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अग्निपथ पर नौजवानों को भेजने से पहले सोचे हुक्मरान

आजादी के 75 साल बाद जब एक तरफ हुकूमत अमृत महोत्सव मना रही है, हमारे युवा राष्ट्र की संपत्ति जला रहे हैं। यह गलत है और नौजवानों को ऐसा नहीं करना चाहिए। लेकिन ऐसे में हमें सोचना ही चाहिए कि ऐसे हालात क्यों बने हैं? बता रहे हैं केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के सेवानिवृत्त कमांडेंट हवा सिंह सांगवान

बीते दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के द्वारा अग्निपथ योजना के तहत अग्निवीरों की संविदा के आधार पर अल्पकालिक नियुक्ति की घोषणा के बाद से देश भर में नौजवान सड़कों पर हैं। वे इतने आक्रोशित हैं कि वे सरकारी परिसंपत्तियां जला रहे हैं। हालात बिल्कुल ऐसे हैं जैसे आजादी के पहले आजादी के दीवाने किया करते थे। वे रेलों की पटरियां उखाड़ देते थे। रेल की बोगियों में आग लगा देते थे। लेकिन आजादी के 75 साल बाद जब एक तरफ हुकूमत अमृत महोत्सव मना रही है, हमारे युवा राष्ट्र की संपत्ति जला रहे हैं। यह गलत है और नौजवानों को ऐसा नहीं करना चाहिए। लेकिन ऐसे में हमें सोचना ही चाहिए कि ऐसे हालात क्यों बने हैं।

दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा घोषित अग्निपथ योजना में अनेक दोष हैं। एक सेवानिवृत्त सुरक्षाकर्मी होने के नाते मैं यह तो कह सकता हूं कि इस तरह की योजना को लागू करने का यह समय उचित नहीं है, क्योंकि पिछले दो-तीन साल से सेना की भर्ती हुई ही नहीं। नौजवान पहले से ही तनाव में थे। संकटों के बीच भी वे इस आस में अभ्यासरत थे कि भर्तियां शुरू होंगी तो उन्हें सेना में जाने का मौका मिलेगा। लेकिन अब जब सरकार ने कहा है कि अग्निपथ योजना के तहत केवल चार साल की नौकरी मिलेगी तो सभी आक्रोशित हो गए हैं। उन्हें आक्रोशित करने का काम सरकार ने खुद किया है। 

अग्निपथ योजना के बारे में हालांकि केंद्र सरकार इसके फायदे बता रही है। लेकिन सच तो यह है कि इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा और सेना में भ्रष्टाचार चरम पर होगा। यह बात इसलिए कि सरकार के मुताबिक चार साल की सेवा के बाद केवल 25 फीसदी को सेना में नियमित नौकरी दी जाएगी और शेष 75 फीसदी को घर वापस भेज दिया जाएगा तो भला ऐसा कौन होगा जो स्थायी नौकरी नहीं चाहेगा। इसलिए स्थायी नौकरी के लिए सभी में होड़ रहेगी और एक भयंकर चापलूसी युग आएगा। साथ ही, इन अग्निवीरों को चार साल के बाद जो ग्यारह लाख सत्तर हज़ार रुपए मिलेंगे, उससे कहीं ज़्यादा तो उस समय इन्हें नियमित बनानेवाले एजेंट ही वसूल लेंगे। 

बिहार के बक्सर में रेलवे की पटरी पर बैठकर विरोध प्रदर्शन करते हुए

अग्निपथ योजना की सबसे बड़ी खामी है छह महीने का प्रशिक्षण। यह बात मैं अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूं। छह महीने की ट्रेनिंग तो अर्द्धसैनिक बलों को भी नहीं दी जाती, फिर सेना के सैनिक को छह महीने में कैसे तैयार किया जा सकता है? इन्हें कोई लाठी और अश्रु गैस चलाने की ट्रेनिंग तो देनी नहीं है। इनको तो आधुनिक हथियारों की ट्रेनिंग देनी है। यह सब छह महीने में कैसे पूरा हो सकता है? और यदि यह नहीं हुआ तो हमारे नौजवान क्या बिना सक्षम हुए हमारी सीमाओं की रक्षा करेंगे? और इससे भी महत्वपूर्ण यह कि क्या ऐसा करके सरकार हमारे नौजवानों को खतरे में नहीं डालेगी?

सेना के लिए उसके मनोबल का ऊंचा रहना आवश्यक है। कहते भी हैं कि जंग हथियारों से नहीं, हौसले से जीती जाती है। लेकिन जब किसी सैनिक को अपने भविष्य के बारे में पता ही नहीं है कि उसका चार साल के बाद क्या होगा तो उसका मनोबल कैसे ऊंचा हो सकता है? कुछ उच्च अधिकारी चापलूसी में आकर इस योजना का व्यर्थ में समर्थन कर रहें हैं। निस्संदेह इसके परिणाम अत्यंत ही घातक होंगे। 

कुछ लोग अग्निपथ योजना को यह कहते हुए बेहतर बता रहे हैं कि कुछेक देशों में पहले से ऐसी योजना चल रही है। मेरा मानना है कि हर देश के लोगों की मानसिकता अलग-अलग होती है, जो वहां के मौसम, भोगौलिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, राजनीतिक स्थिति, ऐतिहासिक स्थिति और धार्मिक स्थिति आदि पर निर्भर है। इसलिए इस योजना को दूसरे देशों को देखकर लागू न किया जाए। भारत कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक और गोवा से लेकर आसाम तक फैला है। सरकार को यह बात समझनी चाहिए। 

मेरे हिसाब से सबसे बड़ी चुनौती तब सामने आएगी जब 75 फीसदी अग्निवीरों को जब निकाला जाएगा तो वे किसी भी सूरत में चुप नहीं बैठेंगे और जब उन्हें ढंग का रोजगार नहीं मिलेगा तो हो सकता है कि वे बड़ा बवाल खड़ा कर दें, जिसका असर स्थायी सैनिकों पर भी पड़ेगा। इसका असर देश की आंतरिक सुरक्षा पर भी पड़ेगा। वजह यह कि यदि बड़ी संख्या में नौजवानों को बीच मझधार में छोड़ दिया जाएगा तो वे अलगाववादी ताकतें उन्हें फांसने का षडयंत्र रच सकती हैं। 

दरअसल, इस पूरे मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन कृषि क़ानून लाकर जिस प्रकार से किसानों का फ़ायदा करना चाहते थे, ठीक वैसे ही इस अग्निपथ योजना से फ़ौज का फ़ायदा करना चाहते हैं। जबकि हम सभी जानते हैं कि उन तीन कृषि क़ानूनों से किसान को क्या नुक़सान हो सकता था। ऐसे ही इस अग्निपथ योजना से नुक़सान होगा। तीन कृषि क़ानून लाकर सरकार एमएसपी से भागने की सोच रही थी और इस अग्निपथ योजना से सरकार पेंशन व वेतनादि का ख़र्च बचाने की सोच रही है। हमें चौधरी छोटूराम को याद करना चाहिए, जिन्होंने कहा था कि “सरकार को एक बनिया की भावना से नहीं सोचना चाहिए। इसका शासन केवल दुकानदारी के सिद्धांतों पर नहीं चलना चाहिए। सबसे पहला उद्देश्य जो एक सरकार का होना चाहिए वह है, जनता की भलाई।” जबकि भाजपा जबसे सत्ता में आयी है, तभी से वह देश चलाने के बजाय व्यापार अधिक कर रही है।  

सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि अग्निपथ योजना पर अधिकतर सेवानिवृत्त फ़ौज अधिकारी ख़ामोश हैं और जो अभी सेवारत हैं, सरकार की प्रशंसा करने में लगे हुए हैं। यह बड़े दुःख की बात है। जब इस प्रकार फ़ौज भी किसी नेता की अनावश्यक चमचागिरी में लग जाती है तो समझ लेना चाहिए कि देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा उत्पन्न हो चुका है। यह समय है कि सरकार चेते और नौजवानों के भविष्य के साथ न खेले।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

हवा सिंह सांगवान

हवा सिंह सांगवान केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के सेवानिवृत्त कमांडेंट हैं।

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