h n

बहुजन साप्ताहिकी : मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग

इस बार पढ़ें मध्य प्रदेश में ओबीसी से जुड़ी दो खबरें तथा झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा केंद्र पर रूस-यूक्रेन की राजनीति करने का आराेप व बिहार में सियासी पारे की कहानी

वर्ष 2019 में मध्य प्रदेश सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया था। लेकिन आज भी यह लागू नहीं किया जा सका है। इसकी वजह यह कि राज्य सरकार के फैसले को विभिन्न अदालतों में आरक्षण विरोधियों द्वारा चुनौती दी गई है। ऐसे में अब यह मांग उठने लगी है कि राज्य सरकार अपने ओबीसी के आरक्ष्ण संबंधी अधिनियम को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कराये। इस तरह की एक मांग अखिल भारतीय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक अधिकारी कर्मचारी संगठन (अपाक्स) ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर की है।

इस संबंध में अपाक्स के प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव शैलेंद्र वागदे ने बताया कि राज्य में ओबीसी आरक्षण को लेकर तमाम बाधाएं पैदा की जा रही हैं। इसके कारण ओबीसी के अभ्यर्थी नौकरी एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश से वंचित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में अधिकतम 50 फीसदी आरक्ष्ण संबंधी जो फैसला दिया था, वह अब बेमानी हो चुकी है। भारत सरकार द्वारा ईडब्ल्यूएस को दिये गए 10 फीसदी आरक्षण से भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अधिकतम सीमा का उल्लंघन होता है, लेकिन उसके क्रियान्वयन पर कोई रोक नहीं है। लेकिन जब राज्य में ओबीसी आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया गया है तब इसे गलत बताया जा रहा है। 

वागदे ने बताया कि तमिलनाडु राज्य में आरक्षण की सीमा 69 प्रतिशत है और वहां कोई वैधानिक समस्या नहीं है क्योंकि तमिलनाडु सरकार की पहल पर तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (राज्य की शिक्षण संस्थाओं एवं नियुक्तियों में आरक्षण) अधिनियम, 1994 को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया था। ऐसा मध्य प्रदेश सरकार भी कर सकती है और इसके लिए केंद्र सरकार पर दबाव बना सकती है। इसके संबंध में उनके संगठन ने एक पत्र मुख्यमंत्री को लिखा है तथा उनसे मांग की है कि इसके लिए पहल करें ताकि राज्य के ओबीसी समाज को उसका वाजिब हक मिले। उन्होंने कहा कि अभी केंद्र में भी भाजपा की सरकार है तो राज्य सरकार को कोई परेशानी भी नहीं होगी।

नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देते राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ के सदस्य (फाइल फोटो)

वहीं बैतूल जिला कॉंग्रेस कमेटी पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष नारायण धोटे ने इस संबंध में कहा है कि यदि भाजपा वाकई में पिछड़ा वर्ग की हितैषी है तो पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को बचाने के लिए तत्काल विशेष सत्र बुलाकर मध्य प्रदेश विधानसभा में पारित कर भारत सरकार को प्रस्ताव प्रेषित कर संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करवाकर संविधानिक सुरक्षा प्रदान करने की कार्यवाही करे। 

हेमंत सोरेन ने कहा, झारखंड को यूक्रेन समझ रही है केंद्र सरकार

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि केंद्र सरकार झारखंड के साथ वैसा ही व्यवहार कर रही है जैसा कि इस समय रूस यूक्रेन के साथ कर रहा है। बीते 11 मई को रांची में पत्रकारों से बातचीत में सोरेन ने कहा कि जब उन्होंने केंद्र के पास झारखंड के बकाए राशि की मांग की तो केंद्र सरकार ने राजनीति शुरू कर दी। भाजपा अब लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित उनकी सरकार को अस्थिर करना चाहती है। इसके लिए 2007 के खनन पट्टे का मुद्दा उछाल रही है। बताते चलें कि भाजपा ने सोरेन पर पद का लाभ लेते हुए खनन का पट्टा अपनी कंपनी को दिलाने का आरोप लगाया है। चुनाव आयोग ने इस संबंध में हेमंत सोरेन से जवाब तलब किया है। हालांकि यह मामला उस वक्त का है जब सोरेन झारखंड विधानसभा के सदस्य थे। इस संबंध में उन्होंने कहा है कि अपनी आय से संबंधित सारे विवरण उन्होंने चुनाव आयोग को पहले से दे रखा है। 

पंचायतों में ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, मध्य प्रदेश सरकार की मंशा पर सवाल 

बीते 6 मई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश के पंचायती राज निकायों में ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण को खत्म कर दिया। इसके लिए सूबे की शिवराज सिंह चौहान सरकार को जिम्मेदार माना जा रहा है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में पिछले साल जब यह मामला आया तब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को ट्रिपल टेस्ट रिपोर्ट देने की बात कही थी। इस पर राज्य सरकार ने दिसंबर, 2021 तक का समय मांगा था। लेकिन राज्य सरकार की ओर से जब रिपोर्ट समर्पित नहीं की गई तब बीते 5 मई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगायी। इसके अगले ही दिन चौहान सरकार ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा। इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और साथ ही ओबीसी आरक्षण संबंधी सरकार के फैसले को खारिज कर दिया।

बताते चलें कि 1993 से ओबीसी के लिए आरक्षण लागू होने के बाद से प्रदेश में अब तक पांच बार पंचायती राज निकायों के चुनाव हुए हैं। इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 20 और अनुसूचित जाति को 16 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा था। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं मिलेगा। 

बिहार : जुबान पर जातिगत जनगणना, मन में राजनीति

राजनीति की प्रयोगशाला की उपमा से सम्मानित बिहार की धरती पर एकबार फिर कुछ अलग होने के संकेत मिल रहे हैं। हालांकि उपरी तौर पर कोई स्पष्ट स्थिति नहीं बन पाई है। लेकिन अंदरखाने में इससे सभी वाकिफ हैं कि अनुकंपा के तहत मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान नीतीश कुमार अपने साझेदार भाजपा से परेशान हैं। यही वजह है कि उन्होंने मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। बीते एक महीने में राजद नेता तेजस्वी यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच बातचीत हुई है और दोनों एक साथ नजर आए। 

बीते 11 मई, 2022 को तो मुख्यमंत्री के निमंत्रण पर तेजस्वी उनसे मिलने के सरकारी आवास तक गए। हालांकि जब वे बाहर निकले तो उन्होंने जातिगत जनगणना को मुद्दा बताया। उन्होंने कहा कि राजद की ओर से जातिगत जनगणना की मांग को लेकर पदयात्रा निकालने का कार्यक्रम तय किया गया है। इसीके आलोक में मुख्यमंत्री ने उन्हें बुलाया था। तेजस्वी के मुताबिक, बातचीत सकारात्मक रही और मुख्यमंत्री ने इंतजार करने के लिए कहा है। वहीं जदयू की ओर से राज्य सरकार के मंत्री श्रवण कुमार ने कहा है कि जातिगत जनगणना के सवाल को लेकर उनकी पार्टी किसी के दबाव में नहीं है। 

बताते चलें कि जातिगत जनगणना के सवाल पर भाजपा जदयू के साथ नहीं है। भाजपा के नेताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के फैसले से असहमति व्यक्त की थी।

बहरहाल, एक ही महीने में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की तीन मुलाकातों के बाद सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। ऐसे में कयासबाजियां भी लगायी जा रही हैं कि नीतीश भाजपा का साथ छोड़कर राजद के साथ जाएंगे। लेकिन असल सवाल यही है कि सत्ता की कुर्सी पर काबिज कौन होगा? 

(संपादन : अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

संबंधित आलेख

पुष्यमित्र शुंग की राह पर मोदी, लेकिन उन्हें रोकेगा कौन?
सच यह है कि दक्षिणपंथी राजनीति में विचारधारा केवल आरएसएस और भाजपा के पास ही है, और उसे कोई चुनौती विचारहीनता से ग्रस्त बहुजन...
महाराष्ट्र : वंचित बहुजन आघाड़ी ने खोल दिया तीसरा मोर्चा
आघाड़ी के नेता प्रकाश आंबेडकर ने अपनी ओर से सात उम्मीदवारों की सूची 27 मार्च को जारी कर दी। यह पूछने पर कि वंचित...
‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा में मेरी भागीदारी की वजह’
यद्यपि कांग्रेस और आंबेडकर के बीच कई मुद्दों पर असहमतियां थीं, मगर इसके बावजूद कांग्रेस ने आंबेडकर को यह मौका दिया कि देश के...
इलेक्टोरल बॉन्ड : मनुवाद के पोषक पूंजीवाद का घृणित चेहरा 
पिछले नौ सालों में जो महंगाई बढ़ी है, वह आकस्मिक नहीं है, बल्कि यह चंदे के कारण की गई लूट का ही दुष्परिणाम है।...
कौन हैं 60 लाख से अधिक वे बच्चे, जिन्हें शून्य खाद्य श्रेणी में रखा गया है? 
प्रयागराज के पाली ग्रामसभा में लोनिया समुदाय की एक स्त्री तपती दोपहरी में भैंसा से माटी ढो रही है। उसका सात-आठ माह का भूखा...