयुक्त बी.एन. सिन्हा के भ्रष्टाचारों की जांच करने के लिए अय्यर और मधोलकर आयोग की तरह ही एक आयोग गठित किया जाय। अय्यर और मधोलकर आयोग के मुजरिम अफसर और भूतपूर्व मंत्रियों के खिलाफ अविलंब सख्त कार्रवाई की जाए। अय्यर आयोग में जो अफसर दोषी पाये गए हैं, उनमें से अधिकांश प्रशासन के निर्णायक स्थानों पर आज भी बैठे हैं। हरिजन और आदिवासी की सुरक्षित स्थानों की पूर्ति करने के लिए अलग लोक सेवा आयोग गठित किया जाय, जिसका कोई सदस्य ऊंची जात का नहीं हो। 

शोषित छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की रकम कम-से-कम एक करोड़ रुपये कर दी जाए।

सामाजिक न्याय, स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रशासन के लिए सरकारी, अर्द्ध सरकारी और गैर-सरकारी नौकरियों में कम-से-कम 90 सैकड़ा जगह शोषितों के लिए सुरक्षित कर दी जाए।

(जनसंघ के माननीय सदस्य जनार्दन तिवारी ने इसपर हस्तक्षेप करते हुए जब यह कहा कि “जगदेव बाबू को बिहार से अब मद्रास चला जाना चाहिए क्योंकि वह जैसा चाहते हैं वैसा मद्रास में हो गया है।” तो इसपर जगदेव प्रसाद ने कहा घबराइए नहीं! मैं बिहार को ही मद्रास बना दूंगा। अब हिन्दुस्तान की ऊंची जात के साम्राज्यवादियों को अमरीका जाने की तैयारी करनी चाहिए, क्योंकि साम्राज्यवादियों की जगह अमेरिका के अलावा और कहीं भी नहीं है।)

(प्रस्तुति : अरुण नारायण)

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जगदेव प्रसाद

जगदेव प्रसाद (2 फरवरी, 1922 - 5 सितंबर, 1974)

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