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बहुजन साप्ताहिकी : राजस्थान में जितेंद्र मेघवाल की हत्या से आक्रोशित हुए दलित, परिजनों से मिलने जा रहे चंद्रशेखर के काफिले पर सवर्णों ने किया पथराव

बहुजन साप्ताहिकी के तहत पढ़ें राजस्थान में जितेंद्र मेघवाल की हत्या के बाद दलितों में आक्रोश के अलावा बिहार में होली के मौके पर जहरीली शराब पीने से 40 दलित-पिछड़े लोगों की मौत सहित बीते सप्ताह की कुछ खास खबरें

गत 15 मार्च, 2022 को राजस्थान के पाली जिले के गांव बारवा में राज्य स्वास्थ्यकर्मी जितेंद्र मेघवाल की हत्या कर दी गयी। इस मामले में दो मुख्य आरोपियों को पुलिस ने हालांकि गिरफ्तार कर लिया है और मेघवाल के परिजनों को मुख्यमंत्री सहायता कोष से पांच लाख रुपए की राशि भी दे दी गयी है, लेकिन सवाल जस के तस हैं। मेघवाल की हत्या की वजह यह बतायी जा रही है कि सवर्ण उसके पहनावे व जीवनशैली को लेकर रंजिश रखते थे।

दरअसल, जितेंद्र मेघवाल की हत्या के दोनों आरोपी सूरजसिंह राजपुरोहित और रमेशसिंह राजपुरोहित ने इसके पहले भी 23 जून, 2020 को अपनी जातिगत नफरत का परिचय तब दिया था जब अपने गांव बारवा के आंगनबाड़ी केंद्र के बाहर बैठे जितेंद्र मेघवाल ने आरोपियों को नजर उठाकर देखा था। तब आरोपियों ने जितेंद्र के घर में घुसकर उनके और उनकी मां व बहनों के साथ मारपीट की थी। तब पुलिस में शिकायत दर्ज कराए जाने के करीब छह माह के बाद आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था और उसने मुकदमे को इतना कमजोर कर दिया था कि निचली अदालत में पहली ही पेशी में दोनों आरोपियों को जमानत मिल गयी थी।

जितेंद्र मेघवाल की हत्या के बाद देश भर के दलितों में आक्रोश देखा गया। बीते 22 मार्च को भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर भी पाली पहुंचे। वहां रास्ते में असामाजिक तत्वों द्वारा उनके काफिले पर पत्थरबाजी की गयी। अपने बयान में चंद्रशेखर ने अपने काफिले पर हुए हमले की बाबत बताया कि वे हमारे लोगों की हत्या कर रहे हैं और चाहते हैं कि हम खामोश रहें। 

बहरहाल, जितेंद्र मेघवाल के आरोपी उससे किस कदर जातिगत खुन्नस रखते थे, इसका अंदाज सिर्फ इससे लगाया जा सकता है कि अपराधी जातिगत वर्चस्व को बनाए रखने के इरादे से हत्या को अंजाम देने के लिए 800 किलोमीटर की दूरी मोटरसाइकिल से गुजरात से चलकर राजस्थान के पाली जिला पहुंचे थे। 

जंतर-मंतर पर जुटे ओबीसी, पंचायत निकायों में आरक्षण सहित रखीं अनेक मांगें

बीते 22 और 23 मार्च को राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ के तत्वावधान में नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर दो दिवसीय धरना आयोजित किया गया। इस मौके पर देश के अलग-अलग प्रांतों के ओबीसी प्रतिनिधियों ने भाग लिया। धरना के बाद राष्ट्रपति रामनाथ काेविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिए गए ज्ञापन में महासंघ ने पंचायत निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान करने हेतु कानून बनाने के अलावा जातिगत आरक्षण सहित अनेक मांगों को रखा। इनमें एक मांग यह भी कि जब तक शासन-प्रशासन में ओबीसी की 27 प्रतिशत हिस्सेदारी सुनिश्चित न हो, रोहिणी कमीशन को विघटित कर दिया जाय। धरना को संबोधित करनेवाले जी. करुणानिधि ने जातिगत जनगणना की अहमियत पर विस्तार से जोर दिया और कहा कि यदि जातिगत जनगणना नहीं हुई तो ओबीसी की हकमारी होती रहेगी। इस धरने को महासंघ के अध्यक्ष डॉ. बबनराव तायवाडे; राष्ट्रीय मन्वयक डॉ. खुशालचंद्र बोपचे; राष्ट्रीय महासचिव सचिन राजुरकर के अलावा तेलंगाना के बदगुला लिंगा यादव, राजकुमार सैनी, हनुमंत राव; आंध्र प्रदेश के शंकरराव; पंजाब से इंदर सिंह; बिहार से राकेश यादव व रवींद्र राम आदि ने भी संबोधित किया।

जंतर-मंतर, नई दिल्ली पर धरना देते राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ के सदस्य

पति पत्नी का शासक नहीं : कर्नाटक हाईकोर्ट

गत 23 मार्च, 2022 को कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान अपनी टिप्पणी में कहा कि पति पत्नी का शासक नहीं है। यह भ्रांति अब टूटनी चाहिए। हाईकोर्ट के न्यायाधीश एम नागप्रसन्ना ने अपने फैसले में कहा कि पति को पत्नी के साथ बलात्कार के आरोप से केवल इसलिए मुक्त नहीं किया जा सकता है कि वह शिकायतकर्ता का पति है। दरअसल उनकी अदालत में यह मामला आया था। एक महिला ने अपने पति के उपर बलात्कार करने का आरोप लगाया था। अपने बचाव में पति पक्ष के वकील ने हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा था कि कोर्ट इस मुकदमे को खारिज करे। लेकिन जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की एकलपीठ ने इसे खारिज करते हुए कहा कि अब यह भ्रांति टूटनी चाहिए कि पति पत्नी का शासक है।

यूपी : अखिलेश ने छोड़ी संसद की सदस्यता

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजमगढ़ लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया है। बीते 22 मार्च को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला से मिलकर उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया। उनके अलावा उनकी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान ने भी रामपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया है। ये दोनों हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में विजयी रहे हैं। अब अखिलेश विधानसभा में करहल विधानसभा क्षेत्र और आजम खान रामपुर के विधायक के रूप में सदस्य रहेंगे। हालांकि यह तय है कि इस बार विपक्ष की कमान अखिलेश यादव के हाथों में रहेगी।

बताते चलें कि अखिलेश यादव ने विधान सभा चुनाव में करहल सीट से भाजपा के उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को 67,504 वोटों के अंतर से हराया। 

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को इस्तीफा सौंपते अखिलेश यादव

दरअसल, पहले यह कयास लगाया जा रहा था कि अखिलेश यूपी की सियासत को मझधार में छोड़ दिल्ली की सियासत करेंगे और विधानसभा में विपक्ष की कुर्सी पर अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को बिठाएंगे। सूत्र बताते हैं कि इसे लेकर पार्टी में तेज हलचल थी। पार्टी के लोगों का कहना था कि अखिलेश की लीडरशिप में सपा गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया। यह इसके बावजूद कि गठबंधन भाजपा को सत्ता में आने नहीं रोक सकी और 125 सीटों पर सिमट गयी। दल के लोगों का कहना था कि सपा प्रमुख ने सूबे की जनता में यह विश्वास जगाया है कि भाजपा राज का खात्मा किया जा सकता है।

बिहार : जहरीली शराब पीने से 40 मरे, मृतकों में अधिकांश दलित-पिछड़े

शराबबंदी कानून बिहार में विफल साबित होती जा रही है और इसका शिकार दलित-पिछड़े हो रहे हैं। एक बार फिर बिहार में जहरीली शराब पीने के कारण मरनेवालों की संख्या अब 40 के पार हो गई है। भागलपुर में मृतकों की संख्या 27 हो गई है। इसके अलावा बांका में 14 और मधेपुरा में 5 तथा बक्सर और सीवान में भी दो-दो लोगोें के मारे जाने की सूचना है। इस पूरे घटनाक्रम में कुल 19 लोगों के आंखों की रोशनी चली गई है। इस बीच राज्य सरकार द्वारा मृतकों का शव बिना पोस्टमार्टम के ही जलवाने की सूचना प्राप्त हुई है। ये सभी मौतें बीते सप्ताह मनायी गयी होली के मौके पर हुई हैं। हालांकि इस मामले में बिहार पुलिस के एडीजी जितेंद्र सिंह गंगवार ने साफ किया है कि मृतकों को परिजन लाशों का पोस्टमार्टम नहीं करवा रहे हैं। इसी आधार पर गंगवार ने कहा है कि राज्य में होली के मौके पर किसी भी व्यक्ति की मौत जहरीली शराब के कारण नहीं हुई है। 

अपने लिए एसटी दर्जा पाने हेतु धरना देते अहोम समुदाय के युवा

आसाम : ओबीसी नहीं, एसटी का दर्जा चाहते हैं अहोम

पूर्वोत्तर के राज्य आसाम के अहोम समुदाय के लोग अपने लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा चाहते हैं। अपनी इस मांग को लेकर ऑल ताई अहोम स्टूडेंट्स यूनियन (आटसू) के सदस्यों ने बीते 23 मार्च को जंतर-मंतर पर धरना दिया। इसके संबंध में आटसू के संयुक्त सचिव मंजूल गोगोई ने बताया कि आसाम में अहोम समुदाय के लोगों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का दर्जा हासिल है। इसके कारण उन्हें बहुत कम आरक्षण का लाभ मिल रहा है। राज्य की राजनीति में अहोम समुदाय की भागीदारी भी बहुत कम है। मंजूल गोगोई ने बताया कि भाजपा ने 2019 में लोकसभा चुनाव के पहले यह वादा किया था कि अहोम समुदाय के लोगों को एसटी का दर्जा दिया जाएगा। लेकिन आजतक न तो राज्य सरकार ने और ना ही केंद्र सरकार ने कोई पहल की है।

(संपादन : अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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