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गुरुग्राम और मेवात का फर्क

नीति आयोग की रेटिंग के अनुसार, हरियाणा में मेवात (गुरुग्राम से सटा जिला) भारत का सबसे पिछड़ा जिला है, जहां पसमांदा मुसलमानों की आबादी अधिक है। हरियाणा के शिक्षा महकमे की रपट के अनुसार भी हरियाणा के सभी जिलों में मेवात का प्रदर्शन सबसे खराब था। बता रहे हैं सुमित चहल

गत 6 अप्रैल, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा के अधिकार कानून को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। न्यायमूर्ति यू.यू. ललित, न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भट्ट और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा की खंडपीठ ने कहा कि सरकार को किसी भी योजना को आगे बढ़ाने से पहले वित्तीय प्रभाव को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए। खंडपीठ ने शिक्षा का अधिकार कानून का हवाला देते हुए कहा कि यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है। एक अधिकार कानून बना दिया गया लेकिन पर्याप्त स्कूल नहीं हैं।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी इस वजह से भी वाजिब है क्योंकि देश में शिक्षा के मामले में हालात बदतर ही हैं। पिछले 75 वर्षों से भारत को विकासशील देश की संज्ञा दी जाती रही है। एक विकसित देश के निर्माण के लिए स्वस्थ और शिक्षित जनशक्ति की आवश्यकता होती है। 26 जनवरी 1950 को जब संविधान लागू हुआ, तो इसमें सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का वादा करने वाला एक अनुच्छेद था (अनुच्छेद 45) और इस लक्ष्य को 10 साल के भीतर हासिल किया जाना था। लेकिन राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के अनुसार, आज भी भारत की साक्षरता दर 77.7 प्रतिशत है। यानी लगभग 30 करोड़ लोग निरक्षर हैं।

नीति आयोग की रपट में पहले कहा गया कि देश में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 6 प्रतिशत खर्च शिक्षा पर किये जाने की आवश्यकता है, लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2021-22 के अनुसार अब तक केवल 3.1 प्रतिशत तक ही खर्च किया जा सका है। 

मेवात, हरियाणा में एक सरकारी स्कूल की तस्वीर

हालांकि शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची का विषय है। इसका मतलब यह कि शिक्षा के लिए केंद्र और राज्य सरकार, दोनों जिम्मेदार हैं। शिक्षा के लिए आवंटित कुल बजट में से 85 फीसदी राज्य सरकारों द्वारा खर्च किया जाता है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा अपनी रपट में बताया गया है कि वर्ष 2020-21 में आधे से ज्यादा भारतीय बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं, जिनमें सामाजिक दृष्टि से मोटे तौर पर इनमें एससी (अनुसूचित जाति), एसटी (अनुसूचित जनजाति), घुमंतु समुदाय और पसमांदा मुस्लिम शामिल हैं। कोरोना माहामारी के कारण 2020-21 में पिछले साल के मुकाबले सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसका मुख्य कारण लोगो की आय में गिरावट होना है, लेकिन यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉरमेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यूडीआईएसई) की 2019-20 की रपट में यह कहा गया कि सरकारी स्कूलों में छात्रों के नामांकन दर में पिछले 50 वर्षें से लगातार गिरावट आ रही है। इसका अर्थ है कि जनता जानती है कि सरकार सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार नहीं करना चाहती है और इसलिए, केवल वे लोग जो निजी स्कूलों का खर्च नहीं उठा सकते, अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेज रहे हैं। वास्तव में अधिकांश लोग जो अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेज रहे हैं, वे ऐसा इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे इसे वहन कर सकते हैं, बल्कि इसलिए कि वे सरकारी स्कूलों की दयनीय स्थिति को जानते हैं।

गुरुग्राम के एक सरकारी स्कूल में बच्चों को संबोधित करते मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर

नीति आयोग की रेटिंग के अनुसार, हरियाणा में मेवात (गुरुग्राम से सटा जिला) भारत का सबसे पिछड़ा जिला है, जहां पसमांदा मुसलमानों की आबादी अधिक है। हरियाणा के शिक्षा महकमे की रपट के अनुसार भी हरियाणा के सभी जिलों में मेवात का प्रदर्शन सबसे खराब था। मेवात के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के 50 प्रतिशत पद रिक्त हैं। दिसंबर, 2021 में हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान, हरियाणा सरकार ने विधानसभा को सूचित किया था कि हरियाणा के मुस्लिम बहुल मेवात क्षेत्र में 64 प्रतिशत टीजीटी (ट्रेंड ग्रेजुएट टीचर्स) सहित नियमित शिक्षकों के कम से कम 49 फीसदी पद खाली हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि बच्चे समाज का भविष्य होते हैं, अत: हम मान सकते है कि 10 से 15 वर्ष बाद भी मेवात सबसे पिछड़ा जिला रहेगा, क्योंकि उस क्षेत्र का भविष्य अब इन शिक्षक रहित विद्यालयों में लिखा जा रहा है। हरियाणा में कई स्कूल ऐसे हैं जिनमे अतिरिक्त शिक्षक है, लेकिन वंचितों के इस क्षेत्र में कोई जाना नहीं चाहता।

हरियाणा सांख्यिकीय सार, 2020-21 के अनुसार, हरियाणा के सभी ज़िलो में से, मेवात अथवा नूह ज़िले में शिक्षक-छात्र अनुपात सबसे कम है। जबकि मेवात से सटे गुरुग्राम ज़िले में ये सबसे अधिक है। अगर दोनों ज़िलों की तुलना करें तो गुरुग्राम में यह अनुपात मेवात से 2.25 गुना ज्यादा है। गुरुग्राम में जहां 16 बच्चो पर एक शिक्षक है तो मेवात में 36 बच्चों पर एक शिक्षक।

समाधान की बात करें तो स्थानीय क्षेत्र से शिक्षकों को नियुक्त करना प्रतीत होता है, लेकिन कोई भी इसे स्वीकार नहीं करता हैं क्योंकि इसका मतलब उस क्षेत्र के मुसलमानों को नौकरी देना होगा। और वैसे भी आज देश में नौकरियो की मांग बहुत ज्यादा है। एससी/एसटी बहुल इलाकों के हर स्कूल में भी यही स्थिति है। प्रभुत्वशाली वर्ग के शिक्षकों द्वारा एससी/एसटी बच्चो के साथ भेदभाव बहुत ही आम बात है। 

(संपादकीय : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सुमित चहल

लेखक सामाजिक-आर्थिक विषयों पर लिखनेवाले स्वतंत्र पत्रकार हैं

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